
लंबे इंतजार और बैठकों के कई दौर चलने के बाद आखिरकार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने होली के दिन लोकसभा चुनाव के लिए अपने 185 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी और इस सूची से पार्टी को खड़ा करने और सत्ता तक पहुंचाने में अहम किरदार निभाने वाले दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी का नाम काट दिया गया और उनकी जगह पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष अमित शाह को टिकट थमा दिया गया. हालांकि आडवाणी का टिकट काटने के पीछे बीजेपी की सोची समझी रणनीति मानी जा रही है.
बीजेपी ने गांधीनगर से सांसद लालकृष्ण आडवाणी का टिकट काट दिया है और उनकी जगह अध्यक्ष अमित शाह को उम्मीदवार बनाया है. गांधीनगर से शाह को उम्मीदवार बनाए जाने के साथ ही ऐसा माना जा रहा है कि आडवाणी का राजनीतिक करियर अब खत्म हो गया है. आडवाणी उन चंद नेताओं में शुमार हैं जिन्होंने अपने अथक प्रयासों के दम पर कभी 2 सांसदों वाली भारतीय जनता पार्टी को सत्ता तक पहुंचाया.
बीजेपी में हलचल बढ़ी
गांधीनगर से छह बार के सांसद आडवाणी अब 91 साल के हो चुके हैं. उनके टिकट काटे जाने के बाद बीजेपी में हलचल बढ़ गई हैं. हालांकि बीजेपी की तरफ से यह संकेत मिलने लगे थे कि 75 की उम्र के पार नेताओं को इस बार टिकट नहीं दिया जाएगा. गांधीनगर आडवाणी के राजनीतिक करियर के लिए बेहद खास रहा है. वह पहली बार 1991 में यहां से चुनाव जीते थे. इसके बाद 1998 से वह लगातार 5 बार चुनाव जीते.
बीजेपी के स्थानीय नेता प्रदीप सिंह बघेल का कहना है कि फैसला पार्टी के संसदीय बोर्ड का है और अब यहां से पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह चुनाव लड़ रहे हैं. कार्यकर्ताओं और लोगों में इस फैसले पर काफी खुशी है. गांधीनगर से शाह के चुनाव लड़ने से पार्टी को जोरदार ऊर्जा मिली है और इस फैसले के बाद पार्टी गुजरात की 26 की 26 लोकसभा सीट जीतेगी.
डरी हुई है बीजेपीः कांग्रेस
दूसरी ओर, गांधीनगर से कांग्रेस के स्थानीय नेता लालजी भाई देसाई ने शाह के यहां से चुनाव लड़ने के बारे में कहा कि हम इस बार जीत जाएंगे. अमित शाह को कड़ी टक्कर देने के लिए कांग्रेस के पास इस सीट से काबिल उम्मीदवार होने के सवाल पर लालजी भाई देसाई ने कहा कि हमारे पास कई उम्मीदवार हैं. पार्टी को फैसला लेना है कि किस उम्मीदवार को कहां से चुनाव लड़ाया जाए. इस बार गुजरात के अंदर बीजेपी बौखलाई हुई है. उनको लगता है कि 26 की 26 सीट जीतने की रणनीति के फेल होने के डर से बीजेपी डरी हुई है और परेशान है.
उन्होंने आगे कहा कि बीजेपी को गुजरात में अपनी हार का डर है क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो वह रातोरात हमारे कुछ विधायकों को मंत्री नहीं बनाते. बीजेपी डरी हुई है कि इस बार उसका प्रदर्शन खास नहीं रहने वाला.
आडवाणी का टिकट काटे जाने पर देसाई ने कहा कि बीजेपी ने अपने संस्थापक और मुखिया को टिकट न देकर उन्हें अपमानित किया है. वो एक बुजुर्ग साथी हैं और उन्हें सम्मान दिया जाना चाहिए था. वह एक सम्मानजनक विदाई के हकदार थे.
फैसले के पीछे बड़ी रणनीति
स्थानीय पत्रकार सुधीर रावल ने कहा कि आडवाणी का टिकट काटकर शाह को टिकट दिए जाने के पीछे बड़ी रणनीति है. यह डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश भी है क्योंकि यहां पर पाटीदार समाज नरेंद्र मोदी से नाराज चल रहा है. बड़ी सीट होने कारण शाह के यहां से चुनाव लड़ने पर वह आसानी से जीत जाएंगे. अगर वह यहां चुनाव प्रचार के लिए भी नहीं आते हैं तो भी आसानी से चुनाव जीत जाएंगे.
आडवाणी का टिकट काटकर गांधीनगर से अमित शाह को टिकट दिए जाने के फैसले पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि यह फैसला पार्टी का है और इसके बाद संसदीय बोर्ड ने भी इस पर अपनी सहमति जताई है तो इस फैसले पर अब ज्यादा कुछ नहीं कहा जाना चाहिए. आडवाणी हमारे मार्गदर्शक थे, मार्गदर्शक हैं और आगे भी मार्गदर्शन देंगे. वह हमारी पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और पार्टी उनका सम्मान करती है. गडकरी ने आगे कहा कि उनकी उम्र 90 साल की हो गई है. ऐसे में पार्टी ने दूसरे लोगों को मौका दिया है और अब हमारे अध्यक्ष अमित शाह गांधीनगर से चुनाव लड़ेंगे.
पार्टी में अटल-आडवाणी युग की समाप्ति पर नितिन गडकरी का कहना है कि युग की समाप्ति की बात नहीं है. पार्टी आगे बढ़ती रहती है, लेकिन पार्टी में सीनियर नेताओं का सम्मान हमेशा बना रहता है.
स्थानीय स्तर पर माना जा रहा है कि अब अमित शाह गांधीनगर से चुनाव लड़ने जा रहे हैं तो बिना किसी खास संघर्ष के वह चुनाव तो जीत जाएंगे ही, साथ ही उनके गुजरात में लोकसभा चुनाव लड़ने का फायदा राज्य की अन्य संसदीय सीटों पर होगा. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने गुजरात समेत कई राज्यों में क्लीन स्वीप किया था.