
देश के कई राज्यों में कांवड़ यात्रा चल रही है. कांवड़िये बड़ी संख्या में यात्रा पर निकले हुए हैं लेकिन कई लोग ऐसे हैं जो चाहकर भी इस यात्रा में शामिल नहीं हो सके. इस बीच हरियाणा के रोहतक स्थित एक डाकघर में गंगाजल बेचा जा रहा है.
डाकघर के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी का कहना है कि बेचा जा रहा गंगाजल गंगोत्री से लाया गया है. उन्होंने कहा कि हमने ये पहल उन लोगों के लिए की है, जो कांवड़ यात्रा पर जाने में असमर्थ हैं. बेचे जा रहे गंगाजल पर विभाग कोई लाभ नहीं कमा रहा है, इसे बस लागत पर ही बेचा जा रहा है.
कांवड़ में जल भरकर शिवलिंग या ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाने की परंपरा होती है. सावन में भगवान शिव ने विषपान किया था और उस विष की ज्वाला को शांत करने के लिए भक्त, भगवान को जल अर्पित करते हैं. कांवड़ के जल से भगवान शिव का अभिषेक करने से तमाम समस्याएं दूर होती हैं और तमाम मनोकामनाएं पूरी होती हैं. जो लोग भी कांवड़ से भगवान शिव को नियमानुसार जल अर्पित करते हैं, उनको मृत्यु का भय नहीं होता.
हिंदू मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन में विष के असर को कम करने के लिए शिवजी ने ठंडे चंद्रमा को अपने मस्तक पर सुशोभित किया था. इसके बाद सभी देवताओं ने भोलेनाथ को गंगाजल चढ़ाया. तब से सावन में कांवड़ यात्रा का प्रचलन शुरू हुआ.
कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान राम को पहला कांवड़ ले जाने वाला माना जाता है. कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने झारखंड के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल भरकर देवघर स्थित बैधनाथ धाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था.