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जम्मू कश्मीर में पीडीपी और बीजेपी सरकार के गठबंधन को मुमकिन बनाने वाले राज्य के पूर्व मुख्य्मंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद महबूबा मुफ़्ती को सूबे की सत्ता संभालने में 3 महीने का वक्त लगा. तब महबूबा मुफ़्ती की यही चिंता रही की क्या बीजेपी उनकी उम्मीद के मुताबिक जम्मू कश्मीर में आगे बढ़ेगी या फिर नहीं. लेकिन अभी तक महबूबा मुफ़्ती को यही एहसास हो रहा है कि बीजेपी के लिए कश्मीर से ज़्यादा देश की राजनीति ही प्रमुख है. राज्य में सत्ता के साझीदार होने के बावजूद केंद्र सरकार ने महबूबा मुफ़्ती के चाहते हुए भी न तो अलगावादी संगठनों के प्रति नरम रुख किया और न ही पाकिस्तान को लेकर नरमी दिखाई है.
महबूबा मुफ़्ती जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री बनने के बाद कश्मीर में जिन हालात से जूझ रही हे उस ने महबूबा मुफ़्ती की राजनीति और लोकप्रियता को हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया है. इसकी मिसाल कश्मीर में हुए लोकसभा उपचुनावों में देखी जा सकती है जहां एक तो सबसे कम मतदान हुआ साथ ही पीडीपी के जनाधार में भी कमी दिखी. वहीं अनंतनाग लोकसभा उपचुनाव को तो टालना ही पड़ा. अब पीडीपी ने अनंतनाग लोकसभा उपचुनावों को एक बार फिर टालने के लिए चुनाव आयोग को लिखा भी है.
जम्मू कश्मीर में पीडीपी के नेता जम्मू कश्मीर में ही बीजेपी के नेताओं के उन बयानों से परेशान हैं जिसमें वह कश्मीर विरोधी बयान देते रहे हैं. यही वजह है कि पहली बार राजनीति में आए महबूबा मुफ़्ती के भाई और अनंतनाग लोकसभा सीट से पीडीपी उम्मीदवार तसादुक मुफ़्ती ने कुछ ही दिन पहले एक अखबार के साथ बातचीत में कहा कि केंद्र सरकार कश्मीर को लेकर गंभीर नहीं है.
घाटी में और बिगड़े हालात
जम्मू कश्मीर में साल 2016 में कई महीनों तक अशांति के बाद महबूबा मुफ़्ती को उम्मीद थी कि साल 2017 में कश्मीर के हालात सुधर गए लेकिन ऐसा हो नहीं सका और अब विरोध प्रदर्शनों में पत्थरबाज़ो के साथ-साथ स्कूलों और कॉलजों के छात्र भी जुटने लगे हैं. कश्मीर में पिछले एक हफ्ते से कॉलेज बंद पड़े हैं और पिछले साल की तरह ही इस साल भी पर्यटन फीका रह गया है.
दिल्ली में कश्मीर पर चर्चा
रविवार को जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ दिल्ली में मुलाकात करेंगी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह से भी मिलेंगी. महबूबा मुफ़्ती के करीबी सूत्र बताते हैं कि महबूबा मुफ़्ती बातचीत में सिर्फ दो बातों पर ही बल देंगी. एक अलगावादियों और पाकिस्तान से बातचीत की प्रक्रिया को केंद्र सरकार आगे बढ़ाये और कश्मीर में सुरक्षा बलों को प्रदर्शनकारियों से निपटने के लिए संयम बरतने की अपील की जाए. महबूबा मुफ़्ती मानती हैं कि घाटी में आम लोगो के मारे जाने और लोगों के घायल होने से हिंसा बढ़ती जा रही है जो घाटी में हालात को बद से बदतर बना रही है. इसी वजह से राज्य में अमन-शांति की कोशिशों को तगड़ा झटका लग रहा है.
बीजेपी और केंद्र सरकार इस बात से भी वाकिफ है कि अहर वह महबूबा मुफ़्ती के मुताबिक ही कश्मीर को चलाएगी तो उस का ख़मियाज़ा उन्हें देश के दूसरे राज्यों में उठाना पड़ेगा. शायद यही वजह है कि अब केंद्र सरकार, जम्मू कश्मीर में एक बार फिर से राष्ट्रपति शासन के भरोसे आगे बढ़कर हालात को पटरी पर लाना चाहते है, जो जम्मू कश्मीर में पहले भी किया गया है और किसी हद तक सफल साबित भी हुआ है.