
हरियाणा का हिसार प्रशासन 350 किसानों के खिलाफ 16 मई को दर्ज किए गए सभी मामले वापस लेने को तैयार हो गया है. दरअसल, बीती 16 मई को हिसार में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर कोविड अस्पताल का उद्घाटन करने पहुंचे थे. इस दौरान किसानों ने उनके खिलाफ प्रदर्शन किया था. इसके बाद पुलिस और किसानों के बीच झड़प भी हुई थी. पुलिस को लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले तक छोड़ने पड़े थे.
ज़िले में 16 मई को चौधरी देवीलाल संजीवनी अस्पताल के उद्घाटन के दौरान हुई हिंसा के बाद जारी गतिरोध आज किसान संगठनों व जिला प्रशासन के अधिकारियों के साथ हुई वार्ता में समाप्त हो गया. वार्ता के सिरे चढ़ने के बाद सभी किसानों ने अपने विरोध प्रदर्शन को समाप्त करने की घोषणा की. इसके बाद विरोध प्रदर्शन में शामिल लोग वापस लौट गए.
सोमवार को हुई बातचीत में हिसार मंडल के आयुक्त चंद्रशेखर, पुलिस महानिरीक्षक राकेश आर्य, उपायुक्त डॉ प्रियंका सोनी व डीआईजी बलवान सिंह राणा ने किसान संगठन के 30 सदस्यी प्रतिनिधिमंडल से वार्ता की. वार्ता के दौरान कोरोना संक्रमितों के उपचार के लिए बीती 16 मई को चौधरी देवीलाल संजीवनी अस्पताल के उद्घाटन के बाद हुई हिंसा व इसके बाद के घटनाक्रम को लेकर विस्तार पूर्वक चर्चा हुई. वार्ता के दौरान 16 मई को किसानों के खिलाफ दर्ज केसों को वापिस लेने के बारे में सहमति बनी.
झड़प में दर्जनों किसान हुए थे घायल
16 मई को हुए इस झड़प में दर्जनों किसान घायल हुए थे. इसमें 5 महिला कॉन्स्टेबल समेत 20 पुलिसकर्मी भी घायल हुए थे. इस मामले में 350 किसानों पर आईपीसी की 11 अलग-अलग धाराओं में केस दर्ज किया गया.
किसानों के खिलाफ केस दर्ज किए जाने के विरोध में किसान यूनियन ने सोमवार को हिसार में प्रदर्शन किया. इससे पहले शहर के कई इलाकों में सुरक्षा बढ़ा दी गई थी और किसानों को रोकने के लिए जगह-जगह बैरिकेडिंग कर दी गई. हिसार और उसके आसपास के इलाकों में रैपिड एक्शन फोर्स के 3 हजार जवानों की तैनाती की गई.
किसानों की मांग थी कि जिन किसानों के खिलाफ केस दर्ज किए गए हैं, उन्हें वापस लिया जाए. उन्होंने कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन का बायकॉट करने की धमकी भी दी थी. इससे पहले रविवार को जिला प्रशासन ने किसान नेताओं को बातचीत के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन किसान बातचीत के लिए नहीं आए और प्रदर्शन पर ही अड़े रहे.