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J&K: क्या है मजार-ए-शुहादा? जिससे पहले महबूबा मुफ्ती और सज्जाद लोन ने नजरबंद करने का लगाया आरोप

महबूबा मुफ्ती ने कहा, 'मुझे मजार ए शुहादा में जाने से रोका जा रहा है. जबकि शुहादा सत्तावाद, उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ कश्मीर के प्रतिरोध का एक प्रतीक है. मेरे घर के दरवाजे को एक बार फिर बंद कर दिया गया है. हमारे शहीदों का बलिदान इस बात का प्रमाण है कि कश्मीरियों की भावना को कुचला नहीं जा सकता.'

महबूबी मुफ्ती ने हाउस अरेस्ट करने का लगाया आरोप (file Photo: PTI) महबूबी मुफ्ती ने हाउस अरेस्ट करने का लगाया आरोप (file Photo: PTI)
aajtak.in
  • श्रीनगर,
  • 13 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 11:55 AM IST

जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती और पूर्व मंत्री सज्जाद लोन ने खुद को नजरबंद किए जाने का आरोप लगाया है.सोशल मीडिया पोस्ट (X) के जरिए दोनों ही नेताओं ने आरोप लगाया है कि मजार-ए-शुहादा से पहले उन्हें बिना किसी जानकारी के उनके घर में नजरबंद किया गया है और इस कार्यक्रम में शिरकत करने से रोका जा रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या है मजार-ए-शुहादा और क्यों इसे लेकर कश्मीरी नेताओं पर सख्ती की जा रही है.उससे पहले जानते हैं कि आखिर महबूबा मुफ्ती और सज्जाद लोन ने क्या आरोप लगाए.

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क्या बोली महबूबा मुफ्ती

महबूबा मुफ्ती ने कहा, 'मुझे मजार ए शुहादा में जाने से रोका जा रहा है. जबकि शुहादा सत्तावाद, उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ कश्मीर के प्रतिरोध का एक प्रतीक है. वहां जाने से रोकने के लिए मेरे घर के दरवाजे को एक बार फिर बंद कर दिया गया है. हमारे शहीदों का बलिदान इस बात का प्रमाण है कि कश्मीरियों की भावना को कुचला नहीं जा सकता. 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर को खंडित कर दिया गया, शक्तिहीन कर दिया गया और वह सब कुछ छीन लिया गया जो हमारे लिए पवित्र था. वे हमारी प्रत्येक सामूहिक स्मृति को मिटाने का इरादा रखते हैं. लेकिन अन्याय के खिलाफ हम अपनी लड़ाई जारी रखेंगे.'

यह भी पढ़ें: जम्मू-कश्मीर को लेकर केंद्र का बड़ा फैसला, उपराज्यपाल को दी दिल्ली के LG जैसी शक्तियां

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सज्जाद लोन ने भी लगाए ये आरोप


उधर, सज्जाद लोन ने अपनी पोस्ट में लिखा, 'बिना किसी कारण घर में नजरबंद होने की जानकारी दी गई है. मैं वास्तव में यह नहीं समझ पा रहा हूं कि लोगों को शहीदों के कब्रिस्तान जाने से रोकने में प्रशासन को क्या मिलता है. लोगों को अपने नायक चुनने का अधिकार है. इसमें शामिल होने से कैसे रोका जा सकता है. वास्तव में यह विश्वास करना कि एक सरकार यह तय करेगी कि ऐतिहासिक नायक कौन हैं यह निरंकुशता का संकेत है.'

क्या है मजार-ए-शुहादा


दरअसल, 13 जुलाई को साल 1931 में राजा हरि सिंह के कथित निरंकुश शासन का विरोध कर रहे 22 कश्मीरियों को डोगरा सेना ने गोली मार दी थी. तब से हर साल इन लोगों की कब्रिस्तान पर लोग पहुंचते हैं और श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. 5 अगस्त 2019 से पहले हर साल इस दिन अवकाश की घोषणा होती थी और कार्यक्रम का आयोजन होता था, जिसमें मुख्यमंत्री और राज्यपाल शिरकत करते थे. हालांकि 2019 के बाद से कब्रगाह पर जाने से कश्मीरी नेताओं को रोका जाता रहा है. 

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