
हरियाणा की राजनीति में 'बाबा जी' और 'गब्बर सिंह' जैसे नामों से मशहूर अनिल विज आखिरकार 24 घंटे के अंदर मान गए हैं. बीजेपी हाईकमान ने खुद दखल दिया और विज से फोन पर दो राउंड की बातचीत की. उनकी नाराजगी भी दूर करने का आश्वासन दिया है. दूसरे दिन यानी बुधवार को विज चंडीगढ़ पहुंचे और विधानसभा में फ्लोर टेस्ट में हिस्सा लिया. हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब विज नाराज हुए और मीटिंग छोड़कर चले गए. पिछले साढ़े चार साल के दरम्यान भी खबरें आईं कि नौकरशाही की दखलंदाजी या अन्य वजहों से विज नाराज हुए और मंत्रालय तक आना छोड़ दिया.
विज जितने जल्दी गुस्सा होते हैं, उतने ही जल्दी मान भी जाते हैं. यह बात खुद मनोहर लाल खट्टर भी स्वीकार करते हैं. फिलहाल, चर्चा यह है कि हरियाणा की राजनीति में अनिल विज को कैसे देखा जाता है और वो बीजेपी के लिए इतने मायने क्यों रखते हैं?
हरियाणा के पावर कॉरिडोर में अनिल विज के बारे में कहा जाता है कि वो जितने सरल हैं, उतने ही काम और ईमानदारी के लिए सख्त माने जाते हैं. अनिल विज अपने समर्थकों में कई नामों से प्रसिद्ध हैं, जिनमें दाढ़ी रखने के कारण 'बाबा जी' और नकारे अधिकारियों पर बरसने वाले 'गब्बर सिंह' के नाम खास हैं. स्पष्टवादी अनिल विज अपनी बात साफ और बिना किसी लाग लपेट के कह देते हैं. बार-बार ट्रांसफर झेलने वाले अधिकारी अशोक खेमका के समर्थन में उतरकर अनिल विज ने अपनी ही सरकार के खिलाफ भी बिगुल बजा दिया था.
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'नाराज होकर पहुंचे अंबाला, खाए गोल-गप्पे'
दो दिन बाद यानी 15 मार्च को विज 71 साल के हो जाएंगे. लेकिन उनकी सक्रियता किसी से छिपी नहीं है. जिस उम्र में बीजेपी अपने नेताओं को रिटायर कर देती है, उस उम्र वाले अनिल विज ना तो खुद रिटायर होने के मूड में हैं और ना ही संगठन उनको रिटायरमेंट देना चाहता है. यही वजह है कि मंगलवार को जब हरियाणा में सत्ता का उलटफेर हुआ और नए सीएम की रेस से विज ने खुद को दूर पाया तो वे बीच मीटिंग को छोड़कर चले गए. वे खुद कार चलाकर अपने शहर अंबाला पहुंचे और समर्थकों के साथ गोल-गप्पे और आलू टिक्की का आनंद लेने में बिजी हो गए.
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इस बीच, विज की नाराजगी की खबरें आम हो गईं. मीडिया में सवाल पूछे जाने लगे. तब खुद मनोहर लाल खट्टर आगे आए और उन्होंने हल्के-फुल्के में अंदाज में कहा कि विज को मना लिया जाएगा. वे जल्दी नाराज हो जाते हैं और जल्दी मान भी जाते हैं. मेरे उनसे 1990 से संबंध हैं.
'नड्डा ने दो बार फोन पर की बात!'
विज की नाराजगी को पार्टी हाईकमान ने गंभीरता से लिया और खुद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने उनसे फोन पर बातचीत की. सूत्र बताते हैं कि नड्डा ने विज को दो बार फोन किया. लंबी बातचीत हुई. हरियाणा के राजनीतिक पर पहलुओं पर चर्चा हुई और विज को मना लिया गया. बुधवार को फ्लोर टेस्ट की बारी आई तो विज फिर अपनी निजी कार से चंडीगढ़ पहुंच गए और बहुमत परीक्षण में पार्टी के साथ खड़े देखे गए. सूत्र बताते हैं कि विज को मंगलवार को भी मनाने की कोशिश की गई थी, लेकिन तब उनकी नाराजगी कम नहीं हुई थी. करनाल से बीजेपी सांसद संजय भाटिया को भी विज के पास भेजा गया था.
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क्यों नाराज हुए विज?
मंगलवार को बीजेपी और जेजेपी का अलांयस टूटने के बाद मनोहर लाल खट्टर और उनकी कैबिनेट ने इस्तीफा दे दिया था. पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष नायब सिंह सैनी को सीएम बनाने का फैसला लिया. पार्टी बैठक में विज को भनक लगी तो वे मीटिंग छोड़कर अंबाला चले गए. विज हरियाणा की राजनीति में 32 साल से सक्रिय हैं और छह बार से विधायक हैं. उन्हें अब तक सिर्फ एक बार चुनाव में हार मिली है. सूत्र कहते हैं कि विज के मुकाबले नायब सिंह सैनी हरियाणा की राजनीति में काफी जूनियर हैं. ऐसे में विज उनके अंडर काम करने के लिए तैयार नहीं हैं और उन्होंने यह बात पार्टी हाईकमान और खट्टर को भी बता दी.
