
पुलवामा का नाम लेते ही जेहन में 14 फरवरी 2019 का वो आतंकी हमला कौंधता है जिसमें एक आत्मघाती हमलावर ने विस्फोटकों से भरी कार केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स (CRPF) के काफिले की एक बस से भिड़ा दी थी. इस हमले में CRPF के 40 जवान शहीद हो गए थे. दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले का नाम आतंकवाद-उग्रवाद की अन्य घटनाओं की वजह से भी यदा-कदा सुर्खियों में आता रहा है. लेकिन आज हम पुलवामा के एक पॉजिटिव पहलू के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में कम ही लोगों को जानकारी है.
पुलवामा ऐसा जिला है जहां पेंसिलों को बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली स्लेट्स (लकड़ी की पट्टी) का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है. असल में देश में इस काम के लिए कुल इस्तेमाल की जाने वाली स्लेट्स में से 70% पुलवामा से ही आती हैं. पुलवामा जिले को जल्दी ही देश का पेंसिल जिला कहा जाने लगेगा. पुलवामा में उक्खू नाम का एक गांव तो ऐसा है जहां करीब-करीब हर घर में ही पेंसिल यूनिट है.
उक्खू गांव में शुरुआती पेंसिल यूनिट्स लगाने वालों में से एक मंजूर अहमद अलाई कहते हैं, “नब्बे के दशक से पहले कंपनियां चीन और जर्मनी से पेंसिल के लिए लकड़ी मंगाती थीं. फिर उन्होंने यहां पर ध्यान दिया और यहीं से लकड़ी मंगाना शुरू किया. धीरे-धीरे सारा काम हम यहीं से करने लगे. मैं खुश हूं कि बहुत से लोगों के लिए अब यही काम रोजी-रोटी का साधन बन गया है.”
क्या खास है पुलवामा की लकड़ियों में
दर्जनों यूनिट्स खास चिनार के पेड़ों से घरों में ही स्लेट्स तैयार करने में लगी हैं. इन पेड़ों के विकसित होने में जिले की आद्र आबोहवा बहुत सूट करती है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां उगने वाले इन पेड़ों की लकड़ी में पेंसिल बनाने के लिए सही मात्रा में नमी होती है.
स्थानीय उद्योग अधिकारी मुबाशिर अहमद कहते हैं, “क्षेत्र इन स्लेट्स का बड़ा हिस्सा देता है. मुझे लगता है कि पुलवामा को पेंसिल डिस्ट्रिक्ट घोषित करने की दिशा में पहल शुरू की जाने वाली है. सरकार यूनिट धारकों को हर संभव मदद सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है.”
न सिर्फ पुरुष बल्कि स्थानीय क्षेत्रों से महिलाएं भी इस सेक्टर में बढ़चढ़ कर आगे आ रही हैं. इन पेंसिल बनाने वाली यूनिट्स में जो उत्साह दिखता है, वो पूरे जिले में उद्योग के विकास की उम्मीदों को बल देता है.
ये भी पढ़ें: