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जम्मू-कश्मीर

गम, गुस्सा, बेबसी... आतंकी हमलों के बीच कश्मीर घाटी से हिंदुओं का पलायन, देखें तस्वीरें

टीके श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली ,
  • 03 जून 2022,
  • अपडेटेड 3:42 PM IST
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1- Target Killing के चलते घाटी में माहौल बेहद तनावपूर्ण है. दहशतगर्दों ने कश्मीर को 90 के दशक में वापस ढकेल दिया है. वहां 26 दिनों में 10 हत्याएं हुई हैं. इसके बाद से कश्मीरी पंडितों के पलायन का दौर शुरू हो गया है. गम, गुस्सा, बेबसी के बीच कश्मीरी पंडितों ने घाटी में सभी जगहों पर प्रदर्शन भी स्थगित कर दिया है. साथ ही इस साल खीर भवानी मेले का विरोध करने का ऐलान किया है. जो सरकारी कर्मचारी वहां हैं वो सुरक्षा मांग रहे हैं या तबादला चाहते हैं. ये तस्वीर अनंतनाग जिले के मट्टन इलाके की है, जहां सरकार कर्मचारी अपना बैग पैक करके निकल रहे हैं. 

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Target Killing से कश्मीरी हिंदुओं में इस बात का डर है कि 'पता नहीं, कौन, कब, कहां से गोली मार दे.' कई आतंकी मारे भी जा चुके हैं, लेकिन बावजूद इसके टारगेट किलिंग की घटनाएं नहीं रुक रहीं हैं. दहशतगर्द सरकारी कर्मचारी, प्रवासी मजदूर, टीवी आर्टिस्ट, बैंक मैनेजर को अपना निशाना बना रहे हैं. ये तस्वीर बडगाम की है, जहां राजस्व अधिकारी राहुल भट्ट की हत्या की गई थी. 

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पीएम पैकेज के तहत एक कर्मचारी अमित कौल ने न्यूज एजेंसी ANI से कहा कि स्थिति बद से बदतर होती जा रही है. 4 हत्याएं फिर हुई हैं. 30-40 परिवार शहर छोड़कर जा चुके हैं. हमारी मांग पूरी नहीं हुई. श्रीनगर में कोई स्थान सुरक्षित नहीं है. एक अन्य व्यक्ति ने सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि प्रशासन कश्मीर घाटी में अल्पसंख्यक हिंदुओं की रक्षा करने में पूरी तरह विफल रही है. ऐसा लगता है जैसे उन पर मुगलों का शासन हो रहा है. 

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पिछले साल अक्टूबर में आतंकियों ने केमिस्ट एमएल बिंद्रू की हत्या कर दी थी. उसके बाद से ही आतंकी लगातार गैर-मुस्लिमों को निशाना बना रहे हैं. रजनी बाला दूसरी ऐसी गैर-मुस्लिम सरकारी कर्मचारी थीं, जिसे आतंकियों ने मौत के घाट उतार दिया. इससे पहले 12 मई को आतंकियों ने बडगाम में तहसील दफ्तर में घुसकर राजस्व अधिकारी राहुल भट्ट की हत्या कर दी थी.

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पलायन के 27 साल बाद रजनी वापस कश्मीर लौटी थीं. उन्हें केंद्र सरकार के पैकेज के तहत नौकरी दी गई थी. रजनी बाला रोज करीब 10 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल में बच्चियों को पढ़ाने जाती थीं. वो पिछले 5 साल से गोपालपुर के स्कूल में पढ़ा रही थीं. रजनी बाला ने आर्ट्स में मास्टर किया था. इसके अलावा उनके पास बीएड और एमफिल की डिग्री भी थी. रजनी बाला कुलगाम में अपने पति और 13 साल की बेटी के साथ रहती थीं. रजनी बाला की हत्या के बाद आंसुओं में डुबी ये तस्वीर उनकी बेटी की है.
 

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बडगाम में 12 मई को राहुल भट्ट की हत्या के बाद से घाटी से पलायन का सिलसिला जारी है. बडगाम में एक शेखपुरा पंडित कॉलोनी है. राहुल भट्ट (जिनकी हत्या हुई थी) यहीं रहते थे. यहां पहले कश्मीरी पंडितों के 350 परिवार रहते थे. लेकिन अब 150 परिवार वहां से निकल गए हैं. ये तस्वीर उस वक्त की है, जब राहुल भट्ट का अंतिम संस्कार होना था. 

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बडगाम के चडूरा में तहसील परिसर में घुसकर कश्मीरी पंडित राहुल भट्ट की हत्या की गई थी. राहुल भट्ट सरकारी कर्मचारी थे. उनकी पत्नी ने बताया था कि राहुल भट्ट की तैनाती पहले बडगाम डीसी ऑफिस में थी. दो साल पहले उनका ट्रांसफर चडूरा में कर दिया गया. हालांकि, राहुल भट्ट लगातार ट्रांसफर करने की बात कह रहे थे. लेकिन डीसी बडगाम और एसीआर ने इसे नहीं माना. 

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राहुल की पत्नी मीनाक्षी भट्ट ने कहा था चडूरा तहसील परिसर में कोई सुरक्षा नहीं थी. आतंकी आए उन्होंने पूछा कि राहुल भट्ट कौन है और उन पर गोलियां बरसा दीं. उन्हें हिलने का भी मौका नहीं दिया गया. इतना ही नहीं उन्होंने संदेह जताया है कि कोई अंदर का कर्मचारी ही आतंकियों से मिला था, तभी उनके पति का नाम आतंकियों को पता था. जानकारी मिली है कि इन टारगेट किलिंग की प्लानिंग पिछले साल पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में रची गई. इस दौरान 200 ऐसे लोगों की लिस्ट तैयार की गई थी जिनकी जान लेनी थी. कश्मीर में टारगेट किलिंग की प्लानिंग एक साल पहले PoK के मुजफ्फराबाद में रची गई थी. 

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आजतक से बातचीत में कश्मीरी पंडितों ने अपना दर्द और खौफ बयां किया. वह बोले कि इस बात की हमें निराशा है कि सरकार हमें बचाने में विफल रही है. उन्होंने अमित शाह पर निशाना साधते हुए कहा कि जब कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाया जा रहा था, तब शाह अक्षय कुमार की फिल्म प्रमोट कर रहे थे. 

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कश्मीर में काम करने वाले कश्मीरी पंडित इस साल खीर भवानी मेले का विरोध करेंगे. यह मेला 8 जून को होना है. यह कश्मीरी पंडितों के लिए मुख्य त्योहार होता है. यह धार्मिक सद्भाव और कश्मीरियत का प्रतीक बताया जाता है. इसके इंतजाम के लिए मुस्लिम समुदाय के लोग भी मदद करते हैं. गौरतलब है कि हाल ही में आई विवेक अग्निहोत्री की फिल्म कश्मीर फाइल्स में वहां से कश्मीरी पंडितों के 1990 के दशक में भागने के हालातों को दिखाया गया था. इस पर काफी सियासी बहस भी छिड़ गई थी. अब ताजा हालात फिर कश्मीर घाटी को 1990 जैसी स्थिति में ले जा रहे हैं. देश भर में लोग कश्मीर में बाहरी लोगों और हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं. इस मुद्दे को लेकर सोशल मीडिया से लेकर तमाम मंचों पर लोग कड़े कदम उठाने की मांग कर रहे हैं.

इनपुट- सुनील भट्ट, अशरफ वानी, अरविंद ओझा (फोटो- PTI, ANI, AajTak)

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