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'जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 35A से लोगों के तीन मौलिक अधिकार छिने', सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी

जम्मू-कश्मीर में धारा 370 निरस्त करने के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है. सीजेआई ने सुनवाई के दौरान कहा कि अनुच्छेद 35A ने लोगों के तीन मौलिक अधिकारों का हनन किया.

धारा 370 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई धारा 370 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
संजय शर्मा/कनु सारदा
  • नई दिल्ली,
  • 29 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 9:45 AM IST

भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सोमवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 35A ने लोगों के तीन मौलिक अधिकारों को छीन लिया. सीजेआई की यह टिप्पणी धारा 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 11वें दिन सुनवाई के दौरान की है.  

जब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की ओर से तर्क दिया गया कि इस अनुच्छेद ने जम्मू-कश्मीर की प्रगति में बाधा उत्पन्न की है, इसके बाद सीजेआई ने कहा कि जम्मू-कश्मी में अनुच्छेद 35A ने देश की जनता के तीन मौलिक अधिकारों का हनन किया- राज्य सरकार के तहत रोजगार, जमीन खरीदने और वहां जाकर बसने का अधिकार. 

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सॉलिसिटर जनरल ने याचिकाकर्ताओं की दलीलों का जवाब देते हुए कहा कि अनुच्छेद 35A हटने से जम्मू-कश्मीर में निवेश आना शुरू हो गया है और पुलिस व्यवस्था केंद्र के पास होने से पर्यटन भी शुरू हो गया है. व्यवस्था में बदलाव के बाद से लगभग 16 लाख पर्यटकों ने जम्मू-कश्मीर में सैर सपाटा किया है. क्षेत्र में नए होटल खोले गए हैं. बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिला है. 

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अतीत की गलतियां सुधारीं: एसजी

इस पर सीजेआई ने कहा, "संवैधानिक सिद्धांत के अनुसार, भारत सरकार एक एकल इकाई है." मेहता ने जवाब दिया, “अतीत की गलतियां आने वाली पीढ़ी पर नहीं पड़नी चाहिए. हमने 2019 में पिछली गलती को सुधार लिया है. सरकार खुद को सुधार सकती है, जो हमने किया. मैं उस सुधार को उचित ठहरा रहा हूं." 

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केंद्र की ओर से मेहता ने कहा, "2023 तक, जम्मू-कश्मीर के संविधान की धारा 92 के तहत राज्यपाल शासन 8 बार और राष्ट्रपति शासन 3 बार लगाया गया है." 

सॉलिसिटर जनरल ने क्या दी दलील?

संविधान पीठ के समक्ष मेहता ने दलील दी कि 14 फरवरी 2019 को पुलवामा में CRPF के काफिले पर आतंकी हमले के बाद केंद्र ने ठान लिया था कि जम्मू-कश्मीर में आतंक और अलगाववाद इसी स्पेशल स्टेटस की आड़ में फल-फूल रहा है. लिहाजा सबसे पहले इसे खत्म करके केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाए. 

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केंद्र सरकार की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ऐसी बहुत सी चीजें हुईं और इसका चरम पुलवामा हमले के तौर पर 2019 की शुरुआत में हुआ. इसके बाद भी सरकार ने यह कदम कई चीजों जैसे संप्रभुता, राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे आदि को ध्यान में रखते हुए उठाया. 

जस्टिस ने पूछे दो अहम सवाल

सुनवाई के अंत में जस्टिस संजीव खन्ना ने मेहता से दो पहलुओं को स्पष्ट करने के लिए कहा. उन्होंने पूछा कि क्या लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश में परिवर्तित करना इसे डाउनग्रेड करना है? याचिकाकर्ताओं ने यही तर्क दिया है. दूसरा ये कि अनुच्छेद 356 के मुताबिक, राष्ट्रपति शासन का अधिकतम कार्यकाल 3 साल है. हमने वो 3 साल पार कर लिए हैं, इसलिए इसे स्पष्ट करें की ये सब संविधान के किस प्रावधान के तहत किया गया है? सरकार सुनवाई के 12वें दिन इन दोनों सवालों का जवाब और अपना विस्तृत स्पष्टीकरण देगी.  

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