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हिमाचल: खराब सड़कों के कारण सेब को मंडियों तक पहुंचाने में हो रही दिक्कत

हिमाचल प्रदेश में जिला शिमला के ठियोग-हाटकोटी-रोहडू सड़क पिछले कई सालों से अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है. ये सड़क नेशनल हाइवे में शामिल है लेकिन इस सड़क पर कई सालों से राजनीति भी जोरों शोरों से चल रही हैं.

बारिश के कारण सड़कें बदहाल बारिश के कारण सड़कें बदहाल
सतेंदर चौहान
  • शिमला,
  • 17 अगस्त 2016,
  • अपडेटेड 12:28 PM IST

हिमाचल प्रदेश में जिला शिमला के ठियोग-हाटकोटी-रोहडू सड़क पिछले कई सालों से अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है. ये सड़क नेशनल हाइवे में शामिल है लेकिन इस सड़क पर कई सालों से राजनीति भी जोरों शोरों से चल रही हैं. करीब 90 किलोमीटर का ये मार्ग जिला शिमला का सबसे बड़ा सेब उत्पादित इलाका कवर करता है लेकिन इसकी दशा इतनी दयनीय है कि यहां से बागवान और आम जनता दोनों ही बेहद परेशान हैं.

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हिमाचल में भारी बरसात के बाद इस सड़क की हालत और भी दयनीय हो गयी है. सड़क अब पूरी तरह दलदल में तब्दील हो चुकी है और कई जगहों पर सड़क के दोनों ओर कई किलोमीटर लम्बा जाम लगा रहता है. इन दिनों हिमाचल में सेब सीजन जोरों पर है और बागवान सेब की फसलों को मंडियों तक समय रहते नहीं पहुंचा पा रहे हैं. जिससे हिमाचल की आर्थिकी माने जाने वाले सेब की फसल पर ख़ासा असर पड़ रहा है! हिमाचल में हर साल करीब 4000 करोड़ का सेब सीजन होता है!

जिला शिमला के ठियोग इलाके से रोहडू तक जाने वाला नेशनल हाइवे नबर 5. कहने को तो ये राष्ट्रीय उच्च मार्ग है लेकिन करीब 90 किलोमीटर तक के इस मार्ग की हालत इतनी खराब है कि पूरे सफर में इस सड़क पर चलने वाले वाहन सिर्फ झटके ही खाते गुजरते हैं.

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ठियोग हाटकोटी रोहडू कोई आम सड़क नहीं है बल्कि इस सड़क का सेब उत्पादन की आर्थिकी में एक बड़ा योगदान है. दरअसल ठियोग से लेकर रोहडू इलाके तक जिला शिमला का सबसे बड़ा सेब उत्पादित इलाका है. यानी 90 किलोमीटर के फासले में सेब की आर्थिकी करोड़ों रुपए की है.

बाबजूद इसके पिछले कई सालों से हिमाचल की सत्ता पर काबिज़ हुई सरकारों ने इस सड़क की दशा सुधारने का वायदे तो बहुत किए लेकिन ये वायदे सिर्फ विधानसभा चुनावों तक ही सीमित रहे. सड़क बेहद खराब होने की वजह से बागवानों के सेब मंडियों डेरी से पहुंच पाते हैं जिससे उन्हें एक बड़ा घाटा उठाना पड़ता है. इसी सड़क की सभी राजनैतिक दल राजनीति करते रहे लेकिन ना ही किसी ने यहां के बागवानों का दर्द और ना ही उनके नुकसान की भरपाई की किसी ने भी बात नहीं की.

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