
दिल्ली-एनसीआर में शामिल गुरुग्राम को देश की सबसे चमक-दमक वाली मेट्रो सिटीज में से एक माना जाता है. सड़कों पर भागती लग्जरी कारें, आलीशान इमारतें, आईटी कंपनियों के ऊंचे-ऊंचे दफ्तर, शॉपिंग मॉल्स के अलावा भी यहां बहुत कुछ है जो इसे साइबर सिटी के साथ ही ड्रीम सिटी का विशेषण देने को मजबूर करता है. लेकिन इस चकाचौंध से इतर यहां एक स्याह दुनिया भी है. इसी दुनिया का हिस्सा हैं तपस्या. 10x12 के कमरे में जिंदगी गुजार रहीं तपस्या ट्रांसजेंडर और सेक्स वर्कर हैं. उनसे कुछ देर की बातचीत के बाद ही आपको दुनियाभर में ट्रांसजेडर्स के हक, तरक्की पसंदगी की बातें, तर्क और परिभाषाएं बेमानी लगने लगेंगी.
तपस्या एक घटना के जिक्र से अपने बारे में बताना शुरू करती हैं, 'मैं हमेशा की तरह उस दिन अपनी तयशुदा जगह पर खड़ी थी. तभी मेरे सामने एक कार आकर रुकी. कार में बैठा लड़का उतरकर मेरे पास आया और मुझसे रेट पूछा. मेरे रेट बताने पर वो कहता है कि इससे दस गुना ज्यादा पैसा देगा. मैं उसके साथ जाने को तैयार हो जाती हूं. कार में बैठकर थोड़ी दूर जाने पर उसके कुछ दोस्त भी आकर बैठ जाते हैं. मैं विरोध करती हूं कि एक से ज्यादा लोगों के बारे में कोई बात तय नहीं हुई थी तो वो मुझे गंदी गालियां देते हैं. कहते हैं कि काम करके इसे ट्रेन की पटरी पर फेंक देंगे. मैं बड़ी मुश्किल से उनसे पीछा छुड़ाकर वहां से भागने में कामयाब हो पाई.'
इतना कहते-कहते तपस्या का गला भर आता है. कुछ पूछा जाए, उससे पहले वो खुद बोलती हैं- 'आखिर कौन ये काम करना चाहता है. लेकिन न करें तो और करें भी क्या? नौकरी कोई देगा नहीं और खाने-जीने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा.'
मूल रूप से बिहार के मधुबनी जिले की रहने वाली तपस्या सेक्स वर्कर हैं. रात में जब हम और आप अपने घरों में सो रहे होते हैं, उस वक्त तपस्या और उनके जैसी कई सेक्स वर्कर गुरुग्राम की सड़कों पर ग्राहकों का इंतजार कर रही होती हैं.
तपस्या बताती हैं कि जन्म भले ही लड़के के शरीर में हुआ हो, लेकिन वो कभी भी इस शरीर को स्वीकार नहीं कर पाईं. उन्हें हमेशा लगता रहा कि जैसे उनकी आत्मा किसी दूसरे शरीर में कैद हो. 12-13 साल की उम्र से जब शरीर में हार्मोनल बदलाव होते हैं, तो उनके भी हुए.
लड़कों के साथ घूमना उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं आता था. लेकिन लड़कियों से बातें करना, उनकी तरह कपड़े पहनना, घर के काम करना अच्छा लगता था. सिर से मां का साया पैदा होने के कुछ महीनों बाद ही उठ गया था. घर में पिता और भाई थे, जिन्हें ये सब नामंजूर था. वो समझाते कि लड़कों की तरह चलो, बाल छोटे रखो, नहीं मानने पर गालियां देते, पीटते.
16 साल की होने पर उन्होंने घर से बाहर निकलकर आर्केस्ट्रा में डांस शुरू कर दिया, तब समझ आया कि वो अकेली नहीं हैं, दुनिया में उनके जैसे कई और भी हैं. यहीं से मन में घर छोड़ने का ख्याल आया.
दिल्ली आईं तो जिस्मफरोशी के धंधे में धकेल दिया गया
आर्केस्ट्रा में साथ काम करने वाले एक शख्स ने दिल्ली चलने का ऑफर दिया. लालच देने के लिए बताया कि दिल्ली में डांस के बदले गांव-देहात से ज्यादा पैसे मिलते हैं. जब उसके साथ दिल्ली आईं तो जिस्मफरोशी धंधे में धकेल दिया गया. ये काफी बुरा अनुभव था. एक महीने बाद किसी तरह से बचकर अपने गांव लौटी. लेकिन कहते हैं ना कि प्रॉस्टीट्यूशन वो जंगल है, जिसमें कोई एक बार गया तो बाहर नहीं निकल सकता. पैसे की जरूरत पड़ी तो वापस दिल्ली लौटकर वही काम फिर से शुरू करना पड़ा.
