
गुजरात के महेसाणा से ऐसा मामला सामने आया है, जहां 400 से ज्यादा दलितों ने असमानता और अत्याचार से परेशान होकर धर्म परिवर्तन का फैसला किया. दलितों ने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म स्वीकार किया है.
करीब 400 दलितों ने हिंदू धर्म का त्याग करते हुए कहा कि वो खुद के साथ हो रहे असमानता और अत्याचार से काफी दुखी थे. जिसके चलते उन्होंने विजयादशमी के दिन बौद्ध धर्म स्वीकार किया. वहीं करीब 100 दलितों ने सरस्वती मंदिर स्कूल में बौद्ध धर्म स्वीकार करते हुए कहा कि मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के भावखेड़ी गांव में 25 सितंबर को दो बच्चों को बेरहमी से पीटा गया और उनकी मौत हो गई थी. जिसको लेकर भी दलित समाज में काफी गुस्सा है.बौद्ध धर्म अपनाने से होगा दलितों का विकास
उनका कहना है कि सामाजिक तौर पर दूसरे धर्म के लोगों के मुकाबले दलितों का कम विकास हो रहा है. बौद्ध धर्म स्वीकार करने से दलित विकास कर पाएंगे. वहीं ईडर के डिप्टी कलेक्टर का कहना है कि उन्हें धर्म परिवर्तन को लेकर अब तक सिर्फ 9 अर्जी ही मिली हैं, जबकि बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले लोगों का कहना है कि उन्होंने इस बारे में कलेक्टर को पहले ही अपनी अर्जी दे दी थी.
दलितों को प्यार से स्वीकार करता है बौद्ध धर्म
वहीं बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले रमेश बेंकर का कहना है कि 1956 में विजयादशमी के दिन ही डॉ. बाबा साहब आम्बेडकर ने बौद्ध धर्म को स्वीकार किया था. इसलिए दशहरा के दिन कई दलित बौद्ध धर्म स्वीकार करते हैं. उन्होंने कहा कि दलितों को आज भी नीच जाति का ही माना जाता है, जबकि बौद्ध धर्म हमें प्यार से स्वीकार कर लेता है.
बता दें कि दलितों ने अपने साथ हो रहे अन्याय और अत्याचार के खिलाफ सरकार की ओर से कड़ी कार्रवाई ना करने का आरोप लगाते हुए बौद्ध धर्म अपनाया.