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ब्रिज का फीता काटने के लिए जंग, एक छोर पर कांग्रेसी तो दूसरे पर BJP नेता डटे

ब्रिज का उद्घाटन एक माह से अटका हुआ था. सरकार इसका उद्घाटन यह कहकर टालती रही कि उनके पास समय नहीं है. जिसके चलते कांग्रेस ने यह अल्टीमेटम दिया कि यदि ब्रिज का लोकार्पण नहीं हुआ तो कांग्रेस खुद इसका लोकार्पण कर देगी.

ब्रिज के एक छोर पर कांग्रेस तो दूसरे पर बीजेपी ने किया लोकार्पण. ब्रिज के एक छोर पर कांग्रेस तो दूसरे पर बीजेपी ने किया लोकार्पण.
आदित्य बिड़वई/गोपी घांघर
  • सूरत ,
  • 21 सितंबर 2017,
  • अपडेटेड 4:03 PM IST

सूरत का उत्कल नगर रेल्वे ओवरब्रिज. राजनीति के जाल में ऐसा फंसा कि बनकर तैयार होने के एक माह बाद भी इसका लोकार्पण सरकारी कामकाजों में अटका रहा. इसमें मजेदार बात यह कि जब आज इसका लोकार्पण हुआ तो कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने आ गए और ब्रिज का लोकार्पण एक नहीं दोनों छोर से हुआ.

दरअसल, ब्रिज का उद्घाटन एक माह से अटका हुआ था. सरकार इसका उद्घाटन यह कहकर टालती रही कि उनके पास समय नहीं है. जिसके चलते कांग्रेस ने यह अल्टीमेटम दिया कि यदि ब्रिज का लोकार्पण नहीं हुआ तो कांग्रेस खुद इसका लोकार्पण कर देगी.

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कांग्रेस की घोषणा के बाद सरकार जागी और आनन-फानन में ब्रिज का लोकार्पण करने के फैसला किया. लोकार्पण की तारीख 24 सितम्बर रखी, लेकिन जब सरकार को पता लगा कि कांग्रेस 21 सितम्बर को लोकार्पण करने वाली है तो अचानक लोकार्पण की तारीख 24 से बदलकर 21 सितंबर कर दी गई.  

यही वजह थी कि आज ब्रिज के एक ओर गुजरात सरकार के मंत्री नानु वानानी ब्रिज ने लोकार्पण किया तो दूसरे छोर पर कांग्रेस कार्यकर्ताओ ने ब्रिज पर गाड़ियां चला दी और लोकार्पण बताते हुए इसे आम जनता के लिए खोल दिया.

कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने ब्रिज पर वाहन चलाने से पहले 'जय सरदार जय पाटीदार' के नारे लगाए. कांग्रेसी कार्यकर्ता ब्रिज पर वाहन चलाकर पहुंचे तो बीजेपी और कांग्रेस के लोग आमने-सामने आ गए. हालांकि, ब्रिज के उद्घाटन के दौरान तनाव का अंदेशा होने के चलते पुलिस ने बड़ी तादाद में यहां फोर्स उतारी थी. जिस कारण मामला शांतिपूर्ण ढंग से निपट गया.  

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कांग्रेस ने इस ब्रिज को स्वामीनारायन संप्रदाय के संत प्रमुख स्वामी के नाम पर प्रमुख स्वामी ब्रिज नाम दिया है. हालांकि, इस बार जिस तरह से छोटी-छोटी बातों को लेकर बीजेपी ओर कांग्रेस चुनाव से पहेले आमने-सामने आ रही है, उससे यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि चुनाव के वक्त यह लड़ाई वोटर पर कितनी हावी होती है.

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