तपस्या अपनी कहानी सुनाते-सुनाते भावुक हो जाती हैं. वो कहती हैं, 'बचपन से बहुत कुछ सहा है. आसपास के लोग मेरे पिता से कहते थे कि तेरा बेटा मौगा है. मेरा भाई मुझे पीटता था. मुझे किसी से मिलने की मनाही होती. मैं कमरे में खूब रोती थी. अब भले ही सेक्स वर्कर हूं, लेकिन जेब में चार पैसे हैं तो किसी की इस तरह दिनभर घुड़कियां तो नहीं सुननी पड़तीं.'
कुछ और काम करने का क्यों नहीं सोचा? इस पर तपस्या कहती हैं, 'मैं ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हूं और वैसे भी हमें नौकरी कौन देगा. पहले एक घर में काम करती थी. वहां मालिक ने मेरे साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की तो काम छोड़ दिया'.
होली के दिन भांग पिलाकर नशे में किया गया गलत काम
तपस्या अपने साथ घटी बचपन की एक घटना बताती हैं- 'मैं छोटी थी. घर के पास रहने वाले शख्स ने होली के दिन मुझे भांग पिलाकर नशे में मेरे साथ गलत काम किया. मैं ये घटना किसी को बता नहीं पाई. भाई या पिता से कहती तो मुझे ही पीटने लगते. मुझे अपनी जिंदगी पर तरस आने लगा था.' अब कोई बदतमीजी या गलत हरकत करता है तो पुलिस से भी मदद नहीं लेती. हमारी कोई नहीं सुनने वाला है. अगर किसी से मदद मांगने जाएंगे तो उलटा हमें ही दोषी बनाएगा. कुछ साल में ये सब कुछ छोड़कर अपने गांव लौट जाऊंगी. फिर वहीं अपना कोई काम शुरू करूंगी.
15 साल पहले अपना घर छोड़ दिल्ली आई रूबी की दास्तान
तपस्या से बातचीत जारी थी तभी कमरे में रूबी (बदला हुआ नाम) आकर बैठ जाती हैं. मेरठ की रहने वाली रूबी भी ट्रांसजेडर हैं. 15 साल पहले रूबी अपना घर छोड़कर दिल्ली आ गई थीं. वो आज भी अपना बचपन नहीं भूलीं. रूबी कहती हैं, 'उस समय को बचपन कहूं भी या नहीं, ये समझ नहीं आता. सावन में झूले लगते थे तो मेरा भी मन उछलता था. लड़कियों के साथ खेलना-घूमना मुझे जितना पसंद था, घरवालों को ये उतना ही अखरता था.'
घरवाले कहते थे कि अगर हमारे साथ रहना है तो लड़कों की तरह रहो, वरना घर छोड़कर चले जाओ. बाहर जाकर जैसे मर्जी वैसे रहना. न हमें तुमसे कोई मतलब रहेगा, न तुम हमसे कोई मतलब रखना. ये बोलते-बोलते रूबी की आंखें भर गईं. वो पूछती हैं, 'आप खुद बताइए, अगर मैं अपने अंदर से लड़का होना फील नहीं कर रही हूं तो क्या करूं? इसमें मेरी गलती तो नहीं है. क्या मुझे कोई शौक है कि मैं लड़का होकर भी लड़कियों के कपड़े पहनकर घूमूंगी? आखिर कौन ही ऐसा करना चाहेगा?'
गुरुग्राम आने की क्या वजह बनी? रूबी का जवाब था- 'जब घरवालों ने साथ देने से मना कर दिया तो मेरे पास और कोई रास्ता नहीं बचा था. मैं सब कुछ छोड़कर पहले दिल्ली आई और यहां एक होटल में काम शुरू कर दिया. साथ काम करने वाले तंज कसते, मेरे चलने-बोलने के तरीके का मजाक उड़ाते लेकिन मैं कभी उस ओर ध्यान नहीं देती थी. मुझे उम्मीद थी कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा'.
'लेकिन शायद मैं गलत थी. ताने रुकने की बजाय बढ़ते ही जा रहे थे, इसलिए हारकर मैंने होटल का काम छोड़ दिया'. फिर सामने के चौराहे की ओर इशारा करते हुए रूबी कहती हैं- 'मैं दिल्ली से गुरुग्राम आ गई और वहां पर एक दुकान में काम करने लगी. उस दौरान मुझे किसी ने सेक्स वर्क के बारे में बताया. मैं ना चाहते हुए भी इस काम में आ गई. फिर जो सिलसिला शुरू हुआ, वो चलता ही रहा. कभी-कभी सोचती हूं कि हमारी भी कैसी जिंदगी है?'
पढ़ाई को लेकर कभी कुछ सोचा है? सवाल पर रूबी कहती हैं कि पढ़ाई में मेरा बहुत मन लगता है. पहले पैसे नहीं थे तो पढ़ नहीं पाई, लेकिन अब इकट्ठे कर लिए हैं. इस बार ओपेन से 10वीं का फॉर्म भरा है. आगे भी पढ़ाई करूंगी. अच्छे से पढ़ लिया तो रोडवेज की भर्ती निकलती है, उसमें नौकरी लग जाएगी.
