
सोमवार को पाकिस्तानी संसद ने पाकिस्तान का सबसे बड़ा सिविलियन अवार्ड निशान-ए-पाकिस्तान इस साल जम्मू-कश्मीर के कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी को देने का फैसला किया. यह सम्मान गिलानी को जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की राय और बात रखने को लेकर दिया गया.
पाकिस्तानी संसद में जमात-ए-इस्लामी के सैनिटर मुश्ताक अहमद ने सोमवार को इसका प्रस्ताव रखा. जिसकी हिमायत जुबानी तौर पूरी पाकिस्तानी संसद ने की. पाकिस्तान के सीनेट ने सैयद अली शाह गिलानी को पाकिस्तान का सबसे बड़ा सिविलियन अवार्ड देने के साथ-साथ पाकिस्तानी सरकार के सामने यह यह प्रस्ताव भी रखा कि पाकिस्तान में पाकिस्तान यूनिवर्सिटी के इंजीनियरिंग एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी कॉलेज का नाम सईद अली शाह गिलानी इंजीनियरिंग एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी कॉलेज रखा जाए.
गौरतलब है कि सैयद अली शाह गिलानी शुरू से ही हमेशा जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की बात सामने रखते आए हैं चाहे वह सियासत में थे या सियासत के बाहर. जम्मू-कश्मीर जमात-ए-इस्लामी के प्रमुख के तौर पर भी सईद अली शाह गिलानी जम्मू-कश्मीर में कई साल तक रहे. उन्होंने 1972, 1977 और 1987 के विधानसभा चुनाव सोपोर से लड़े और उनमें जीत भी हासिल की और तीन बार जम्मू-कश्मीर की विधानसभा के विधायक चुने गए.
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1990 में जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी संगठनों के वर्चस्व के चलते वह जम्मू-कश्मीर में 1996 में बनी हुरिर्यत कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष भी बने. लेकिन फिर उन्होंने हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से नाता तोड़कर अपनी अलग हुर्रियत कॉन्फ्रेंस तहरीक ए हुर्रियत के नाम से बनायी. लेकिन इसी साल कुछ महीने पहले उन्होंने हुर्रियत के सभी पदों को छोड़ दिया.
90 साल के सईद अली शाह गिलानी की सेहत ठीक नहीं है और वह पिछले कई महीनों से बिस्तर में इलाज करवा रहे हैं. इस बीच वह प्रशासन की तरफ से घर के भीतर पिछले 3 साल से नजरबंद हैं. उनके सभी सामाजिक या सामूहिक कार्यक्रमों पर रोक लगी हुई है. दरअसल सईद अली शाह गिलानी ने न सिर्फ देश में पाकिस्तान की बात को आगे रखा बल्कि साथ ही साथ पाकिस्तान की राय को लेकर उन्होंने पाकिस्तान का अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी समर्थन दिया.
2016 में बुरहान वानी के मारे जाने के बाद उन्होंने यूनाइटेड नेशंस को भी एक चिट्ठी लिखी थी. 2015 में उन्हें ऑर्गेनाइजेशन आफ इस्लामिक कंट्री ओआईसी की तरफ से सालाना इजलास में आने का न्योता भी मिला था. लेकिन सरकार ने उन्हें देश से बाहर जाने की इजाजत नहीं दी.
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2006 में जब हुर्रियत नेताओं को भारत सरकार और पाकिस्तानी सरकार की रजामंदी के बाद पाकिस्तान पहली बार जाने का मौका मिला तब सईद अली शाह गिलानी को भी पाकिस्तान की तरफ से पाकिस्तान आने का न्योता तो मिला था लेकिन उन्होंने पाकिस्तान न जाने का फैसला किया. इतना जरूर है कि पाकिस्तान की बात जम्मू-कश्मीर में रखकर वह पाकिस्तानी सरकार के साथ-साथ पाकिस्तान के लोगों में भी काफी लोकप्रिय हैं. यही कारण है कि पाकिस्तानी रेडियो और पाकिस्तानी टेलीविजन कई बार उनके टेलिफोनिक संदेशों को प्रसारित करता रहा है.