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ऑपरेशन 370 के बाद सबसे पहले शोपियां ही क्यों पहुंचे NSA अजीत डोभाल?

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद सुरक्षा की कमान संभाल रहे एनएसए अजीत डोभाल एक्शन मोड में नजर आए. उन्होंने शोपियां में स्थानीय लोगों से मुलाकात कर खाना खाया और सुरक्षाबलों से मुलाकात कर स्थिति का जायजा लिया. यानी एक तीर से दो शिकार.

NSA अजीत डोभाल NSA अजीत डोभाल
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 07 अगस्त 2019,
  • अपडेटेड 11:30 PM IST

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद सुरक्षा की कमान संभाल रहे नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर (एनएसए) अजीत डोभाल एक्शन मोड में नजर आए. उन्होंने शोपियां में स्थानीय लोगों से मुलाकात कर खाना खाया और सुरक्षाबलों से मुलाकात कर स्थिति का जायजा लिया. यानी एक तीर से दो शिकार. वो ऐसे कि एक तरफ सुरक्षाबलों को उन्होंने किसी भी अप्रिय घटना से निपटने को लेकर जरूरी निर्देश दिए और लोगों के बीच जाकर अनुच्छेद 370 को हटाना क्यों जरूरी था, यह भी बताया. इसे हालात को सामान्य करने का 'हीलिंग टच' कहा जा सकता है.

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लेकिन सवाल यह है कि आखिर एनएसए डोभाल शोपियां ही क्यों गए. दरअसल कश्मीर के जो इलाके आतंकवाद और हिंसा से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, उसमें शोपियां भी शामिल है. आए दिन इस इलाके में आतंकवादियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ की खबरें आती रहती हैं. अन्य जिले कुलगाम, पुलवामा और अनंतनाग हैं.

शोपियां में आतंकवाद चरम पर है और हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने पर विरोध-प्रदर्शन यहीं से शुरू हुआ था. जिसने देखते ही देखते पूरी घाटी को हिंसा की चपेट में ले लिया. एनएसए डोभाल का लोगों के बीच जाकर उनसे बात करना यह बताने की कोशिश है कि अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद भी शोपियां में हालात सामान्य हैं.  

लोगों के साथ खाना खाने के दौरान एनएसए डोभाल ने लोगों से पूछा कि सब चीजें कैसी हैं? आप लोग क्या सोच रहे हैं? इस पर एक शख्स ने कहा कि सब कुछ ठीक है. एनएसए ने कहा, 'हां, सबकुछ ठीक है. हर किसी को शांति के साथ रहना चाहिए. जो भी अल्लाह कर रहा है, अच्छा कर रहा है. आपकी सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है. हम आपकी पीढ़ियों के विकास के बारे में सोच रहे हैं.'

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घाटी में 35 हजार से ज्यादा जवान तैनात हैं. 100 से ज्यादा राजनेताओं और एक्टिविस्ट्स को गिरफ्तार कर लिया गया है. एनएसए का कहना है कि राज्य के लोगों को जरूरत की चीजों की कमी नहीं होनी चाहिए. कश्मीर में हालात सामान्य होने में भले ही वक्त लगे लेकिन घाटी में व्याप्त खौफ के कोहरा को हटाने के लिए कोशिशों की लौ तो जलानी ही पड़ेगी.

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