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'ब्रेस्ट छूना रेप नहीं...' इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस की टिप्पणी पर SC सख्त, फैसले के कुछ हिस्सों पर लगाई रोक

जस्टिस भूषण आर गवई ने सुनवाई के दौरान कहा कि हमें एक जज द्वारा ऐसे कठोर शब्दों का प्रयोग करने के लिए खेद है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने हाईकोर्ट के आदेश को देखा है. हाईकोर्ट के आदेश के कुछ पैराग्राफ जैसे 24, 25 और 26 में जज द्वारा संवेदनशीलता की पूर्ण कमी को दर्शाता है.

सुप्रीम कोर्ट (File Photo) सुप्रीम कोर्ट (File Photo)
संजय शर्मा/सृष्टि ओझा
  • नई दिल्ली,
  • 26 मार्च 2025,
  • अपडेटेड 11:34 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस विवादित आदेश पर रोक लगा दी जिसमें कहा गया था कि 'ब्रेस्ट पकड़ना' और पजामे का नाड़ा तोड़ना बलात्कार या बलात्कार का प्रयास नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश का स्वत: संज्ञान लिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस फैसले में संवेदनशीलता की कमी दिखाई देती है.

जस्टिस भूषण आर गवई ने सुनवाई के दौरान कहा कि हमें एक जज द्वारा ऐसे कठोर शब्दों का प्रयोग करने के लिए खेद है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने हाईकोर्ट के आदेश को देखा है. हाईकोर्ट के आदेश के कुछ पैराग्राफ जैसे 24, 25 और 26 में जज द्वारा संवेदनशीलता की पूर्ण कमी को दर्शाता है. ऐसा भी नहीं है कि फैसला जल्द में लिया गया है. इस मामले में सुनवाई पूरी होकर निर्णय रिजर्व होने के 4 महीने बाद निर्णय सुनाया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की मां ने भी अदालत का दरवाजा खटखटाया है. उसकी याचिका को भी इसके साथ ही जोड़ा जाए. उससे दोनों पर साथ सुनवाई आगे बढ़ेगी.

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दरअसल,  इलाहाबाद हाईकोर्ट के 17 मार्च को दिए विवादित फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को सुनवाई हुई. जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई के दौरान कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज की कुछ टिप्पणियों पर रोक लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल और अटॉर्नी जनरल को सुनवाई के दौरान कोर्ट की सहायता करने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम केंद्र, उत्तर प्रदेश को नोटिस जारी करते हैं. कोर्ट ने कहा कि हम दो हफ्ते बाद मंगलवार को इस पर सुनवाई करेंगे.

यह भी पढ़ें: 'ऐसे जज को हम बर्दाश्त नहीं करेंगे', जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकीलों ने खोला मोर्चा, प्रदर्शन शुरू

इलाहाबाद कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया था? 

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि पीड़ित के ब्रेस्ट को पकड़ना, और पाजामे के नाड़े को तोड़ने के आरोप के चलते ही आरोपी के खिलाफ रेप की कोशिश का मामला नहीं बन जाता. फैसला देने वाले जज जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने 11 साल की लड़की के साथ हुई इस घटना के तथ्यों को रिकॉर्ड करने के बाद यह कहा था कि इन आरोप के चलते यह महिला की गरिमा पर आघात का मामला तो बनता है. लेकिन इसे रेप का प्रयास नहीं कह सकते.

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