
जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगी. दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन को लेकर डील पक्की हो गई है. ऐसा करना कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस दोनों के लिए मजबूरी थी. गठबंधन के पक्के होने की घोषणा डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने की. उन्होंने इसे समय की जरूरत बताया. फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि यह सब सौहार्दपूर्ण माहौल में हुआ. हमें खुशी है कि गठबंधन एक वास्तविकता है. हम सभी 90 सीटों पर मिलकर लड़ेंगे.
गैर भाजपा सरकार की संभावनाओं के लिए यह गठबंधन क्यों महत्वपूर्ण है?
खंडित जनादेश के साथ नेशनल कॉन्फ्रेंस जो सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर सकती है, उसे पता है कि भाजपा को दूर रखने के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन करना एक विकल्प से अधिक एक मजबूरी है. पार्टी को कश्मीर में अच्छा प्रदर्शन करने का भरोसा है. NC सूत्रों का कहना है कि वे जम्मू में कम से कम 10 से 15 सीटें जीतने के लिए कांग्रेस पर भरोसा कर रहे हैं. इससे सरकार बनाने के लिए 46 सीटों के आंकड़े तक पहुंचना आसान रहेगा. कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर में राहुल गांधी के दम पर अच्छा प्रदर्शन किया है.
राहुल गांधी ने जम्मू-कश्मीर में पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम किया है. हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा ने जम्मू की दोनों सीटों पर जीत दर्ज की. हालांकि, कांग्रेस नेताओं को भरोसा है कि जनता अलग तरीके से मतदान करेगी, क्योंकि विधानसभा चुनावों में मुद्दे स्थानीय शासन से जुड़े हैं. इसमें अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद भाजपा द्वारा किए गए वादे भी शामिल हैं. इनमें से कई वादे युवाओं के लिए रोजगार और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए निवेश जैसे थे, लेकिन वे पूरे नहीं हुए.
कांग्रेस की दूसरी सहयोगी पार्टी पीडीपी का क्या होगा?
NC ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर में हुए गठबंधन में पीडीपी की कोई भूमिका नहीं है. कांग्रेस के पास महबूबा की पार्टी के लिए दरवाजे बंद करने और बड़े सहयोगी की शर्तों को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, जिसके पास आगामी जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में स्पष्ट रूप से बेहतर चुनावी संभावनाएं हैं. पीडीपी का जम्मू-कश्मीर में भाजपा के साथ गठबंधन पार्टी के लिए राजनीतिक आत्महत्या साबित हुआ. पार्टी इसके बाद उबर नहीं पाई है.
पीडीपी नए लोगों को टिकट देने के लिए मजबूर है, जिनके चुनावी लड़ाई में छाप छोड़ने की संभावना धूमिल दिखती है. हालांकि चुनावों में एक अच्छा प्रदर्शन अभी भी पीडीपी को ऐसी स्थिति में ला सकता है जहां संख्या का खेल इसे एक सहयोगी के रूप में प्रासंगिक बना देगा. इस समय इंडिया गठबंधन सभी कदम उठा रहा है, ऐसा लगता है कि भाजपा ने चुपचाप और अकेले ही आगे बढ़ने का निर्णय कर लिया है.
पार्टी को सज्जाद लोन की पीपुल्स कांफ्रेंस के साथ रणनीतिक गठबंधन के प्रयासों से अपेक्षित परिणाम नहीं मिले हैं, जिसके कारण पार्टी को अपना रास्ता बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भाजपा कश्मीर विधानसभा क्षेत्रों से अपने उम्मीदवार उतारेगी या फिर लोकसभा चुनावों की तरह घाटी को छोड़कर जम्मू पर ही ध्यान केंद्रित करेगी.