
कमर्शियल लैंड यूज (CLU) का गुरुग्राम में सबसे बड़ा खेल है. गुरुग्राम की ज्यादातर जमीन खेती योग्य है, लेकिन अपने फायदे लिए करीब हर सरकार ने कहीं आर-जोन तो कहीं कमर्शियल जोन बना दिया. पहले रियल एस्टेट एजेंट किसानों की लाख रुपये की जमीन खरीद लेते हैं फिर सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से उसका CLU करके करोड़ों में बेच देते हैं. ताजा मुकदमे में भी इसी बात का जिक्र है कि प्रशासनिक अधिकारियों एवं प्रभावी बिल्डर्स के बीच मिलीभगत के बिना रॉबर्ट-डीएलएफ लैंड डील संभव ही नहीं थी. इसमें बड़े अफसरों द्वारा नेताओं एवं मंत्रियों के साथ मिलकर कुछ खास लोगों को अवैध फायदा पहुंचाया गया.
ऐसे चेंज हुआ लैंड यूज
रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ दर्ज मुकदमे के मुताबिक बिना पैसे के ओंकारेश्वर प्रॉपर्टी ने रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी को 7.5 करोड़ में जमीन बेची थी. जिस चेक से पेमेंट दिखायी गयी वो खाते में नहीं पहुंचा. अब स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी को इसलिए दिया गया ताकि स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी के निर्देशक रॉबर्ट वाड्रा ओंकारेश्वर प्रॉपर्टी को उसी गांव में हाउसिंग लाइसेंस दिलवाने में उस समय के टाउन एंड कंट्री प्लानिंग मिनिस्टर पर अपना निजी प्रभाव डाल कर मदद कर सकें.
रॉबर्ट वाड्रा सोनिया गांधी के दामाद हैं और भूपेंद्र हुड्डा भी कांग्रेस की सरकार के मुख्यमंत्री इसलिए वाड्रा का भूपेंद्र हुड्डा पर निजी प्रभाव था और हुड्डा हरियाणा के टाउन एंड प्लानिंग मिनिस्टर थे. स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड ने इस जमीन पर हुड्डा से कमर्शियल कॉलोनी डेवलप करने का लाइसेंस लिया और इसके बाद यही जमीन स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड ने एक और कंपनी DLF को 58 करोड़ पर बेचा. DLF खुद भी हरियाणा की सबसे बड़ी रियल स्टेट कंपनी है तथा लाइसेंस लेने में सक्षम है. परंतु जैसे ही उसने यह जमीन 58 करोड़ रुपये में खरीदी, जिसके बाद वजीराबाद गुरुग्राम में सभी नियमों को ताक पर रखकर लगभग 350 एकड़ जमीन गलत अलॉट कर दी गई. इससे DLF को लगभग 5000 करोड़ का फायदा हुआ. इस तरह से पूरा मामला क्विड प्रो क्यू (Quid pro que) हुआ.
सुप्रीम कोर्ट ने डीएलएफ की 350 एकड़ जमीन पर किसी भी निर्माण पर रोक लगाई है, क्योंकि कागजों में ये वन विभाग की जमीन है. वजीराबाद में 2011 में आरटीआई में पता लगा कि ये ग्राम पंचायत की जमीन थी जो HSIDC ने एक्वायर की थी. तत्कालीन मुख्यमंत्री चौटाला की सरकार इस पर लेजर क्लब और पार्क बनाना चाहती थी. उनकी सरकार के जाने पर जब भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने प्राइवेट बिल्डर के लिए रास्ता खोल दिया. उस वक्त एक मात्र बिल्डर डीएलएफ ही था. दोबारा जब रीबिडिंग हुई तब 1700 करोड़ में 350 एकड़ जमीन दी. ये जमीन वन पर थी. आरटीआई एक्टिविस्ट हरिंदर ढ़ीगरा ने कहा, 'दरअसल यह जमीन पंजाब लैंड एंड फौरेस्ट एक्ट (PLFA act) के तहत आती है. पर्यावरण और वन मंत्रालय की इजाजत के बिना निर्माण नहीं हो सकता है.
क्विड प्रो क्यू (Quid pro que) का अर्थ होता है बदले में या फिर मुआवजा. रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ दर्ज शिकायत में इसी शब्द का इस्तेमाल हुआ है. मुकदमें में साफ तौर पर शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि 3 एकड़ की जमीन को लेकर DLF को बेचना और रॉबर्ट वाड्रा को 50 करोड़ का फायदा देना एक फेवर की तरह है. ये एक चाल की तरह है जिसमें साढ़े 300 एकड़ जमीन कौड़ियों के भाव ली गयी.
मानेसर लैंड डील में शिकायत करता ओम प्रकाश यादव ने बताया कि गुरुग्राम में जाम का लगना, पानी भर जाना ये सब मास्टरप्लान की वजह से है. गुरुग्राम में मास्टरप्लान में सिर्फ ये देखा जाता है कि आर जोन कहां है और कमर्शियल जोन कहां है? किसानों को धोखा और अपनों का ख्याल रखा जाता है. मास्टरप्लान के नाम पर लाखों की किसानों की जमीन अरबों की हो जाती है. कृषि वाली जमीन अपने आदमियों से खरीदवाते हैं फिर उसका मास्टरप्लान लेकर आते हैं. हुडा सरकार में करीब 3 मास्टर प्लान आए.
हरिंदर ढींगरा पेशे से आरटीआई एक्टिविस्ट हैं और कहते हैं कि चौटाला, हुडा या फिर खट्टर जो भी सरकार आयी, सभी ने मनमाना CLU बांटा. ये इंफ्रास्ट्रक्चर पर बोझ है. बहुत लोगों के CLU डायरेक्टर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग में 2016 से ही पेंडिंग हैं और बहुत ऐसे हैं जिन्होंने 2018 में अप्लाई किआ और उनका पास हो गया. ये सब सेटिंग से होता है. कुछ पैसे देकर बहुत आसानी से CLU मिल जाती है. यही वजह है कि थोड़ी सी बारिश में ही गुरुग्राम में पानी भर जाता है.