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2% से भी कम सिख आबादी वाले हिमाचल में क्यों सक्रिय हैं खालिस्तान समर्थक?

हिमाचल प्रदेश में सिख समुदाय की आबादी 2 फीसदी से भी कम है. इसके बावजूद अचानक खालिस्तानी समर्थक सक्रिय हो गए हैं और वो कभी विधानसभा भवन के गेट पर झंडा लगाते हैं तो कभी सीएम को पत्र लिखकर धमकी देते हैं. इतना ही नहीं खालिस्तानी हिमाचल के कुछ हिस्सों में जनमत संग्रह तक की बात करते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर हिमाचल में सिख आंतकी क्यों सक्रिय हो गए हैं?

हिमाचल प्रदेश में खालिस्तानी समर्थक झंडे हिमाचल प्रदेश में खालिस्तानी समर्थक झंडे
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 11 मई 2022,
  • अपडेटेड 10:26 AM IST
  • पंजाब से अलग होकर राज्य बना था हिमाचल प्रदेश
  • हिमाचल में खालिस्तानी समर्थक अचानक सक्रिय हुए
  • हिमाचल में सिख समुदाय का सियासी प्रभाव कितना?

हिमाचल प्रदेश विधानसभा के मुख्य गेट पर अचानक खालिस्तान के समर्थन में झंडे लगा दिए जाते हैं तो कभी आतंकी संगठन सिख फॉर जस्टिस की तरफ से सूबे के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को धमकी दी जाती है. हिमाचल विधानसभा चुनाव से पहले अचानक खलिस्तान का मुद्दा गर्मा गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर पंजाब के अलगाववादियों का हिमाचल से क्या लेना देना है? 

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बता दें हिमाचल प्रदेश पहले पंजाब का हिस्सा हुआ करता था, जिसे पेप्सू स्टेट कहा जाता था. 1966 में पंजाब से अलग होकर हिमाचल प्रदेश राज्य बना था. हिमाचल में सिख समुदाय की आबादी भले ही मुस्लिम समाज से कम है, लेकिन आर्थिक और सियासी तौर पर वो काफी मजबूत माने जाते हैं. शिमला से लेकर धर्मशाला और कांगड़ा तक सिख समुदाय का वर्चस्व साफ दिखता है. हिमाचल गठन से ही पड़ोसी राज्य पंजाब में सिख आंतकवाद देखा गया है और विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अचानक हिमाचल में सक्रिय हो गए हैं, जो चिंता का सबब बना गया है. 

हिमाचल में खालिस्तानी अचानक सक्रिय हो गए

हिमाचल प्रदेश सरकार ने इस साल मार्च में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान मारे गए खालिस्तानी आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले के झंडे वाले वाहनों के राज्य में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था. सरकार के इस कदम के बाद से आतंकवादी संगठन सिख फॉर जस्टिस बौखलाया और चुनावी सरगर्मियों को देखते हुए राज्य में खालिस्तानी समर्थक सक्रिय हो गए. विधानसभा के बाहर खालिस्तान के समर्थन में झंडे लगाए गए. इसकी जिम्मेदारी कनाडा में बैठे सिख फॉर जस्टिस संगठन के चीफ गुरपतवंत सिंह पन्नू ने ली. 

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गुरपतवंत सिंह पन्नू ने हिमाचल के सीएम जयराम ठाकुर को खत लिखते हुए खालिस्तानी झंडे लगाने की धमकी दी थी. पन्नू ने खत में धमकी देते हुए कहा था कि वह शिमला में जरनैल सिंह भिंडरावाले और खालिस्तान का झंडा फहराएगा. धर्मशाला में जिस दिन खलिस्तानी समर्थक झंडे लगाए गए थे और विधानसभा की दीवारों पर पोस्टर भी लगाए गए थे, उसी दिन पंजाब में पुलिस ने तरनतारन जिले में विस्फोटकों के साथ दो खालिस्तानी समर्थक को गिरफ्तार कर आतंकी हमले को टाल दिया था. हाल ही में हरियाणा के करनाल में खलिस्तानी समर्थक बब्बर खालसा के चार संदिग्ध आतंकी पकड़े गए थे और उनके पास से हथियारों का जखीरा जब्त हुआ था. 

हिमाचल के सीएम को पहले भी दी गई थी धमकी

हिमाचल में भिंडरावाले और खालिस्तान समर्थित झंडों पर बैन की वजह से कनाडा में बैठा गुरपतवंत सिंह पन्नू भड़का हुआ है. ऐसे में खालिस्तानी समर्थक संगठन हिमाचल में सक्रिय है और कभी झंडे लगाते हैं तो कभी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को धमकी भरा पत्र लिख रहे हैं. हालांकि, इससे पहले भी साल 2021 में गुरपतवंत सिंह पन्नू ने जयराम ठाकुर को भारतीय ध्वज हिमाचल में न फहराने की धमकी दी थी. जून 2021 में भी प्रसिद्ध नैना देवी मंदिर के पास एक सड़क के किनारे लगे मील पत्थर पर लिखा गया था, 'खालिस्तान की सीमा यहां से शुरू होती है.'

