Advertisement

सोहराबुद्दीन के हत्यारे नहीं, नेताओं को फंसाना था CBI जांच का मकसद

सीबीआई की विशेष अदालत ने सोहराबुद्दीन मामले में कहा कि सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी और उसके सहयोगी तुलसीराम प्रजापति की कथित फर्जी मुठभेड़ की जांच सोची समझी रणनीति के तहत नेताओं को फंसाने के लिए की गई.

सोहराबुद्दीन शेख (फाइल फोटो) सोहराबुद्दीन शेख (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 29 दिसंबर 2018,
  • अपडेटेड 3:53 AM IST

सीबीआई की विशेष अदालत ने सोहराबुद्दीन मामले की सीबीआई जांच पर बड़ी टिप्पणी की है. अदालत ने कहा कि सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी और उसके सहयोगी तुलसीराम प्रजापति की कथित फर्जी मुठभेड़ की जांच सोची समझी रणनीति के तहत नेताओं को फंसाने के लिए की गई.

समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक विशेष सीबीआई अदालत के न्यायाधीश एस. जे. शर्मा ने 21 दिसंबर को मामले में 22 आरोपियों को बरी करते हुए 350 पृष्ठों वाले फैसले में यह टिप्पणी की. अदालत ने सबूतों के अभाव में आरोपियों को बरी कर दिया और 3 मौतों पर दुख प्रकट किया. फैसले की प्रति शुक्रवार को नहीं मिल पाई लेकिन मीडिया को फैसले के अंश मुहैया कराए गए.

Advertisement

अपने आदेश में न्यायाधीश शर्मा ने कहा कि उनके पूर्वाधिकारी (न्यायाधीश एमबी गोस्वामी) ने आरोपी संख्या 16  (भाजपा अध्यक्ष अमित शाह) की अर्जी पर आरोपमुक्त आदेश जारी करते हुए कहा था कि जांच राजनीति से प्रेरित थी.

फैसले में कहा गया है, ‘मेरे समक्ष पेश किए गए तमाम सबूतों और गवाहों के बयानों पर करीब से विचार करते हुए मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि सीबीआई जैसी एक शीर्ष जांच एजेंसी के पास एक पूर्व निर्धारित सिद्धांत और पटकथा थी, जिसका मकसद राजनीतिक नेताओं को फंसाना था.’

स्क्रिप्ट के आधार पर रही थी सीबीआई

आदेश में कहा गया है कि सीबीआई ने मामले की अपनी जांच के दौरान सच्चाई को सामने लाने के बजाय कुछ और चीज पर काम किया. फैसले में कहा गया है कि यह साफ तौर पर जाहिर होता है कि सीबीआई सच्चाई का पता लगाने के बजाय पहले से सोचे समझे गए एक खास और पूर्व निर्धारित सिद्धांत को स्थापित करने के लिए कहीं अधिक व्याकुल थी. इसमें कहा गया है कि सीबीआई ने कानून के मुताबिक जांच करने के बजाय अपने ‘लक्ष्य’ पर पहुंचने के लिए काम किया.

Advertisement

फैसले में कहा गया है कि इस तरह पूरी जांच का लक्ष्य उस मुकाम को हासिल करने के लिए एक पटकथा पर काम करना था. साथ ही, राजनीतिक नेताओं को फंसाने की प्रक्रिया में सीबीआई ने साक्ष्य गढ़े तथा आरोपपत्र में गवाहों के बयान डाले.

सीबीआई ने लापरवाही बरती

अदालत ने इस बात का जिक्र किया कि महत्वपूर्ण साक्ष्य के प्रति सीबीआई ने लापरवाही बरती, जो यह स्पष्ट संकेत देता है कि जांच एजेंसी ने आनन - फानन में जांच पूरी की. फैसले में कहा गया है, ‘...इस तरह सीबीआई ने उन पुलिसकर्मियों को फंसाया जिन्हें किसी साजिश के बारे में कोई जानकारी नहीं थी... ’ अदालत ने इस बात का भी जिक्र किया कि तीन लोगों के मारे जाने का उसे दुख है और इसके लिए सजा नहीं मिल पा रही. साथ ही, उसके पास आरोपियों को दोषी नहीं करार देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है.

फैसले में कहा गया है सीबीआई के इस सिद्धांत को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि एक पुलिस टीम ने तीनों लोगों (मृतकों) को अगवा किया था. आदेश में यह भी कहा गया है कि सीबीआई यह साबित करने में भी नाकाम रही कि कथित घटना के वक्त मौके पर आरोपी पुलिसकर्मी मौजूद थे.

Advertisement

2005 में हुआ था एनकाउंटर

गौरतलब है कि तीनों लोग (मृतक) हैदराबाद से एक बस में महाराष्ट्र के सांगली लौट रहे थे, जिन्हें 22-23 नवंबर 2005 की दरम्यिानी रात एक पुलिस टीम ने कथित तौर पर हिरासत में ले लिया और दंपती को एक वाहन में ले जाया गया जबकि प्रजापति को दूसरे वाहन में ले जाया गया.

सीबीआई के मुताबिक 26 नवंबर 2005 को सोहराबुद्दीन शेख को कथित तौर पर गुजरात और राजस्थान पुलिस की एक संयुक्त टीम ने मार गिराया और तीन दिन बाद कौसर बी मारी गई. प्रजापति 27 दिसंबर 2006 को गुजरात - राजस्थान सीमा पर एक मुठभेड़ में मारा गया.

 अमित शाह को बरी कर दिया था कोर्ट ने

सीबीआई ने इस मामले में 38 लोगों को आरोपी बनाया था. अभियोजन ने 210 गवाहों से पूछताछ की जिनमें से 92 मुकर गए. अदालत का 21 दिसंबर का फैसला आने से पहले सबूतों के अभाव में गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह, राजस्थान के तत्कालीन गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया तथा डीजी वंजारा और पीसी पांडे जैसे वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को बरी कर दिया गया था. न्यायाधीश शर्मा का 21 दिसंबर का फैसला उनके करियर का संभवत: आखिरी फैसला था क्योंकि वह 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement