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दूसरी बार गुजरात के CM बने रूपाणी, ये 5 चुनौतियां कर रही हैं इंतजार

पिछले 22 साल में ये पहली बार है जब बीजेपी की सीटें 100 से नीचे गई हैं. चुनाव से पहले कई मुद्दों पर बीजेपी सरकार बैकफुट पर थी. अब सरकार बनने के बाद भी ये मुश्किलें कम नहीं हुई हैं. मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही विजय रूपाणी के लिए ये चुनौतियां उनका इंतज़ार कर रही हैं.  

फोटो क्रेडिट: VijayRupani.in फोटो क्रेडिट: VijayRupani.in
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली/अहमदाबाद,
  • 26 दिसंबर 2017,
  • अपडेटेड 12:33 PM IST

गुजरात में छठी बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन गई है. विजय रूपाणी ने मंगलवार को दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. 18 दिसंबर को आए नतीजों ने भारतीय जनता पार्टी के लिए खतरे की घंटी तो बजा दी है. चूंकि पिछले 22 साल में ये पहली बार है जब बीजेपी की सीटें 100 से नीचे गई हैं. चुनाव से पहले कई मुद्दों पर बीजेपी सरकार बैकफुट पर थी. अब सरकार बनने के बाद भी ये मुश्किलें कम नहीं हुई हैं. मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही विजय रूपाणी के लिए ये चुनौतियां उनका इंतज़ार कर रही हैं.  

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1. गांवों में BJP को लोकप्रिय बनाना

विजय रूपाणी और नितिन पटेल के सामने सबसे अहम चुनौती राज्य के ग्रामीण इलाकों में पार्टी की स्थिति को मजबूत करने की है. बीते चुनावों में जिस तरह पार्टी ने ग्रामीण इलाकों में अपनी पकड़ कांग्रेस के हाथ खोई है उससे केन्द्रीय नेतृत्व सकते में हैं. वहीं 2019 के आम चुनावों के मद्देनजर एक बार फिर से मुख्यमंत्री बन रहे रूपाणी और उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल को ग्रामीण इलाकों को विकास के गुजरात मॉडल के दायरे में लाना होगा. पार्टी ने इस चुनाव में गुजरात के चार बड़े शहरों में ही सर्वाधिक सीटें जीती हैं.

2. पटेलों की नाराजगी दूर करना

विधानसभा चुनाव के नतीजों में पार्टी का महज 99 सीटों पर सिमट जाने का बड़ा कारण आरक्षण के मुद्दे पर पटेलों की नाराजगी को माना जा रहा है. जिस तरह हार्दिक पटेल और कांग्रेस पार्टी ने प्रचार के दौरान पटेल समुदाय को बीजेपी से अलग करने की मुहिम छेड़ी है, पार्टी आलाकमान को 2019 के लिए खतरे की घंटी सुनाई दे रही है. लिहाजा, विजय रूपाणी के साथ नितिन पटेल को नेतृत्व के शीर्ष पर रखकर पार्टी ने दोनों को जिम्मेदारी दी है कि पटेल वोटबैंक में हुए नुकसान की भरपाई की जाए जिससे 2019 में उन्हें पटेल समुदाय की नाराजगी का सामना न करना पड़े.

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3. 2019 में बीजेपी का किला बचाना

विधानसभा चुनावों कांग्रेस के खाते में बढ़ी सीटों ने बीजेपी को किला गंवाने का अहसास करा दिया है. जबकि 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने राज्य की सभी सीटों पर विजय हासिल कर प्रधानमंत्री बने नरेन्द्र मोदी को मजबूत करने का काम किया है. लेकिन विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन से एक बार फिर चुनौती 2019 में पीएम मोदी को मजबूत करने के लिए राज्य की सभी लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने की है. 2014 में पार्टी ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ करते हुए सभी 26 सीटों पर परचम लहराया था. ऐसे में 2019 में एक सीट भी कम होने पर पार्टी की साख पर बट्टा लग सकता है.

4. पहले से ताकतवर विपक्ष से विधानसभा में निपटना

गुजरात में बीजेपी सरकार के बीते चार कार्यकाल में तीन के दौरान नरेन्द्र मोदी खुद राज्य का नेतृत्व कर रहे थे. उस दौरान लगातार राज्य में कांग्रेस एक कमजोर विपक्ष की भूमिका में रही. लेकिन विजय रूपाणी की पिछली बीजेपी सरकार के बाद पार्टी को एंटीइन्कंबेंसी के असर से सत्ता गंवाने का गंभीर खतरा खड़ा हो गया था.

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लेकिन किसी तरह पार्टी की साख बचाने में कामयाब होने के बाद भी बीजेपी की नई सरकार के सामने विधानसभा में एक मजबूत विपक्ष के तौर पर कांग्रेस पार्टी मौजूद रहेगी. लिहाजा, इस सरकार ने बीजेपी को विधानसभा के रास्ते राज्य के लिए नीतियां निर्धारित करने में कांग्रेस के मुखर विरोध का सामना करना होगा. इस बार भाजपा को विधानसभा में पहले से ज्यादा मजबूत विपक्ष मिलेगा. ये भी पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है.

5. युवा नेताओं को अपने तजुर्बे से पीछे छोड़ना

राज्य की नई विधानसभा में विपक्ष के खेमें से बीजेपी सरकार के लिए एक राहत है हालांकि इसका फायदा उठाने के लिए उसे अपने तजुर्बे का सहारा लेना होगा. विधानसभा में कांग्रेस के पास अधिकांश ऐसे विधायक हैं जो पहली बार चुनाव जीतकर सदन में पहुंचे हैं. हालांकि यह नए नेता जनता के बीच मुखर रहे और चुनाव में बीजेपी के नुकसान का कारण भी बने.

लेकिन विधानसभा में बीजेपी के वरिष्ठ और ज्यादा तजुर्बेकार नेताओं को कांग्रेस के इन युवा चेहरों को साधते हुए पीछे छोड़ने का काम करना होगा. यदि बीजेपी की यह नई सरकार इस काम को करने में विफल होती है तो 2019 में ये चेहरे उनके लिए बड़ी परेशानी लेकर आ सकते हैं. सदन में अल्पेश-जिग्नेश जैसे कई युवा पहुंचे हैं. ऐसे में इस युवा शक्ति का भी पार्टी को सामना करना पड़ेगा.

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