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हिमाचल में मुस्लिमों से भी कम सिख आबादी 

दरअसल, हिमाचल कभी अविभाजित पंजाब का हिस्सा था. राज्य गठन के बाद पंजाब में सिख बहुसंख्यक है तो  हिमाचल में अल्पसंख्यक के रूप में रहते हैं. हिमाचल में सिख 1.6 फीसदी है जबकि मुस्लिम 2.1 फीसदी है. राज्य में कोई भी मुस्लिम विधायक नहीं बन सका, लेकिन सिखों का प्रतिनिधित्व हिमाचल की राजनीति में अकसर रहा है. मौजूदा समय में भी सिख समुदाय से एक विधायक है. इससे पूर्व हिमाचल विधानसभा में हरि नारायण सैनी के रूप में एक दमदार सिख विधायक हुआ करते थे और वे मंत्री भी रहे हैं. 

हिमाचल प्रदेश में सिख समुदाय के गुरुद्वारा पौंटा साहिब स्थित है. माना जाता है कि पौंटा साहिब पर सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह ने सिख धर्म के शास्त्र दसम् ग्रंथ या 'दसवें सम्राट की पुस्तक' का एक बड़ा हिस्सा लिखा था. गुरु गोबिंद सिंह चार साल यहां रुके थे. सिख धार्मिक संस्था पंथक अकाली लहर के नाम से कायम है. इसके चलते सिख समुदाय के लोग बड़ी संख्या में आते हैं. शिमला, धर्मशाला और कांगड़ा में होटल से लेकर टूर ट्रेवल्स एजेंसी पर भी सिख समुदाय का वर्स्चव है. 

पंजाब से सटा होने के चलते सिख समुदाय का दखल

पंजाब से सटा होने के चलते सिखों समुदाय के लोगों का हिमाचल में अच्छा खासा दखल भी है. हिमाचल में पंजाबी भाषा लागू करने की मांग भी उठती रही है. पड़ोसी राज्य के चलते पंजाब के सिखों का आना जाना भी है. वहीं, सिख फॉर जस्टिस' ऐसा संगठन है जो खालिस्तान के निर्माण के लिए पंजाब को भारत से अलग करने का समर्थन करता है और हिमाचल में भी अब अपना दखल बढ़ा रहा है. 

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'सिख फॉर जस्टिस' संगठन का गठन 2011 में किया गया था और ये संगठन दावा करता है कि, 1984 में भारत में हुए सिख विरोधी दंगे में शामिल लोगों के खिलाफ शांतिपूर्वक कानूनी लड़ाई लड़ रहा है. सिख फॉर जस्टिस ने कांग्रेस पार्टी के कई प्रमुख नेताओं के खिलाफ अमेरिकी अदालतों में आपराधिक और मानवाधिकार मामले दर्ज किए हुए हैं. हालांकि, भारत सरकार ने साल 2019 में सिख फॉर जस्टिस' ऐसा संगठन को गैरकानूनी कामों में शामिल होने की वजह से प्रतिबंधित कर दिया था. एक अलग खालिस्तान बनाने के लिए 2019 में पंजाब स्वतंत्रता जनमत संग्रह के लिए अभियान शुरू करने के बाद भारत सरकार ने इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया था. 

विधानसभा चुनाव से पहले क्यों सक्रिय खालिस्तानी

हिमाचल प्रदेश में इसी साल आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं और उससे पहले खालिस्तानी समर्थक अचानक काफी तेजी से सक्रिय हो गए हैं. पंजाब चुनाव से ठीक पहले भी खालिस्तानी समर्थक वहां पर भी तेजी से सक्रिय हुए थे और आंतकी घटनाएं बढ़ी हैं. ऐसे में हिमाचल में सिख समुदाय की आबादी मामूली होने के बाद भी खालिस्तानी समर्थक सिर उठाने लगे हैं. हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों और पड़ोसी राज्यों में खालिस्तान समर्थक गतिविधियों और कथित तौर पर छह जून को खालिस्तान 'जनमत संग्रह दिवस' घोषित किए जाने की खबरों के बीच राज्य के पुलिस महानिदेशक ने सीमाओं को 'सील' करने के साथ ही राज्यभर के संवेदनशील एवं भीड़भाड़ वाले इलाकों में एलर्ट घोषित कर रखा है. 

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