
हिमाचल प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस वापसी करने में कामयाब रही. मुख्यमंत्री का ताज सुखविंदर सिंह सुक्खू के सिर सजा तो डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री बने है. कांग्रेस हाईकमान ने सीएम राजपूत समाज से बनाया तो वहीं डिप्टी सीएम की कुर्सी पर ब्राह्मण समुदाय को बैठाकर सिर्फ हिमाचल में सामाजिक संतुलन बनाने कोशिश ही नहीं की बल्कि 2024 के चुनाव के लिए मजबूत सियासी आधार रखा है.
कांग्रेस विधायकों की सहमति के बाद सीएम पद पर सुखविंदर सिंह सुक्खू और डिप्टीसीएम के पद मुकेश अग्निहोत्री के नाम पर मुहर लगी. सुक्खू-अग्निहोत्री दोनों ही नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी सहित तमाम नेताओं की मौजदगी में अपने-अपने पद की शपथ ली. कांग्रेस ने सीएम और डिप्टीसीएम के जरिए जातीय समीकरण को साधने की कवायद की है, लेकिन क्षेत्रीय संतुलन नहीं बना सकी. ऐसे में माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल के जरिए क्षेत्रीय समीकरण साधने की कोशिश होगी.
सीएम सुक्खू राजपूत समाज से आते हैं
हिमाचल प्रदेश राजपूत बाहुल्य प्रदेश है. इसीलिए प्रदेश में अब तक सात मुख्यमंत्री बने हैं, जिसमें से छह राजपूत और एक ब्राह्मण समुदाय से बने है. शांता कुमार को छोड़कर बाकी छह मुख्यमंत्री राजपूत रहे हैं. लिहाजा सुखविंदर सिंह सुक्खू एक प्रभावशाली ठाकुर समुदाय से हैं और बड़ा चेहरा है. कांग्रेस ने ठाकुर समुदाय को साधने के लिहाज से सत्ता की कमान सुक्खू के हाथ में सौंपी है ताकि इसका फायदा 2024 के लोकसभा चुनाव में मिल सके.
डिप्टी सीएम ब्राह्मण समुदाय से हैं
मुख्यमंत्री का पद राजपूत समुदाय को दिया गया तो डिप्टी सीएम की कुर्सी मुकेश अग्निहोत्री को दी गई है. मुकेश अग्निहोत्री ब्राह्मण समुदाय से आते हैं. कांग्रेस ने सुक्खू के जरिए ठाकुर समुदाय को साधने की कोशिश की है तो मुकेश अग्निहोत्री के जरिए ब्राह्मणों को भी साधने का दांव चला है. मुकेश अग्निहोत्री हिमाचल प्रदेश कांग्रेस का बड़ा चेहरा है और जयराम ठाकुर सरकार में नेताप्रतिपक्ष थे.
कांग्रेस 50 फीसदी वोट को दिया संदेश
कांग्रेस ने राजपूत सीएम और ब्राह्मण डिप्टी सीएम के जरिए हिमाचल के 50 फीसदी वोटों को साधने की कवायद की है. राज्य में जातिगत आधार पर सबसे अधिक राजपूत समुदाय है. हिमाचल में 32 फीसदी के करीब राजपूत वोटर हैं तो 18 फीसदी ब्राह्मण है. इस तरह से प्रदेश में सवर्ण जातियों का वोट 50 फीसदी के करीब है. कांग्रेस ने राजपूत सीएम और ब्राह्मण डिप्टी सीएम बनाकर सवर्ण समुदाय को एक साथ जोड़े रखने की कवायद की है.
होली लॉज से बाहर का सीएम
हिमाचल में अस्सी के दशक से कांग्रेस जब भी सत्ता में आई है तो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर वीरभद्र सिंह बैठते रहे हैं. वीरभद्र सिंह के निवास को होली लॉज के नाम से जाना जाता है. इसीलिए जब जब हिमाचल में कांग्रेस सरकार आई तो राज्य को सीएम होली लॉज से ही मिलता रहा यानी वीरभद्र सिंह. लेकिन इस बार छह बार के मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह के बिना चुनाव हुआ और कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई. ऐसे में इस बार ना तो मुख्यमंत्री और ना ही उपमुख्यमंत्री, दोनों ही होली लॉज से नहीं हैं.
वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य दूसरी बार विधायक बनने में जरूर कामयाब रहे थे. इसके बावजूद कांग्रेस ने सुखविंदर सिंह सुक्खू को सत्ता की कमान सौंपी है. भले ही मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री होली लॉज के रहने वाले नहीं हैं, लेकिन देखा जाए तो डिप्टी सीएम होली लॉज वालों की ही पसंद हैं. मुकेश अग्निहोत्री पूर्व सीएम वीरभद्र खेमे के माने जाते हैं और करीबी रहे हैं. इसीलिए मुकेश अग्निहोत्री को होली लॉज की पसंद माना जा रहा है. भले ही प्रत्यक्ष तौर पर नहीं, लेकिन वीरभद्र के जरिए अप्रत्यक्ष तौर पर उनका होली लॉज से पुराना और गहरा नाता है.
क्षेत्रीय संतुलन साधने की चुनौती
बता दें कि सुखविंदर सिंह सुक्खू हमीरपुर जिला के नादौन से विधायक हैं जबकि मुकेश अग्निहोत्री जिला ऊना के हरोली से विधायक हैं. इस तरह से दोनों ही नेता हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से आते हैं, जहां से केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर सांसद हैं. बीजेपी के प्रेम कुमार धूमल का यह इलाका माना जाता है. कांग्रेस ने सीएम और डिप्टीसीएम के जरिए ब्राह्मण और राजपूत समुदाय को साधने के लिए ये रणनीति बनाई है, लेकिन क्षेत्रीय संतुलन नहीं बना सकी. ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस नई कैबिनेट के जरिए क्षेत्रीय संतुलन बनाने की कोशिश करेगी तो एससी और एसटी समुदाय को भी तवज्जे दी जा सकती है.
कांग्रेस को नए मंत्रिमंडल के गठन के लिए जातीय और क्षेत्रीय संतुलन बनाने होंगे. अनुभवी नेताओं के साथ युवाओं को भी मंत्रिमंडल में तरजीह देनी होगी, क्योंकि कौल सिंह ठाकुर, रामलाल ठाकुर, आशा कुमारी, प्रकाश चौधरी और ठाकुर सिंह भरमौरी के हारने के चलते नए नेताओं की लॉटरी लगने के आसार बन गए हैं. हिमाचल में क्षेत्रीय समीकरण बैठाने को जिला कांगड़ा और शिमला की भागीदारी पार्टी को मंत्रिमंडल में बढ़ानी पड़ेगी. सीएम और डिप्टीसीएम से ब्राह्मण और राजपूत को संदेश दिया गया है, लेकिन ओबीसी और अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग को भी साधने की चुनौती होगी.