
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने कश्मीरी पंडितों के अपने घरों को वापस नहीं लौटने का दोष उन्ही के सिर पर मढ़ दिया. अब्दुल्ला ने कहा, 'उन्हें इस बात का अहसास करना होगा कि कोई भीख का कटोरा लेकर उनके सामने आकर यह नहीं कहेगा कि आओ और हमारे साथ रहो. उन्हें कदम उठाना होगा.'
किताब के विमोचन पर बोले फारूक अब्दुल्ला
राज्य से विस्थापित कश्मीरी पंडितों की कई पीढ़ियों के दर्द की दास्तां और अपने पड़ोसी मुसलमानों के साथ सुकून की जिंदगी बसर करने की उनकी चाह को समेटती एक किताब के विमोचन के
मौके पर अब्दुल्ला ने यह बात कही. अब्दुल्ला ने कहा कि दिल्ली में अपने घर बना चुके कई कश्मीरी पंडितों ने उस समय उनसे आकर मुलाकात की थी जब जम्मू कश्मीर सरकार ने उनसे
घाटी में वापस लौटने को कहा था.
आप किसका इंतजार कर रहे हैं: अब्दुल्ला
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, ‘जब सरकार ने यह पहल की कि यहां बस चुके अधिकारियों और डॉक्टरों को वापस घाटी लौट आना चाहिए तो वे मुझसे मिलने आए और कहा, ‘देखिए, अब हमारे बच्चे
यहां स्कूलों में पढ़ रहे हैं, हमारे माता पिता बीमार हैं और उन्हें इलाज की जरूरत है. हम उन्हें पीछे छोड़कर नहीं आ सकते इसलिए भगवान के लिए हमें यहीं रहने दें.’ फारूक ने तर्क दिया, ‘
अंतिम बंदूक के खामोश होने तक का इंतजार मत करिए. घर आइए.’ उन्होंने साथ ही कहा, ‘आप किसका इंतजार कर रहे हैं. इंतजार मत करिए. आप सोचते हैं कि फारूक अब्दुल्ला आएगा
और आपका हाथ पकड़कर वहां ले जाएगा.’ अब्दुल्ला ने इस बात को रेखांकित किया कि पहला कदम उठाने तक यह मुश्किल रहेगा. उन्होंने कहा, ‘हां, घर लौटने की जिम्मेदारी उनकी है.’
अपने ही देश में रिफ्यूजी की तरह रहने का मजबूर: अनुपम खेर
फिल्म अभिनेता अनुपम खेर ने कश्मीरी पंडितों की वापसी पर कहा कि अपने ही देश में रिफ्यूजी की तरह रहना कितना दुखदायी होता है. उन्होंने कहा, 'मैं किसी की आलोचना नहीं कर रहा,
लेकिन हालात बदलने चाहिए. मैं इसके लिए नेताओं को दोषी नहीं ठहरा रहा. हमें इस समस्या को जल्द से जल्द सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए.'
26 बरस बाद भी पुनर्वास तय नहीं
अपने घर बार छोड़कर पिछले 26 बरस से बनवास काटने को मजबूर विस्थापित कश्मीरी पंडितों का कहना है कि ‘इस्लामी आतंकवाद’ का सामना करने के अलावा यह समुदाय ‘प्रशासनिक
आतंकवाद’ से भी पीड़ित है, जिसके चलते कश्मीर में उनके पुनर्वास में देर हुई है. सर्वदलीय प्रवासी समन्वय समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता किंग भारती ने कहा, ‘कश्मीर घाटी में जब इस्लामी
आतंकवाद शुरू हुआ तब हम बेघर कर दिए गए लेकिन पिछले 26 बरसों में हम प्रशासनिक आतंकवाद का शिकार बने हैं.’ भारती ने कहा, ‘‘न तो राज्य ना ही केंद्र सरकार ने हमारे पुनर्वास के
प्रति गंभीरता दिखाई. पिछले 26 बरसों में कोई भी एक रास्ता लेकर आगे नहीं आया.’’ उन्होंने कहा कि शिक्षित युवकों के लिए रोजगार और समुदाय की वापसी तथा पुनर्वास समुदाय की दो
बड़ी समस्याएं है, जो दूर नहीं हुई हैं.
प्रति परिवार 7.5 लाख के पुनर्वास पैकेज की पेशकश हुई थी
यूपीए-1 सरकार ने घाटी में लौटने को इच्छुक प्रत्येक कश्मीरी पंडित परिवार के लिए 7.5 लाख रुपये के पुनर्वास पैकेज की पेशकश की थी. जगती प्रवासी शिविर में रह रहे शाम जी भट ने कहा
कि कई परिवारों ने लौटना चाहा और फार्म भरे. उसके आठ साल बाद भी कोई प्रगति नहीं हुई. गृह मंत्रालय ने संसद को एक लिखित जवाब में बताया था कि सिर्फ एक परिवार लौटा.
कश्मीरी पंडितों का कहना है कि घाटी में उनका लौटना रोजगार से जुड़ा हुआ है, क्योंकि लौटने को इच्छुक युवकों के पास आजीविका का स्रोत होना चाहिए.