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जम्मू-कश्मीर में DDC चुनाव की तैयारी, प्रदेश को मिलेगा नया नेतृत्व

जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दल इन चुनावों को शक की निगाह से देख रहे हैं. उनका मानना है कि डीडीसी को ज्यादा शक्ति देने से चुनाव के बाद विधायकों की शक्ति कमजोर होगी. इससे चुनी हुई विधायिका कमजोर और शक्तिहीन हो जाएगी.

श्रीनगर का डल झील (फोटो- पीटीआई) श्रीनगर का डल झील (फोटो- पीटीआई)
कमलजीत संधू
  • नई दिल्ली,
  • 04 नवंबर 2020,
  • अपडेटेड 1:05 PM IST
  • डीडीसी चेयरमैन को मिलेगा राज्यमंत्री का दर्जा
  • प्रदेश में नेतृत्व की नई पौध होगी तैयार
  • चुनाव लड़ने को कशमकश में पीडीपी, एनसी

जम्मू-कश्मीर में पंचायती राज की जड़ें मजबूत करने के लिए कवायद शुरू कर दी गई है. इसके तहत राज्य में पहली बार जिला विकास परिषद (District Development Council) के चुनाव करवाए जा रहे हैं. पिछले साल 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 हटाने के बाद ये पहली बड़ी राजनीतिक गतिविधि होने जा रही है. 

इस राजनीतिक प्रक्रिया में जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दल शिरकत करेंगे या नहीं ये अबतक साफ नहीं हो पाया है, लेकिन सरकार ने अपनी तरफ से इसके लिए कोशिशें शुरू कर दी हैं. भारत सरकार अब 73वें संविधान संशोधन के सभी प्रावधानों को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में लागू कर रही है. जो राज्य में 28 साल से लटका हुआ है.  

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इसके साथ ही राज्य में त्रिस्तरीय पंचायती राज पूर्ण रूप से लागू होगा. ये जम्मू कश्मीर के इतिहास में पहली बार होगा. 

जिला विकास परिषद (डीडीसी) की स्थापना के लिए केंद्र ने हर जिले में 14 पद सृजित किए हैं. इन सभी पदों को प्रत्यक्ष निर्वाचन के जरिए भरा जाएगा. केंद्र को उम्मीद है कि इससे राज्य में नेतृत्व का एक नया वर्ग तैयार होगा, जिसका भारत के संविधान में विश्वास होगा. ये नया नेतृत्व राज्य की विकास की आकांक्षाओं को पूरा करेगा. 

डीडीसी को प्रभावी और असरकारक बनाने के लिए जिला विकास परिषद के चेयरमैन को राज्य मंत्री का दर्जा देने का फैसला किया गया है. 

हर डीडीसी काउंसिल में पांच स्थायी समितियां बनाई गई हैं. ये समितियां, वित्त, विकास, लोक निर्माण, स्वास्थ्य शिक्षा और कल्याण के मुद्दे पर होंगी. ये डीडीसी की जिम्मेदारी होगी कि वो अपने इलाके के विकास की रूप रेखा बनाएं और वहां का त्वरित विकास कंरे और आर्थिक समृद्धि का रास्ता साफ करें. 

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हालांकि जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दल इन चुनावों को शक की निगाह से देख रहे हैं. उनका मानना है कि डीडीसी को ज्यादा शक्ति देने से चुनाव के बाद विधायकों की शक्ति कमजोर होगी. इससे चुनी हुई विधायिका कमजोर और शक्तिहीन हो जाएगी. 

पीडीपी नेता वाहिद ने कहा कि पार्टी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने युवा नेताओं से मुलाकात की है और उनसे युवा नेताओं ने अपील की है कि नौजवानों को डीडीसी चुनाव लड़ना चाहिए. उन्होंने कहा है कि इस बाबत अभी तक पार्टी ने कोई फैसला नहीं लिया है. उन्होंने कहा कि चूंकि पीडीपी गुपकार घोषणा का हिस्सा है इसलिए इस पर मिल जुल कर फैसला लिया जाएगा. वहीं सज्जाद लोन ने कहा है कि इस बारे में दूसरी पार्टियों से कोई बातचीत नहीं हुई है.

अपनी पार्ट के नेता अल्ताफ बुखारी ने कहा कि यदि डीडीसी विकास के काम करती है तब तो अच्छा है, लेकिन राज्य के बाबू ऐसा नहीं चाहते हैं, उन्होंने कहा कि राज्य के सरकारी अधिकारी पंचायती राज को फलने-फूलने नहीं दे रहे हैं. इसकी वजह से ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल सिर्फ दिखावे का रह गया है. उन्होंने कहा कि अपनी पार्टी 10 जिलों में 140 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. 

वहीं पीडीपी के एक पूर्व नेता ने कहा कि यदि पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस चुनाव नहीं लड़ते हैं तो वे प्रॉक्सी कैंडिडेट खड़ा करेंगे.  

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वहीं जम्मू-कश्मीर के घटनाक्रम पर नजर रखने वाले एक विश्लेषक ने कहा कि डीडीसी में चुनाव जीतने वाले लोग आखिरकार विधानसभा चुनाव में शिरकत करेंगे. इससे एक नई जेनरेशन विधानसभा में विधायकों के रूप में आएगी. सुरक्षा महकमें से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि केंद्र की ये कोशिश एक गेमचेंजर साबित हो सकती है और नेतृत्व की एक नई पौध तैयार कर सकती है, इनमें से अगर कोई परिश्रमी और काबिल हुए तो वे कल को जम्मू-कश्मीर का बड़ा नेता बन सकते हैं.  

सरकार के इस फैसले ने जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों के सामने पसोपेश की स्थिति पैदा कर दी है. अगर वे चुनाव लड़ते हैं तो घाटी में इससे संदेश जाएगा कि वे अनुच्छेद 370 हटाने का विरोध करने की हालत में नहीं हैं. और अगर वे चुनाव नहीं लड़ते हैं तो बीजेपी के लिए मैदान खाली रहेगा.  


 

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