'सेक्स वर्क पसंद नहीं है, इसलिए ये सब कुछ छोड़कर आगे बढ़ना चाहती हूं. मेरे पास एक पार्टनर है जिससे मैं प्यार करती हूं और उससे ही शादी करूंगी'. ये सब कहते-कहते रूबी की आंखों में थोड़ी चमक दिखलाई पड़ती है. वो मजबूती से कहती हैं 'आसान तो कुछ भी नहीं है. लेकिन इस दुनिया में आए हैं तो जिंदगी ऐसे ही थोड़ी न जाने देंगे'.
तपस्या और रूबी से अलग नहीं है राधिका की भी जिंदगी
राधिका की जिंदगी भी तपस्या और रूबी से अलग नहीं है. राधिका बताती हैं कि मैं तब 15-16 साल की थी. मुझे लड़कियों के कपड़े पहनना पसंद था. मां को ये बात पता थी. लेकिन घरवालों और समाज के डर से वो मुझे लड़कों की तरह रहने के लिए समझाती थी. गांव में जब कभी लड़ाई हो जाती थी तो लोग मेरा मजाक बनाकर घरवालों पर तंज कसते थे.
तानों से तंग आकर मैंने 19 साल की उम्र में घर छोड़ दिया और दिल्ली आ गई. यहां आकर सबसे पहले काम ढूंढना शुरू किया, लेकिन किसी ने नौकरी नहीं दी. मेरा मजाक बनाते, 'लो 10 रुपये और आगे बढ़ो'. आखिरी रास्ता सेक्स वर्क का दिखा और मैं उसमें लग गई. अब गुरु के पास रहकर अपनी जिंदगी गुजर-बसर कर रही हूं. सेक्स वर्क के अलावा बस में पैसे मांग लेती हूं. जो कुछ मिल जाता है, उससे खर्च चल जाता है.
ये कहानी तपस्या, रूबी या राधिका भर की नहीं है. हमारे यहां ऐसे लोगों की बड़ी तादाद है जो समाज के तानों से तंग आकर नहीं चाहते हुए भी एक ऐसा रास्ता चुन लेते हैं, जिसपर चलने के बाद वापस लौटना भी चाहें तो नहीं लौट सकते. तपस्या और रूबी दोनों अभी सोसाइटी फॉर सर्विस टू वालंटरी एजेंसीज नाम की संस्था के साथ मिलकर गुरुग्राम में सेक्स वर्कर्स को एचआईवी और एड्स के बारे में न सिर्फ जागरुक कर रही हैं, बल्कि उन्हें नियमित जांच तथा गुप्त रोगों के इलाज जैसी और भी बातों के लिए प्रेरित कर रही हैं.
2011 की जनगणना के मुताबिक, 121 करोड़ की आबादी वाले भारत में कुल 4 लाख 87 हजार 803 ट्रांसजेंडर हैं. इनमें से उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 1 लाख 37 हजार 465 और लक्षद्वीप में सबसे कम 2 ट्रांसजेंडर हैं. 4.8 लाख ट्रांसजेंडर में से सिर्फ 56.10% ही साक्षर हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 74.04% का है. ट्रांसजेंडर्स की साक्षरता के मामले में मिजोरम सबसे आगे है और बिहार सबसे पीछे.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, शिक्षा ग्रहण करने वाले ट्रांसजेंडर भी प्रताड़ना का शिकार हो रहे हैं. इसमें टीचर और नॉन टीचिंग स्टाफ के अलावा स्टूडेंट्स द्वारा प्रताड़ना, गाली-गलौज, शारीरिक और यौन उत्पीड़न आदि के मामले शामिल है. अपने साथ हो रहे भेदभाव के चलते भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में ड्रॉपआउट ट्रांसजेंडर स्टूडेंट्स की संख्या बढ़ी है. वहीं राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के अनुसार देश के 52% ट्रांसजेंडर भीख मांगकर गुजारा करते हैं, जबकि 14% सेक्स वर्क का काम करते हैं. 3% ऐसे भी हैं जो भीख मांगने के साथ-साथ सेक्स वर्क भी करते हैं.
2014 में भारत में थर्ड जेंडर को मिली संवैधानिक मान्यता
अमेरिका में 13 वर्ष से अधिक उम्र के करीब 16.4 लाख ट्रांसजेंडर हैं. Pew Research Center की स्टडी के मुताबिक, अमेरिका में 18-29 वर्ष के करीब 5.1% बच्चे खुद को ट्रांसजेंडर या नॉन बाइनरी मानते हैं.
2014 नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए भारत में तीसरे जेंडर को संवैधानिक मान्यता दी थी. इसके करीब 4 साल बाद 2018 में LGBTQ+ को भी कानूनी तौर पर मान्यता मिल गई थी. लेकिन सच्चाई ये है कि आज भी तपस्या और उनके जैसे तमाम लोगों को समाज हाशिए पर रखता है. आखिर में सवाल वही अपनी जगह कायम है- अपनी हक की लड़ाई के लिए इन्हें कितनी 'तपस्या' करनी पड़ेगी?