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शास्त्रीय संगीत के दिल्ली घराने के खलीफा 'उस्ताद इकबाल अहमद' खान का निधन

दिल्ली घराने के खलीफा खान साहब को संगीत की शुरुआती तालीम अपने पिता उस्ताद चांद खां से मिली. इसके बाद उनकी प्रतिभा को उस्ताद हिलाल अहमद खां और उस्ताद नसीर अहमद खान ने तराशा. बता दें कि दिल्ली घराने की शुरुआत हजरत अमीर खुसरो से मानी जाती है.

उस्ताद इकबाल अहमद खान के निधन के बाद संगीतज्ञों का कहना है कि दिल्ली घराने को अब कौन संभालेगा उस्ताद इकबाल अहमद खान के निधन के बाद संगीतज्ञों का कहना है कि दिल्ली घराने को अब कौन संभालेगा
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली ,
  • 17 दिसंबर 2020,
  • अपडेटेड 6:13 PM IST
  • कई पुरस्कारों से सम्मानित हुए थे इकबाल अहमद
  • अपने पिता उस्ताद चांद खां से सीखे थे संगीत के गुर
  • दिल्ली के सूइवलान इलाके में ली आखिरी सांस

शास्त्रीय संगीत के दिल्ली घराने के खलीफा उस्ताद इकबाल अहमद खान का गुरुवार के दिन निधन हो गया है. दिल्ली घराने के खलीफा खान साहब को संगीत की शुरुआती तालीम अपने पिता उस्ताद चांद खां से मिली. इसके बाद उनकी प्रतिभा को उस्ताद हिलाल अहमद खां और उस्ताद नसीर अहमद खान ने तराशा.

बता दें कि दिल्ली घराने की शुरुआत हजरत अमीर खुसरो से मानी जाती है. कई पुरस्कारों से नवाजे गए उस्ताद इकबाल अहमद खान 66 साल के थे. पुरानी दिल्ली के सूइवलान इलाके के अपने पुश्तैनी घर में उन्होंने आखिरी सांस ली.

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उनके निधन पर सरोद के उस्ताद अमजद अली खां, तबले के उस्ताद अकरम खां और सारंगी नवाज उस्ताद कमाल साबरी ने गहरा दुख जताते हुए कहा कि 2020 ने बहुत से उम्दा कलाकार हमसे छीन लिए. उस्ताद जी का भारतीय शास्त्रीय संगीत का ज्ञान अद्भुत था. उन्होंने दिल्ली घराने को आगे बढ़ाने के लिए अनगिनत शिष्यों को मुफ्त तालीम दी.

सरोद के शहंशाह उस्ताद अमजद अली खां ने उस्ताद इकबाल अहमद खां के निधन पर कहा कि दिल्ली घराने के मशाल वाहक का जाना सचमुच बहुत बड़ी क्षति है. शास्त्रीय संगीत की बारीकियों और अपने घराने की महीन खूबसूरती के पक्के जानकर खलीफा जी अच्छे संगीतज्ञ, गायक और उनसे भी जबरदस्त इंसान थे जिन्होंने संगीत को गाकर नहीं बल्कि जी कर दिखाया.

तबले के अजराड़ा घराने के उस्ताद अकरम खां साहब खलीफा उस्ताद जी को याद करते हुए कहते हैं कि जब उस्ताद चांद खां साहब का इंतकाल हुआ था तो लगा कि घराने का चश्म-ओ-चिराग कैसे रोशन होगा! लेकिन खलीफा ने सबकुछ संभाल कर परंपरा को समृद्ध करते हुए इसे आगे बढ़ाया. लेकिन एक बार फिर लगता है कि अब क्या? कौन कैसे संभालेगा इस पीढ़ियों की परंपरा को.

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