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जानिए, उरी में हमारे जवानों पर हमला करने वाले आतंकी गुट सिपह-ए-सहाबा पाकिस्तान के बारे में

उरी हमले में शामिल चारों आतंकी जैश-ए-मुहम्मद से जुड़े थे. ये आतंकी प्रतिबंधित गुट सिपह-ए-सहाबा पाकिस्तान (SSP) से जुड़े थे जिसने हाल में जैश-ए-मुहम्मद के बैनर तले काम करना शुरू किया है. सिपह-ए-सहाबा का मतलब होता है Guardians of the Prophet यानी पैगंबर के सिपाही. अब इसने अपना नाम बदलकर अहले सुन्नत वल जमात कर लिया है.

जैश-ए-मुहम्मद के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहा है सिपह-ए-सहाबा जैश-ए-मुहम्मद के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहा है सिपह-ए-सहाबा
सबा नाज़
  • नई दिल्ली,
  • 19 सितंबर 2016,
  • अपडेटेड 7:48 PM IST

उरी हमले में शामिल चारों आतंकी जैश-ए-मुहम्मद से जुड़े थे. उनके पास से मिले सामान इस बात की गवाही दे रहे हैं. इनके कब्जे से बरामद 'मिशन प्लान' पश्तो में लिखा हुआ था. आतंकियों के पास से मिला नक्शा इस ओर इशारा कर रहा है कि इनके निशाने पर निहत्थे जवान थे. इसके बाद वो आर्मी कैंप में स्थ‍ित मेडिकल यूनिट को निशाना बनाने वाले थे और आखि‍र में ऑफिसर्स मेस पर हमला कर खुद को विस्फोट में उड़ा देने वाले थे.

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ये आतंकी प्रतिबंधित गुट सिपह-ए-सहाबा पाकिस्तान (SSP) से जुड़े थे जिसने हाल में जैश-ए-मुहम्मद के बैनर तले काम करना शुरू किया है. सिपह-ए-सहाबा का मतलब होता है Guardians of the Prophet यानी पैगंबर के सिपाही. अब इसने अपना नाम बदलकर अहले सुन्नत वल जमात कर लिया है. यह पाकिस्तान के सुन्नी मुसलमानों का संगठन है जिसने कभी पाकिस्तान में बतौर राजनीतिक दल भी काम किया है.

जिया-उर-रहमान फारूकी के हाथ में कमान
इस गुट का गठन हक़ नवाज झांगवी ने 1985 में अंजुमन सिपह-ए-सहाबा नाम से किया था. 1985 में देवबंदी सुन्नी संगठन जमीयतुल उलेमा-ए-इस्लाम से यह संगठन अलग हो गया. झांगवी ने इसका गठन पाकिस्तान में शिया समुदाय के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए किया था. 1990 में झांगवी की हत्या के बाद संगठन की कमान जिया-उर-रहमान फारूकी के हाथों में आ गई. 1993 में इस संगठन के एक नेता पंजाब में तत्कालीन गठबंधन सरकार में मंत्री भी रहे. इस संगठन की पाकिस्तानी संसद में भी कुछ सीटें थी.

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आजम तारिक ने संभाली जिम्मेदारी
19 जनवरी 1997 को फारूकी लाहौर में एक बम धमाके में मारे गए. फारूकी की मौत के बाद आजम तारिक ने संगठन की जिम्मेदारी संभाली. अक्टूबर 2003 में उनकी भी हत्या हो गई. हालांकि, 2002 में तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने एंटी-टेररिज्म एक्ट के तहत इस संगठन को आतंकी संगठन घोषित कर दिया.

ब्रिटेन 2001 में लगा चुका है पाबंदी
जैश-ए-मुहम्मद के संस्थापक मसूद अजहर ने अक्टूबर 2000 में खुले आम कहा था कि सिपह-ए-सहाबा जिहाद में जैश-ए-मुहम्मद के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहा है. मार्च 2012 में पाकिस्तान की सरकार ने सिपह-ए-सहाबा पर फिर से पाबंदी लगा दी. लेकिन नवंबर 2014 में पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने पाबंदी हटा दी. ब्रिटेन की सरकार 2001 में ही इस संगठन पर पाबंदी लगा चुकी है.

शिया समुदाय से उलझता रहा है संगठन
पाकिस्तान में सिपह-ए-सहाबा के लोगों की शिया समुदाय के लोगों से झड़पें आम हैं. 23 अगस्त 2013 को पंजाब प्रांत के भक्कड़ में ऐसी ही हिंसक झड़प में सिपह-ए-सहाबा के 7 सदस्य मारे गए थे जबकि शिया समुदाय के 4 लोगों की मौत हो गई थी.

कारी हुसैन की सिपह-ए-सहाबा में गहरी पैठ
लीक हुए अमेरिकी डिप्लोमैटिक केबल के मुताबिक सिपह-ए-सहाबाद देवबंदी संगठन का एक हिस्सा है. इस्लामाबाद स्थ‍ित अमेरिकी दूतावास ने भी संकेत दिए हैं कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के बड़े आतंकी है और तालिबान के तमाम आतंकी सिपह-ए-सहाबा से हैं. अहले-सुन्नत-वल-जमात एसएसपी का फ्रंट ग्रप है और यह पाकिस्तान में प्रतिबंधित है.

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