
गुजरात (Gujarat) के आदिवासी बाहुल्य डांग जिले में होली का त्योहार खास माना जाता है. यहां होली एक दिन नहीं, बल्कि दस दिनों तक मनाई जाती है, जिसे राजा की होली कहा जाता है. डांग जिले में आज भी पांच राजा मौजूद हैं. वर्षभर में एक बार इन राजाओं का सार्वजनिक सम्मान सरकार द्वारा किया जाता है. पांच दिनों तक दरबार लगता है, जिसे डांग दरबार मेला कहा जाता है.
दस दिन के इस उत्सव में पहले दिन राजाओं को बग्घियों में बैठाकर मंच पर ले जाया जाता है. जनता के सामने उनका सम्मान किया जाता है. देश में आज भी केवल डांग जिले में इन राजाओं को सरकार द्वारा निर्धारित राजनीतिक पेंशन दी जाती है, जिसे डांग दरबार कहते हैं. होली के पांचवें दिन राजा के हाथों गांव में पारंपरिक रूप से होली जलाई जाती है.
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शाम को गांव की महिलाएं आदिवासी गीत गाते हुए राजा को उनके घर ले जाने के लिए पहुंचती हैं. राजा धनराजसिंह सूर्यवंशी अपनी प्रजा के बीच होली मनाने जाते हैं, जहां लोग पूजा-अर्चना कर होली जलाकर दायित्व निभाते हैं. होली के इस अवसर पर एक साल के सभी बच्चों को उनके मामा होली के स्थान पर ले जाकर भक्त प्रहलाद मानकर उसकी पूजा करते हैं. केश काटे जाते हैं और होली में समर्पित करते हैं. इस त्योहार पर पूजा में सभी लोग शामलि होते हैं.
यहां वैदेही आश्रम की महंत यशोदा दीदी इस पर्व को बेहद महत्वपूर्ण बताती हैं. लोगों का कहना है कि होली हमारी संस्कृति और परंपराओं का जीवंत उदाहरण है, जिसमें सभी मिलकर भाग लेते हैं. यहां यह त्योहार हमारी सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखता है. यहां के लोगों ने कहा कि इस उत्सव का हिस्सा बनना हमारे लिए गर्व की बात है. यह अनोखी परंपरा एक मिसाल है.