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'कश्मीरी पंडितों को घाटी में बसाने के लिए अमित शाह की अध्यक्षता में बने कमेटी', KP संगठनों की मांग

कश्मीरी पंडित कर्मचारियों का वेतन रोकने और उन्हें घाटी में वापस आने की एलजी प्रशासन के आदेश को लेकर केपीएस संगठन ने कहा कि अगर ऐसी धमकी बंद नहीं की गईं तो आंदोलन तेज किया जाएगा. इसके साथ ही उन्होंने मांग की है कि केंद्र सरकार गृहमंत्री के नेतृत्व में कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए एक कमेटी बनाए.

फाइल फोटो फाइल फोटो
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 13 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 8:32 AM IST

जम्मू-कश्मीर के कई जिलों में आतंकियों द्वारा कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाया जा रहा है. इसको लेकर कश्मीरी पंडित संगठन बीते 182 दिनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. इन संगठनों ने कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास को लेकर स्कीम तैयार और लागू करने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में एक कमेटी बनाने की मांग की है. 

इसके साथ ही केपी कर्मचारियों का वेतन रोकने और उन्हें घाटी में वापस आने की सरकार के आदेश को लेकर कहा कि अगर ये बंद नहीं की गई तो कश्मीरी पंडित सभा (KPS) अपना आंदोलन तेज करेगी. प्रधानमंत्री रोजगार पैकेज के तहत घाटी में तैनात केपी कर्मचारियों का आंदोलन बीते 182 दिनों से जारी है, जिसमें उनकी मांग है कि उन्हें घाटी से निकालकर मैदानी इलाकों में पोस्टिंग मिले. 

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प्रदर्शनकारियों ने कहा कि अब समय आ गया है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार देश के अलग-अलग हिस्सों में शरणार्थी के रूप में रह रहे कश्मीरी हिंदू समुदाय को वापस घाटी में लाए और उनका सुरक्षा-सम्मान के साथ पुनर्वास करे. यूथ ऑल इंडिया कश्मीरी समाज के अध्यक्ष आर के भट और समुदाय के कई अन्य लोगों ने शहर में प्रेस क्लब के पास नारे लगाए और विरोध प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारियों ने जो तख्तियां ले रखी थीं उन पर लिखा था, 'हम अपने देश में शरणार्थी हैं', 'अस्तित्व के लिए संघर्ष जारी है', 'मैं एक कश्मीरी पंडित हूं, मुझे अपनी पहचान से प्यार है' और 'निर्वासन में केपी की आत्मा'. 

यूथ ऑल इंडिया कश्मीरी समाज के अध्यक्ष भट ने यहां मीडिया से बात करते हुए कहा, 'केंद्र सरकार के लिए कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी और पुनर्वास के लिए व्यापक पैकेज की घोषणा करने का यह सही समय है.' उन्होंने कहा कि वापसी और पुनर्वास योजना' के तहत कर्मचारियों के साथ पूरे समुदाय का घाटी में पुनर्वास किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि हम केंद्रीय गृह मंत्री की अध्यक्षता में एक शीर्ष समिति के गठन की मांग करते हैं, जो इस बात पर एक व्यापक रोड मैप तैयार करे कि कैसे पंडितों की वापसी होगी. यही केपी शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी.  

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कश्मीरी पंडितों की डिमांड

पीएम विशेष रोजगार के तहत 6000 कश्मीरी पंडितों को रोजगार दिलाने की योजना थी, लेकिन प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि वर्तमान और पिछली सरकार इसमें सफल नहीं रहीं. भट ने कहा कि सरकार को 15,000 केपी युवाओं को रोजगार देने के लिए पैकेज बढ़ाना चाहिए. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कुछ साल पहले केंद्र द्वारा घोषित कश्मीरी पंडितों के लिए पुनर्वास पैकेज एक "छलावा" था.
भट ने कहा कि हम सरकार से अपील करते हैं कि विश्वास बहाली के उपाय के तौर पर तुरंत अपने संगठनों और प्रतिनिधियों के साथ एक उचित बातचीत करके इस पैकेज को संशोधित करें. आतंकियों द्वारा टारगेट किलिंग की घटनाओं को लेकर घाटी में तैनात केपी कर्मचारी बीते करीब 6 महीने से जम्मू में ट्रांसफर करने को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. साथ ही प्रदर्शनकारी घाटी में हर जगह से सामूहिक रूप से केपी की वापसी की मांग कर रहे हैं जहां वे एक सुरक्षित वातावरण में रह सकें. 

हमें सुरक्षा देने में नाकाम रहा एलजी प्रशासन: केपी संगठन 

कश्मीरी पंडित सभा के प्रमुख खोसा की अध्यक्षता में एक मीटिंग हुई. इसमें सभा के अध्यक्ष खोसा ने एलजी प्रशासन को उसके असंवेदनशील और चौंकाने वाले रवैये और केपी कर्मचारियों को काम पर वापस लौटने के लिए दबाव बनाने के लिए लताड़ लगाई. खोसा ने कहा कि एलजी प्रशासन जानता है कि वह सुरक्षा देने में विफल रहा है. घाटी में ऐसा माहौल नहीं है कि कश्मीरी पंडित और अन्य अल्पसंख्यक बिना किसी डर के वहां रह सकें और काम कर सकें. इस तरह के दमनकारी उपायों और कठोर रवैये का विरोध किया जाएगा. उन्होंने कहा कि कश्मीरी पंडितों समेत अल्पसंख्यकों की टारगेट किलिंग, विशेष रूप से अनुच्छेद 370 और 35ए के निरस्त होने के बाद एक वास्तविकता है. इस सच्चाई का विरोध करने से कश्मीर में हालात और जटिल हो जाएंगे. 

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अब घाटी में बिगड़ चुके हैं हालात: खोसा 

खोसा ने कहा कि घाटी में लोगों और प्रशासन के बीच कटुता है. यहां तक ​​कि उन केपी के बीच भी जो पिछले तीन दशकों से वहां रह रहे हैं. उन्होंने कहा कि घाटी में स्थिति सामान्य होने दें ताकि ये कर्मचारी एक बार फिर आत्मविश्वास और सुरक्षित महसूस करें. उन्होंने कहा कि यूटी सरकार को यह समझना चाहिए कि वे पिछले एक दशक से अधिक समय से समर्पण के साथ घाटी में अपनी सेवाएं दे रहे हैं और अब घाटी में हालात बिगड़ गए हैं. 

 

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