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J-K: क्या है हजारों करोड़ का रोशनी जमीन घोटाला? जिसमें शामिल हैं कई दलों के राजनेता

जम्मू-कश्मीर के इतिहास के सबसे बड़े जमीन घोटाले में एक बड़ा खुलासा हुआ है. 25 हजार करोड़ के इस जमीन घोटाले में कई पार्टी के नेताओं के शामिल होने की जानकारी सामने आई है. जम्मू-कश्मीर में सरकारी जमीनों पर धड़ल्ले से कब्जा करने वाले नेताओं और नौकरशाहों की लिस्ट आजतक के पास मौजूद है.

जम्मू-कश्मीर के रोशनी जमीन घोटाले में हुआ बड़ा खुलासा (प्रतीकात्मक तस्वीर) जम्मू-कश्मीर के रोशनी जमीन घोटाले में हुआ बड़ा खुलासा (प्रतीकात्मक तस्वीर)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 23 नवंबर 2020,
  • अपडेटेड 12:02 PM IST
  • जम्मू-कश्मीर में हुआ अब तक का सबसे बड़ा जमीन घोटाला
  • घोटाले में कांग्रेस-पीडीपी और नेशनल कांफ्रेस के नेताओं के नाम
  • अब सभी लोगों से सरकारी जमीन वापस ली जाएगी

जम्मू-कश्मीर के इतिहास के सबसे बड़े जमीन घोटाले में एक बड़ा खुलासा हुआ है. 25 हजार करोड़ के इस जमीन घोटाले में कई पार्टी के नेताओं के शामिल होने की जानकारी सामने आई है. जम्मू-कश्मीर में सरकारी जमीनों पर धड़ल्ले से कब्जा करने वाले नेताओं और नौकरशाहों की लिस्ट आजतक के पास मौजूद है.

पिछले कई सालों में, विभिन्न माध्यमों से सरकार और वन भूमि पर कब्जे करने का ये मामला जम्मू-कश्मीर के इतिहास के सबसे बड़े घोटालों में से एक है. अब सवाल उठता है कि ये रोशनी एक्ट है क्या, तो आपको बता दें कि यह एक्ट प्रभावशाली लोगों द्वारा सार्वजनिक भूमि के अतिक्रमण को नियमित करने के लिए बनाया गया था.

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2001 में, 'जम्मू-कश्मीर राज्य भूमि (व्यवसायियों का स्वामित्व का मामला) अधिनियम 2001' लोगों को राज्य भूमि के स्वामित्व के निहितार्थ प्रदान करने के लिए पारित किया गया था, जो ऐसी भूमि पर काबिज थे. इसी एक्ट की ओट में पूरे जम्मू-कश्मीर में सैकड़ों एकड़ मूल्यवान वन और राज्य की भूमि पर अवैध रूप से प्रभावशाली राजनेताओं, व्यापारियों, नौकरशाहों और न्यायिक अधिकारियों द्वारा अतिक्रमण और कब्जा कर लिया गया.

रोशनी अधिनियम के तहत प्रस्तावित किया गया था कि वर्ष 1990 तक प्रचलित बाजार दर के बराबर लागत के भुगतान पर, 1990 तक अनाधिकृत रूप से राज्य की भूमि पर कब्जा रखने वाले व्यक्तियों को मालिकाना हक दिया जाए. क्योंकि इन जमीनों को वापस ले पाना सरकार के लिए मुश्किल हो रहा था. 

1999 के पहले जो सरकारी जमीन थी उसे गरीब तबके के लोगों को विधिपूर्वक जमीन उपलब्ध कराने के लिए रोशनी एक्ट बनाया गया था. इसका दूसरा उपयोग पॉवर प्रोजेक्ट के लिए पैसा इकट्ठा करना था ताकि उसे जम्मू-कश्मीर के पॉवर प्रोजेक्ट में लगाया जा सके. 2001 में इसे बनाया गया था. लेकिन इसमें समय-समय पर संशोधन किया जाता रहा. समय-समय पर राज्य में सरकारें बदलती रहीं और लगातार राजनेताओं को फायदा उठाने का मौका दिया जाता रहा.

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मुफ्ती सईद और गुलाम नबी आजाद की सरकार में हुआ संशोधन

पहला संशोधन 2004 में मुफ्ती सईद सरकार ने किया. इसके बाद 2007 में गुलाम नबी आजाद की सरकार के दौरान कानून में बदलाव किया गया. मुफ्ती सईद सरकार ने कट ऑफ डेट 1990 से बढ़ाकर 2004 कर दी और बाद में गुलाम नबी आजाद सरकार ने इसे बढ़ाकर 2007 कर दिया. 

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रिटायर्ड प्रोफेसर एसके भल्ला ने एडवोकेट शेख शकील के जरिए 2011 में इस मसले पर जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कराई थी. उन्होंने इस याचिका में सरकारी और जंगली जमीन में बड़ी गड़बड़ी के आरोप लगाए. इसके बाद 2014 में CAG रिपोर्ट आई जिसमें ये खुलासा हुआ कि 2007 से 2013 के बीच जमीन ट्रांसफर करने के मामले में गड़बड़ी की गई. CAG रिपोर्ट में दावा किया गया कि सरकार 25000 करोड़ के बजाय सिर्फ 76 करोड़ रुपये ही जमा कर पाई. 

CAG की रिपोर्ट के आधार पर 2014 में इस केस में एक याचिका (CMP) लगाई. एडवोकेट अंकुर शर्मा ने अपनी इस याचिका में रोशनी केस की जांच सीबीआई को ट्रांसकर करने की मांग की. 2018 में तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने रोशनी एक्ट को निरस्त कर दिया. पिछले महीने 9 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने केस की जांच सीबीआई को सौंप दी.

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25,000 करोड़ रुपये के इस जमीन घोटाला की जांच अब सीबीआई द्वारा की जा रही है. इस घोटाले में कई बिजनेसमैन और अफसरशाहों के नाम भी सामने आए हैं. अब हाई कोर्ट के आदेश के बाद इन लोगों से जमीन वापस ली जाएगी. उम्मीद की जा रही है कि राज्य में होने वाले डीडीसी चुनावों के दौरान यह एक बड़ा मुद्दा बन सकता है.

 

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