
गुजरात के मोरबी में ब्रिज हादसे में 135 लोगों की मौत हो गई. घटना के बाद ब्रिज का रखरखाव करने वाली अजंता कंपनी (ओरेवा ग्रुप) पर सवाल उठने लगे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद मोरबी में घायलों का हाल-चाल जानने के लिए पहुंच गए हैं. पीएम सबसे पहले मोरबी में घटनास्थल पर पहुंचे. उससे पहले मोरबी ब्रिज की कुछ तस्वीरें सामने आई हैं, जिसमें ओरेवा ग्रुप के बोर्ड को कपड़ों से ढक दिया गया है. इसके अलावा, अहमदाबाद में भी ओरेवा ग्रुप के ऑफिस आवर फार्म हाउस पर ताले लगे हैं.
पीएम जब घटनास्थल पर पहुंचे तो वहां लगे ओरेवा ग्रुप के बोर्ड को सफेद कपड़ों से ढक दिया गया था. पीएम ने घटना के संबंध में जानकारी ली और उन लोगों से मुलाकात की जो मोरबी हादसे के समय बचाव और राहत कार्यों में शामिल थे. पीएम बाद में सिविल अस्पताल पहुंचे.
बता दें कि ओरेवा कंपनी के पास ब्रिज का 15 साल के लिए ठेका था. ये कंपनी घड़ी और बल्व बनाती है. कंपनी ने 7 महीने पहले ब्रिज के रिनोवेशन का काम थर्ड पार्टी देव प्रकाश सॉल्यूशन को दिया था. 2 करोड़ रुपए की लागत से रिनोवेशन काम पूरा होने के बाद 26 अक्टूबर को ब्रिज को आम लोगों के लिए खोला गया था. उसके चार दिन बाद रविवार को हादसा हो गया.
मेंटेनेंस के नाम पर हुई खानापूर्ति
इस पूरे हादसे के पीछे लापरवाही को बड़ी वजह माना जा रहा है. बताया जा रहा है कि ब्रिज के मेंटेनेंस के नाम पर सिर्फ खाना पूर्ति हुई. न तो जंग लगा पुराना केबल बदला गया. न ही ठीक से फ्लोर प्लेट फिक्स किया गया. कंपनी को 8-12 महीने के मेंटेनेंस के बाद ये ब्रिज खोलना था, लेकिन कंपनी ने इसे 7 महीने में ही खोल दिया. इतना ही नहीं कंपनी द्वारा न ही फिटनेस सर्टिफिकेट लिया गया और न ही प्रशासन से किसी तरह की कोई अनुमति.
143 साल पुराना था ब्रिज
मोरबी की शान कहलाए जाने वाला केबल ब्रिज 143 साल पुराना था. 765 फुट लंबा और 4 फुट चौड़ा ये पुल एतिहासिक होने के कारण गुजरात टूरिज्म की लिस्ट में भी शामिल किया गया था. आजादी से पहले ब्रिटिश शासन में मोरबी ब्रिज का निर्माण किया गया था. मच्छु नदी पर बना यह ब्रिज मोरबी का प्रमुख टूरिस्ट स्पॉट था. मोरबी के राजा वाघजी रावजी ने केबल ब्रिज (झूलता हुआ पुल) बनवाया था. जिसका उद्घाटन 1879 में किया गया था. ब्रिटिश इंजीनियरों के द्वारा बनाए गए इस पुल के निर्माण में आधुनिकतम तकनीक का इस्तेमाल किया गया था.
दीवार घड़ियां बनाने से बिजनेस में उतरा था ओरेवा ग्रुप
बताते चलें कि 1971 में भारतीय बिजनेस टाइकून ओधवजी राघवजी पटेल ने 'अजंता क्वार्ट्ज' नाम की कंपनी की स्थापना कर थी. शुरुआत में ये कंपनी दीवार घड़ियों का निर्माण करती थी. इस फर्म को अब दुनिया की सबसे बड़ी घड़ी निर्माता कंपनी के रूप में पहचाना जाता है. अजंता-ओरेवा ग्रुप का नेतृत्व मुख्य रूप से अजंता मैन्युफैक्चरिंग प्राइवेट लिमिटेड (AMPL) के प्रबंध निदेशक जयसुखभाई भालोदिया और अजंता एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड (AEPL) के निदेशक समेत ऐसे चार अन्य संगठन करते हैं.
ग्रुप के पास एनर्जी से लेकर ई-बाइक तक का काम
अजंता मैन्युफैक्चरिंग प्राइवेट लिमिटेड (AMPL) की 9 नवंबर 1994 को स्थापना की गई थी. AMPL के निदेशकों में जयसुखभाई के परिजन शामिल हैं. इनमें चिंतन जयसुखभाई भालोदिया, मृदुलगौरी जयसुखलाल भालोदिया, अलीश जयसुखलाल भालोदिया, जयसुखभाई ओधवजीभाई भालोदिया, आशका चिंतन भालोदिया का नाम है. ये फर्म घरेलू उपकरणों जैसे एलईडी बल्ब, स्ट्रीट और फ्लड लाइट, और अन्य लाइट प्रोडक्ट्स के साथ-साथ घड़ियों और टूथपेस्ट का निर्माण करती है. इसने ई-बाइक में भी कदम रखा और इसके दो मॉडल हैं - जे 500 डीलक्स और जे 500 प्लस. कंपनी के पास समाख्याली (जिला कच्छ) और मोरबी (जिला राजकोट) में एक बड़ी मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी है.
(रिपोर्ट- निखिल शर्मा)