
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद का जब 7 जनवरी को निधन हुआ तो सत्तासीन पीडीपी ने संकेत दिए कि चार दिन बाद ही सही महबूबा मुफ्ती प्रदेश की मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगी. लेकिन अभी तक वह सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाई हैं. सवाल बीजेपी-पीडीपी गठबंधन को लेकर उठ रहे हैं, तो सवाल बीते 23 दिनों से राज्य में राजनीतिक अस्थिरत को लेकर भी पनप रहे हैं. बहरहाल, पीडीपी ने 31 जनवरी से श्रीनगर में पार्टी नेताओं के साथ बातचीत करने का सिलसिला शुरू करने का फैसला किया है.
मौजूदा हालात यह हैं कि राज्य में गवर्नर रूल लागू है, जबकि विपक्षी दल पीडीपी से सरकार बनाओ या चुनाव करवाओं की बात कह रही है. बीजेपी का कहना कि उसने पीडीपी के साथ 6 साल तक सरकार बनाने के लिए गठबंधन किया था न कि 10 महीने के लिए. ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि आखिर पीडीपी की नेता और मुफ्ती मोहम्मद सईद की फायरब्रांड बेटी महबूबा मुफ्ती सीएम पद का काम क्यों नहीं संभाल रही हैं.
क्या पार्टी में विद्रोह का है डर
समझा जाता है कि महबूबा मुफ्ती पार्टी में संभावित विद्रोह से कहीं न कहीं डर रही हैं या फिर यह कि वह कश्मीरियों को खुद करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कुछ और रियायतें लेना चाहती हैं. जानकार मानते हैं कि ऐसा कर वह कश्मीरी अवाम को यह स्पष्ट संदेश देना चाहती हैं कि बीजेपी और पीडीपी की सरकार बनने से पहले जो एजेंडा फॉर अलायन्स का डॉक्यूमेंट बना था उसे वह भूली नहीं हैं. साथ ही यह भी कि जिन चीजों को उनके पिता मुफ्ती सईद मोदी सरकार से नहीं ले पाए, वह उन पर केंद्र की हामी ले ले.
दूसरी ओर, बीजेपी का कहना कि मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद लीडर ऑफ पार्टी चुनना पीडीपी का काम है.
क्या कुछ चाहती हैं महबूबा और क्या हैं हालात
1) पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन से जम्मू में 390 मेगावाट और कश्मीर घाटी में 480 मेगावाट के प्रोजेक्टों को वापस जम्मू-कश्मीर सरकार को सौंपने की मांग रख रही हैं. जबकि केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल और तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार के वक्त भी यह साफ कर दिया गया था कि पावर प्रोजेक्ट्स वापस नहीं दिए जाएंगे.
मोदी सरकार का मानना है कि अगर कॉरपोरेशन वापस राज्य सरकार को पावर प्रोजेक्ट देना शुरू कर देती है तो बाकी की राज्य सरकारें भी ऐसी मांग रखेंगी.
2) पीडीपी का यह भी कहना है की जो 80 हजार करोड़ रुपये का पैकेज पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर को दिया, उसमें 50 फीसदी से जयादा रुपये तो विकास कार्यों के लिए दिया गया, जबकि सितंबर 2014 के कश्मीर बाढ़ के लिए केवल 7854 करोड़ रुपये दिए गए हैं. लेकिन तथ्य यह भी हैं कि मोदी सरकार ने नेपाल बाढ़ के लिए 6757 करोड़ दिए हैं.
3) राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बतौर नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद का जो कद था, महबूबा मुफ्ती वह नहीं बन सकती हैं. महबूबा को पार्टी के श्रीनगर संसदीय क्षेत्र के सांसद तारिक हामिद करा ने खुले तौर पर चेतावनी दे रखी है. उनका कहना है कि कि महबूबा को दोबारा बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं करना चाहिए.
4) महबूबा मुफ्ती को एक डर यह भी है कि तारिक हामिद करा पार्टी में विद्रोह करवा सकते हैं. या फिर वह सांसद पद से त्यागपत्र देकर पार्टी को कमजोर कर सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो पीडीपी के लिए श्रीनगर संसदीय क्षेत्र की सीट दोबारा जीतना लगभग नामुमकिन होगा.
5) एक तर्क यह भी है कि पिता के निधन के बाद महबूबा इस बात से दुखी हैं कि उनके पिता के जनाजे पर कम लोग क्यों आए थे. वह संभवत: यह भी सोच रही हों कि जनाजे में कम जनता का आना शायद इस बात के संकेत हैं कि कश्मीरी अवाम पीडीपी से खफा है और इसकी वजह बीजेपी से गठबंधन है.
6) महबूबा को लगता है कि अगर वह मुख्यमंत्री बन जाती हैं तो पार्टी की अनंतनाग की संसदीय सीट उनकी पार्टी नहीं जीत सकती है. उन्हें यह भी पता है कि अभी तक बीजेपी के साथ सरकार न बनाकर भी वह खतरे के साथ खेल रही हैं और अगर ज्यादा देर होती है तो पार्टी के विधायक आगे-पीछे भी जा सकते हैं.
क्या कहना है कांग्रेस का
कांग्रेस प्रवक्ता रविंद्र शर्मा कहते हैं, 'बीजेपी और पीडीपी का गठबंधन शुरू से ही गलत था, क्योंकि दोनों पार्टियों ने लोगों को बेवकूफ बना कर वोट लिए थे. पीडीपी ने कश्मीर में लोगो को कहा था कि अगर वह जम्मू-कश्मीर में आरएसएस से बचना चहते हैं तो उनकी पार्टी को वोट डाले. इसी तरह जम्मू में बीजेपी ने लोगों को कहा कि अगर वह पीडीपी को सरकार से बाहर रखना चहते हैं तो बीजेपी को वोट दे.'