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'खट्टर को देनी पड़ी सफाई'
विज की नाराजगी की खबरों पर खट्टर को भी सफाई देनी पड़ी. खट्टर ने कहा था, मैं अनिल विज को 1990 से जानता हूं. वो कभी नाराज हो जाते हैं और फिर खुद से मान भी जाते हैं. जल्दी नाराज हो जाते हैं लेकिन जल्दी मान भी हो जाते हैं. उनका स्वभाव है. पहले भी ऐसे मामले आए हैं. वे परेशान हैं लेकिन हम उनसे बात कर रहे हैं. हमारे नए मुख्यमंत्री भी उनसे बात करेंगे. कैबिनेट में उनका भी नाम है, लेकिन उन्होंने कहा कि अब मेरा मन नहीं है. अब उनका मन नहीं है तो कोई दबाव देकर काम कैसे करवाए. आगे फिर उनसे बात करेंगे.
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हरियाणा की राजनीति कितने पावरफुल हैं विज?
अनिल विज अविवाहित हैं. अपने तीन भाइयों के संयुक्त परिवार में रहते हैं. विज हर रोज सुबह 9 बजे से 12 बजे के बीच अपना दरबार लगाते हैं. इस बीच 200 से 300 लोग हर रोज उनसे मिलते हैं. यही कारण है कि अनिल विज वोटर्स में काफी लोकप्रिय हैं. विज अपने राजनीतिक विरोधियों पर अपनी तीखी टिप्पणियों के कारण हमेशा खबरों में बने रहते हैं. अब तक कांग्रेस को लेकर जितनी भी विवादित टिप्पणियां की गई हैं, उनमें से ज्यादातर अनिल विज ने ही की हैं.
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विज ने अब तक लड़े 7 चुनाव लड़े और 6 बार जीते
अनिल विज 1970 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के महासचिव बने. उन्होंने विश्व हिंदू परिषद, भारत विकास परिषद जैसे अन्य संगठनों में रहकर भी काम किया है. उसके बाद 1974 में विज की भारतीय स्टेट बैंक में नौकरी लग गई. 1990 में जब सुषमा स्वराज राज्यसभा के लिए चुनी गईं तो अंबाला छावनी सीट खाली हो गई. विज को बीजेपी ने नौकरी से इस्तीफा देने और उपचुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतारा. उन्होंने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. 1991 में वे भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष बने. 1996 और 2000 में उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और दोनों बार जीत हासिल की. 2005 में विज चुनाव हार गए. 2009 में वे अंबाला छावनी सीट से बीजेपी विधायक चुने गए. 2014 में विज फिर से बीजेपी विधायक चुने गए. 2019 में विज छठी बार विधायक का चुनाव जीते.
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कोरोना वैक्सीन के ट्रायल में शामिल होकर चर्चा में आए विज
साल 2020 में देश कोरोना से बेहाल था. वैक्सीन के ट्रायल की कवायद जोरों पर चल रही थी. तब अनिल विज आगे आए और 20 नवंबर 2020 को स्वेच्छा से एंटी-कोविड वैक्सीन के ट्रायल में शामिल हुए. उन्हें अंबाला छावनी अस्पताल में ट्रायल की डोज दी गई थी. विज उस समय हरियाणा सरकार में गृह और स्वास्थ्य मंत्री भी थे. विज ने घोषणा कर दी थी कि वो कोवैक्सीन ट्रायल में वॉलंटियर के तौर पर खुद को डॉक्टरों की देखरेख में सबसे पहले टीका लगवाएंगे.
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अनिल विज की अंबाला सीट क्यों महत्वपूर्ण?
अनिल विज हरियाणा की अंबाला कैंट सीट से विधायक हैं. यहां पंजाबी वोटरों का दबदबा है. कहते हैं कि जिस उम्मीदवार को पंजाबी वोटर्स का साथ मिलता है, वो विधानसभा पहुंच जाता है. अंबाला कैंट जनसंघ के जमाने से यह चुनिंदा सीटों में शामिल रही है. 1977 में इसी सीट से पहली बार सुषमा स्वराज विधायक चुनी गईं थीं. सुषमा सबसे कम उम्र (25 साल) में एमएलए बनी थीं और देवीलाल की सरकार में मंत्री बनने का रिकॉर्ड बनाया था. उस समय सुषमा जनता पार्टी में थीं. सुषमा ने 1987 में भी इस सीट से जीत हासिल की थी. इस सीट पर जनसंघ और बीजेपी या उसके विचारों के समर्थक ही विधायक बनते रहे हैं. विज ने भी यह सिलसिला कायम रखा. विज इस सीट से पहली बार 1996 में विधायक बने, लेकिन तब वो निर्दलीय थे. साल 2000 में भी उन्होंने निर्दलीय ही चुनाव जीता. बाद में 2009, 2014 और 2019 में उन्होंने बीजेपी की टिकट पर जीत हासिल की.