
दिल्ली विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजेन्द्र गुप्ता ने दिल्ली में लगभग आधे पेय जल की सप्लाई के दौरान ही गायब हो जाने और उसके कारण हुए हजारों करोड़ रुपये के राजस्व की हानि की उपराज्यपाल से सीबीआई जांच की मांग की है. उन्होंने कहा कि वर्ष 2016-17 में पेय जल के सप्लाई के दौरान गायब हो जाने के कारण 1161.45 करोड़ रुपये के राजस्व की हानि हुई. मुख्यमंत्री केजरीवाल के बयान के अनुसार दिल्ली जल बोर्ड 900 मिलियन गैलन पानी प्रतिदिन ट्रीट किया जाता है और जलबोर्ड के आंकड़े कहते हैं कि उसमें से मात्र 450 से 500 मिलियन गैलन पानी की प्रतिदिन उपभोक्ताओं तक सप्लाई हो पाती है. बड़ा सवाल ये है कि ऐसे में आधे से ज्यादा पानी जाता कहां है? मामले की सीबीआई जांच इसलिए होनी चाहिए क्योंकि केजरीवाल सरकार के पास इसका कोई जवाब नहीं.
टैंकर माफिया चुरा रहा है दिल्ली जलबोर्ड का पानी
विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि विपक्ष को शंका है कि इसमें से अधिकतर पानी उस टैंकर माफिया द्वारा चुरा लिया जाता है, जिसे सरकार समाप्त कर देने का दावा करती रही है. दिल्ली सरकार इस आपराधिक राजस्व तथा अमूल्य जल की हानि के मामले को हल्के में लेने की अपराधी है. उन्हें नागरिकों और विशेषकर झुग्गी-झोंपड़ी बस्तियों तथा अनाधिकृत कालोनियों में रहने वाले लोगों से माफी मांगनी चाहिए. उनके हिस्से का पानी उन तक पहुंचने से पहले ही गायब हो जाता है.
50 प्रतिशत पानी चोरी के बावजूद 178 करोड़ का लाभ कहां से?
वे अंत में कहते हैं कि ताज्जुब की बात तो ये है कि कुल पेयजल का 50 प्रतिशत से अधिक पानी बीच में गायब हो जाता है. दिल्ली सरकार 400 करोड़ रुपए की सब्सिडी भी देती है और इसके बाद भी 178 करोड़ रुपये का लाभ कमा लेती है. दिल्ली सरकार के आंकड़ों की यह जादूगरी वाकई काबिले तारीफ है. सीबीआई को इसकी गहन जांच करनी चाहिए. विजेन्द्र गुप्ता ने बताया कि दिल्ली जल बोर्ड बजट के आंकड़ों के अनसार वर्ष 2014-15 में दिल्ली जल बोर्ड को 1628.22 करोड़ रुपये का राजस्व, 2015-16 में 1854.57 करोड़ तथा 2017-17 में अनुमान के अनुसार 2322.90 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ. इसका अर्थ यह हुआ कि सरकार को इन तीन वर्षों में पेयजल की चोरी के कारण क्रमश: 814, 927 और 1161 करोड़ रुपये के राजस्व की हानि हुई. स्पष्ट है कि इतनी बड़ी चोरी बिना राजनीतिक संरक्षण और अधिकारियों की सांठ-गांठ के सम्भव नहीं है. इन सब पहलुओं की जांच होनी चाहिए.