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गुजरात में सीएम पद के लिए क्यों बीजेपी के पास ‘पटेल’ ही बेस्ट च्वाइस हैं?

गुजरात में पाटीदार समुदाय धनबल के साथ-साथ सियासत में भी काफी दखल रखते हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी ने सबको साधकर रखा. मोदी-शाह के हटने के बाद बीजेपी की पहले जैसी पकड़ नहीं रही. ऐसे में बीजेपी को 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव के समीकरण को साधे रखने लिए पटेलों को सिर आंखों पर बैठाना शुरू कर दिया है, क्योंकि  गुजरात में बीजेपी की राजनीतिक जड़ें मजबूत करने में पटेल समुदाय की अहम भूमिका रही है.

भूपेंद्र पटेल और विजय रुपाणी भूपेंद्र पटेल और विजय रुपाणी
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 13 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 6:40 PM IST
  • गुजरात की सियासत में पाटीदार समुदाय अहम है
  • गुजरात के सीएम भूपेंद्र पटेल पाटीदार समाज से हैं

गुजरात में आरक्षण आंदोलन से बिदके पाटीदार समुदाय को रिझाने के लिए बीजेपी पांच साल बाद फिर से पटेल समुदाय से आने वाले  विधायक भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी है. गुजरात में पाटीदार समुदाय के लोग धनबल के साथ-साथ सियासत में भी काफी दखल रखते हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी ने सीएम रहते हुए सबको साधकर रखा. बीजेपी को राज्य में नरेंद्र मोदी जैसा प्रभावी चेहरा सूबे में दूसरा नहीं मिल सका और 2014 में उनके गुजरात से हटने के बाद बीजेपी की सियासी पकड़ कमजोर हुई. ऐसे में बीजेपी अपने समीकरण को दुरुस्त करने में जुट गई है. 

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बीजेपी को 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव के समीकरण को साधे रखने लिए पटेलों को सिर आंखों पर बैठाना पड़ रहा है, क्योंकि गुजरात में बीजेपी की राजनीतिक जड़े मजबूत करने में पटेल समुदाय की अहम भूमिका रही है. यही वजह है कि पहले मोदी मंत्रिमंडल के विस्तार में गुजरात से सात लोगों को जगह दी गई, जिनमें पाटीदार समुदाय से आने वाले मनसुख मंडाविया और पुरुषोत्तम रूपाला को राज्यमंत्री से कैबिनेट मंत्री बनाया गया. वहीं, अब सूबे की सत्ता ही पटेल समुदाय के हाथों में सौंप दी है. 

पटेल समाज कांग्रेस से छिटकर बीजेपी के साथ आया

गुजरात पहले पटेल समुदाय कांग्रेस का समर्थक माना जाता था, लेकिन 1980 के दशक में कांग्रेस के द्वारा क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिमों को ज्यादा तवज्जो देने से यह समुदाय नाराज हो गया. इसके बाद से पटेल समुदाय ने बीजेपी को समर्थन देना शुरू किया तो पार्टी ने भी केशुभाई पटेल को आगे कर दिया. इसका बीजेपी को जबरदस्त सियासी लाभ मिला और केशुभाई पटेल दो बार मुख्यमंत्री बने. 

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गुजरात भूकंप के बाद केशुभाई पटेल की कुर्सी को लेकर बीजेपी में बगावत हो गई, जिसके चलते उनकी जगह गुजरात की जिम्मेदारी नरेंद्र मोदी को पार्टी ने सौंप दी. मुख्यमंत्री पद की ताजपोशी के बाद नरेंद्र मोदी ने अपना सियासी कद इतना बड़ा कर लिया कि राज्य के सारे समीकरण और नेता उनके आए बौने नजर आने लगे. मोदी ने 13 सालों तक पाटीदार समुदाय के साथ-साथ बाकी समाज को साधकर अपने साथ रखा. केशुभाई पटेल जैसे नेता बीजेपी से नाता तोड़कर अलग हो गए, पर मोदी को सियासी चुनौती नहीं दे सके. 

मोदी ने अपनी विरासत आनंदीबेन पटेल को सौंपी

साल 2014 में नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अपनी सियासी विरासत पाटीदार समाज से आने वाली आनंदीबेन पटेल को सौंपी. आनंदीबने के सीएम रहते हुए पटेल आरक्षण आंदोलन खड़ा हुआ, आंदोलन को सही ढंग से न संभालने के चलते 2016 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. विजय रुपाणी को सीएम बनाया तो बीजेपी को पटेल वोटों को साधे रखने के लिए नितिन पटेल को डिप्टीसीएम का पद दिया, लेकिन पटेलों की नाराजगी पूरी तरह से दूर नहीं की जा सकी. 

बीजेपी 2017 के विधानसभा चुनाव सौ सीटें पार नहीं कर सकी और 99 सीटों पर सिमट गई. ऐसे में बीजेपी 2022 में किसी तरह का कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती है, क्योंकि बीजेपी के दो शीर्ष नेता पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह, दोनों गुजरात से आते हैं. ऐसे में गुजरात में बीजेपी का कमजोर पड़ना बाकी राज्‍यों के लिए शुभ संकेत नहीं होगा. बीजेपी ऐसे में भूपेंद्र पटेल को सत्ता की कमान सौंपी है, जिनकी राज्य में कडवा और लेउवा दोनों पटेल समुदायों के बीच अच्छी पकड़ मानी जाती है. 

