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लद्दाख में चीन की चिंता बढ़ाएंगे ये डबल हम्प वाले ऊंट!

दो कूबड़ वाले ये ऊंट मुश्किल हालात में ना सिर्फ ज्यादा समय तक जिंदा रह पाते हैं बल्कि खच्चरों से पांच गुना ज़्यादा वजन उठाने के लिए भी सक्षम हैं. यही कारण है कि अब इन इलाकों में डबल हम्प ऊंटों का इस्तेमाल होगा. साथ ही साथ इस इलाके में यह ऊंट चाक-चौबंद भी रह पाएंगे.

भारतीय सेना की मदद करेंगे दो कूबड़ वाले ऊंट भारतीय सेना की मदद करेंगे दो कूबड़ वाले ऊंट
अशरफ वानी
  • नई दिल्ली,
  • 17 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 12:30 PM IST

चीन की दादागिरी को रोकने के लिए अब भारतीय सेना अपनी ताकत बढ़ाने के साथ-साथ दो कूबड़ वाले ऊंटों को भी चीनी सीमा पर तैनात करने जा रही है. एक आम कहावत है, 'ऊंट आया पहाड़ के नीचे' लेकिन यहां मामला दूसरा है. यहां पहाड़ ही ऊंट के नीचे आ रहा है. दरअसल, भारत और चीन के बीच लगने वाली सीमा हिमालय की पहाड़ियों से घिरी हुई है. इन सीमावर्ती इलाकों के पहाड़ों की ऊंचाई 12,000 से 22000 फीट की है. इन इलाकों में इंसानों की ही तरह जानवरों के लिए भी मुश्किल ज्यादा है.

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इन इलाकों में भारतीय सेना अभी तक सामान ढोने के लिए खच्चरों का इस्तेमाल करती आई है लेकिन एक खच्चर मात्र 40 किलो वज़न ही उठा पाता है. परिस्थितियों के मद्देनजर अब सेना का सामान ढोने के लिए दो कूबड़ वाले ऊंटों को ही भारतीय सेना काम पर लगाएगी. दो कूबड़ वाले ये ऊंट मुश्किल हालात में ना सिर्फ ज्यादा समय तक जिंदा रह पाते हैं बल्कि खच्चरों से पांच गुना ज़्यादा वजन उठाने के लिए भी सक्षम हैं. यही कारण है कि अब इन इलाकों में डबल हम्प ऊंटों का इस्तेमाल होगा. साथ ही साथ इस इलाके में यह ऊंट चाक-चौबंद भी रह पाएंगे.

डबल हम्प वाले ऊंटों की खासियत

ये ऊंट की वो प्रजाति  है जो कम तापमान और ठंडे रेगिस्तान वाले इलाकों में पाए जाते हैं. डबल हम्प वाले ऊंट मंगोलिया के बाद भारत के सिर्फ लद्दाख इलाके में हैं. लेह में स्थित DIHAR  यानी (डिफेंस इंस्टिट्यूट ऑफ हाई अल्टीट्यूड रिसर्च) ने ऐसे ऊंटों का अध्ययन करके पाया कि यह ऊंट ऐसे इलाकों के लिए जहाज़ से कम नहीं हैं और भारतीय सेना के लिए यह बड़े मददगार साबित हो सकते हैं.

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