
हिमाचल प्रदेश की सियासत में तीन दशक से हर बार सत्ता परिवर्तन होता रहा है, लेकिन बीजेपी ने इस रवायत को तोड़ने के लिए पूरी तरह कमर कस ली है. सत्ता में वापसी के लिए बेताब कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायकों को दोबारा से चुनावी मैदान में उतारने का मन बना लिया है, लेकिन असली टेंशन ऐसी सीटों पर है, जिसे सालों से वह हारती आ रही. सूबे में करीब एक दर्जन ऐसी विधानसभा सीटें है, जहां पर कांग्रेस को मजबूत कैंडिडेट तलाशना पड़ा रहा है.
हिमाचल विधानसभा चुनाव का भले ही औपचारिक ऐलान न हुआ हो, लेकिन कांग्रेस ने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने के साथ-साथ कैंडिडेट की तलाश भी शुरू कर दी है. राजधानी शिमला के एक होटल में बुधवार को पार्टी के प्रदेश प्रभारी राजीव शुक्ला की अध्यक्षता में कई सीटों को लेकर खूब मंथन हुआ है. इस बैठक में प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह, चुनाव प्रचार कमेटी के अध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू, नेता विपक्ष मुकेश अग्निहोत्री, पंजाब में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा और सह प्रभारी तेजेंद्र सिंह बिट्टू भी मौजूद रहे.
कांग्रेस 2017 में जीती हुई सीटों पर प्रत्याशियों को बदलने का जोखिम भरा कदम नहीं उठाना चाहती. ऐसे में कांग्रेस ने अपने मौजूदा 20 विधायकों को चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी तो कर ही रखी है, लेकिन साथ पूर्व मंत्रियों और दिग्गज नेताओं को भी चुनावी रण में उतार सकती है. इस तरह करीब 35 बड़े नेताओं को दोबारा प्रत्याशी बनाने की तैयारी में है. ऐसे पार्टी के लिए सबसे बड़ी दिक्कत उन सीटों पर है, जहां पर लंबे समय से उसे हार मिल रही है.
हिमाचल प्रदेश में झंडूता, धर्मपुर, कसौली, नाचन भोरंज, शाहपुर और कुटलैहड़ जैसी करीब एक दर्जन विधानसभा सीटें हैं, जिन पर कांग्रेस को लंबे समय से हार मिल रही है. कांग्रेस सत्ता में भी आई, लेकिन इन सीटों पर उसे दो दशक से जीत नहीं मिल सकी. ऐसे में कांग्रेस ने इस बार के विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर जीतने की रणनीति बनाई है, पर उसे इन सीटों पर मजबूत प्रत्याशियों को उतारने के लिए खूब माथापच्ची करनी पड़ रही है. कांग्रेस को इन विधानसभा क्षेत्रों में ऐसे कैंडिडेट नहीं मिल रहे हैं, जिन पर दांव खेलकर जीत का परचम फहरा सके.
विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस प्रत्याशी बनने को 68 विधानसभा सीटों पर करीब 1,347 आवेदन आए हैं. आवेदन भेजने के लिए गुरुवार तक का समय था. कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए 677 नेताओं और कार्यकर्ताओं ने ई-मेल और 670 ने कागज के माध्यम से आवेदन कर दावेदारी जताई है. चुनाव लड़ने के लिए किए आवेदनों को प्रदेश कांग्रेस कार्यलय में छंटनी की जाएगी. इसके बाद प्रत्याशियों के नामों का पैनल अंतिम मंजूरी के लिए केंद्रीय चुनाव स्क्रीनिंग कमेटी को भेजा जाएगा.
वहीं, बीजेपी ने भी चुनावी बिगुल फूंक दिया है, लेकिन उसके तीन दशकों से हर बार सत्ता बदलने वाले रवायत के चलते उसे इस बार अपनी सरकार बरकरार रखने की बड़ी चुनौती है. हिमाचल प्रदेश की राजनीति में साल 1985 के बाद से अब तक हर चुनाव में सत्ता बदली है. ऐसे में कांग्रेस का आत्मविश्वास बढ़ा हुआ है, जबकि भाजपा इस इतिहास को इस बार बदलने में जुटी है.
बीते साल स्थानीय निकाय और पंचायत चुनावों में कांग्रेस पर बीजेपी भारी तो पड़ी थी, लेकिन उपचुनाव में हारने के बाद उसका मनोबल कमजोर हुआ था. ऐसे में कांग्रेस के हौसले बुलंद है, लेकिन आम आदमी पार्टी ने मुकाबले को इस बार त्रिकोणीय बना दिया है.
2017 के सियासी समीकरण
बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने राज्य की 68 सीटों में से 44 पर जीत हासिल की थी. कांग्रेस को 21 और माकपा को एक सीट मिली थी. दो सीटें निर्दलीय के हिस्से में आई थी. हालांकि, इसके पहले 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी सभी चार सीटें जीतने में सफल रही थी तो कांग्रेस को महज एक सीट मिली थी. हालांकि, इस बार सियासी समीकरण बदले हैं और चुनाव दो ध्रुवी होने के बजाय त्रिकोणीय बनता नजर आ रहा है. ऐसे में देखना है कि सत्ता की जंग कौन जीत पाता है?