
दिल्ली में पिछले 24 घंटे के भीतर कोरोना वायरस के 28 हजार 867 नए मामले सामने आए. इस दौरान संक्रमण दर 19.21% दर्ज की गई. राजधानी में बुधवार को हुईं 40 मौतों में अधिकतर वैक्सीन नहीं लगवाने वाले या फिर पहले से ही कोई बीमारी से पीड़ित लोग शामिल थे. यह कहा जा रहा है कि डेल्टा के मुकाबले कोरोना वायरस का नया वैरिएंट omicron कम खतरनाक है. अस्पतालों में बेड खाली हैं. लेकिन फिर भी डेथ रेट बढ़ता जा रहा है. दिल्ली की बात करें तो पिछले 6 महीने में यहां जितनी मौतें नहीं हुई थीं, उतनी अब हो चुकी हैं.
सवाल उठने लगा है कि ओमिक्रॉन माइल्ड वैरिएंट है भी या नहीं? डेल्टा में हॉस्पिटलाइजेशन रेट जहां 10% था, तो वहीं ओमिक्रॉन के केस में यह एक से 2 फीसदी ही है. उजाला सिग्नस ग्रुप के फाउंडर डायरेक्टर डॉक्टर सुचिन बजाज का कहना है कि यह 2% भी बहुत ज्यादा होता है. जब इंफेक्शन लगातार बढ़ रहा हो तो ऐसे में स्थिति चिंताजनक हो जाती है. कुछ रिसर्च का दावा है देशभर में जो मामले हर रोज 2.5 लाख हैं, वो बढ़कर पीक आने की स्थिति में 10 लाख से ज्यादा के ऊपर हो सकते हैं.
इस हिसाब से हर रोज 20,000 मरीज एडमिट होंगे और ऐसे में अस्पतालों पर बहुत ज्यादा दबाव बढ़ेगा. Omicron का इंफेक्शन रेट डेल्टा से 7 गुना जल्दी फैलता है. हालांकि, अभी भी हॉस्पिटल के अधिकतर बेड खाली हैं. हॉस्पिटल में जो मरीज दाखिल हो रहे हैं, उनको कोविड से कितनी समस्या हो रही है? यह पूरी केस हिस्ट्री की छानबीन के बाद ही पता लगेगा. आंकड़ा यह कहता है कि 40 मौतों में करीब 36 ऐसे लोग थे जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगाई थी. वहीं, दूसरी तरफ करीब-करीब सभी को पहली डोज लगने की बात सरकार कह रही है.
वहीं, लोक नायक जय प्रकाश अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर सुरेश कुमार का कहना है कि मौतों में उछाल नहीं है. बस, जिनको स्ट्रोक, डायलिसिस, लिवर खराब जैसी समस्या पहले से ही थीं, उनकी मृत्यु हुई है. करीब 85 फीसदी बेड खाली हैं. उन्हानें कहा कि भले ही डेल्टा ज्यादा युवा लोगों को निशाना बनाए हो, लेकिन किसी और बीमारी की हिस्ट्री वाले लोग ही सबसे ज्यादा मौतों का शिकार हो रहे हैं. LNJP अस्पताल में एडमिट होने वाले संक्रमितों में ऐसे मरीजों की संख्या स्थिर बनी हुई है, जिन्हें ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही हो. डॉक्टर ने यह भी बताया कि बीमारी की हिस्ट्री वाले और बिना वैक्सीन लगवाए लोग ही इसका शिकार बन रहे हैं.
उजाला सिग्नस हॉस्पिटल के फाउंडर का कहना है कि यह वायरस नेचुरल वैक्सीन नहीं है. यह दवाई नहीं है. यह एक बीमारी है, क्योंकि इसके दूरगामी प्रभाव अभी तक नहीं पता हैं. कुछ रिसर्च स्टडी का यह भी दावा है कि कोरोना का वायरस दिल, दिमाग और अलग-अलग जगहों पर करीब 6 महीने बाद भी डिटेक्ट किया गया है. ऐसे में मास्क लगाना, हाथ धोना, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते रहना ही एकमात्र बचाव है.