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पटेल समुदाय का कोई सीएम पांच साल नहीं रहा

भूपेंद्र पटेल से पहले 4 पाटीदार मुख्यमंत्री बने, जिसमें चिमनभाई पटेल और केशुभाई पटेल दो बार मुख्यमंत्री बनने के बावजूद पांच साल तक सत्ता में नहीं रह सके. बाबूभाई पटेल से लेकर केशुभाई पटेल, चिमन भाई पटेल, आनंदीबेन पटेल सीएम बने, लेकिन यह पाटीदार सीएम किसी न किसी कारण से अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया. 

गुजरात में पटेल समुदाय की सियासी ताकत

खुद को भगवान राम का वंशज बताने वाले 15 फीसदी पाटीदार समुदाय पूरे गुजरात में फैले हैं, लेकिन उत्तर गुजरात और सौराष्ट्र में काफी ताकत रखते हैं. पाटीदार राजनीतिक तौर पर सूबे की कुल 182 सीटों में से करीब 70 विधानसभा सीटों पर काफी मजबूत असर रखते हैं, जहां खुद जीतने या फिर परिणाम बदलने की ताकत रखते हैं. 2012 में बीजेपी को मिले 48 फीसदी वोट शेयर में से 11 फीसदी पाटीदारों का हिस्सा था, लेकिन 2017 में यह ग्राफ डाउन हुआ है. 

2014 के लोकसभा चुनाव में पाटीदारों के 60 फीसदी वोट बीजेपी को मिले जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में मात्र 49.1 फीसदी मिला. साल 2017 के गुजरात चुनाव में बीजेपी को सिर्फ 99 और कांग्रेस को 82 सीटें मिली थीं. बीजेपी 2012 में गुजरात में 50 पाटीदारों को टिकट दिया गया था, जिनमें से 36 ने जीत दर्ज की थी. वहीं, 2017 के चुनाव में बीजेपी के 28 और कांग्रेस के 20 पाटीदार विधायक जीते थे. एक तरह से 2017 में पाटीदारों की नाराजगी के चलते बीजेपी को 8 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था. हालांकि, गुजरात में फिलहाल बीजेपी के 44 विधायक, 6 सांसद और राज्यसभा में तीन सांसद पाटीदार समुदाय से हैं. 

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पटेल वोटों पर सभी दलों की नजर है

गुजरात में अगले साल नंवबर में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए पाटीदार समुदाय को अपने-अपने खेमे में लाने की कवायद तेज हैं. कांग्रेस ने हार्दिक पटेल को कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बना रखा है तो आम आदमी पार्टी ने भी पाटीदार समाज से आने वाले गोपाल इटालिया को पार्टी की कमान सौंप रखी है. आम आदमी पार्टी ने गुजरात के निकाय चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया था. खासकर सूरत नगर निगम चुनाव में पाटीदारों के वर्चस्व वाले इलाके में 27 सीटों पर जीत हासिल की थी. गुजरात में पाटीदार मतदाताओं के दबदबे के बीच बीजेपी ने भूपेंद्र पटेल के रूप में पटेल कार्ड खेल दिया है. 

दरअसल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी नेतृत्व ने विभिन्न राज्यों में नया नेतृत्व उभारने का दांव चला था, जिसके चलते राज्यों में वहां की बहुल जाति से अलग सीएम बनाया. हालांकि, स्थानीय नेतृत्व पार्टी के मापदंडों पर यह फॉर्मूला सफल नहीं रह सका.असम और गोवा को छोड़ दें तो एक भी राज्य विधानसभा चुनाव में लोकसभा का प्रदर्शन नहीं दोहरा पाई. बीजेपी नेतृत्व की चिंता पिछले साल तब बढ़ी जब विधानसभा चुनाव में पार्टी को झारखंड और महाराष्ट्र में सत्ता गंवानी पड़ी.

हरियाणा में पार्टी को सरकार बनाने के लिए जेजेपी की मदद लेनी पड़ी. इसके बाद इसी साल पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों ने पार्टी की चिंता बढ़ा दी. इन सभी राज्यों में एक तथ्य समान था कि किसी राज्य में पार्टी लोकसभा चुनाव के दौरान हासिल मत फीसगी को बरकरार नहीं रख पाई. ऐसे में राज्यवार समीक्षा कर नेतृत्व परिवर्तन की पटकथा तैयार की थी, जिसे जमीन पर उतारना शुरू किया.

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इस क्रम में पहले उत्तराखंड, फिर कर्नाटक और अब गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन किया गया. ऐसे में राज्यों में जनाधार और जातीय समीकरण में फिट वाले नेताओं को सत्ता की कमान सौंपी जा रही है. इसी मद्देनजर गुजरात में भूपेंद्र पटेल को सीएम बनाया है ताकि पाटीदार समुदाय को सियासी संदेश दिया जा सके. 

 

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