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झारखंड में नेता प्रतिपक्ष का अभाव, संवैधानिक संस्थाओं में रुकी नियुक्तियां

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में झारखंड में सूचना आयुक्त की नियुक्ति में विलंब पर संज्ञान लिया और तल्ख टिप्पणी की थी. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटेश्वर सिंह की खंडपीठ ने कहा कि अदालतों के निर्देश के बावजूद सिर्फ नेता प्रतिपक्ष नहीं होने के आधार पर सूचना आयुक्त की बहाली नहीं होना एक गंभीर विषय है.

Jharkhand Assembly (File Photo) Jharkhand Assembly (File Photo)
सत्यजीत कुमार
  • रांची,
  • 10 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 5:58 AM IST

झारखंड में आपको आरटीआई के तहत सूचना नहीं मिल पाएंगी. कोई पीड़िता अपने साथ हुए अत्याचार की शिकायत महिला आयोग में नहीं कर पाएगी. भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए लोकायुक्त भी नहीं है. ये सब इसलिए की इन संवैधानिक संस्थाओं में सदस्य एवं चेयरपर्सन दोनों की जगह खाली है, वहीं संस्थाएं डिफंक्शन पड़ी हैं. राज्य में नेता प्रतिपक्ष के नहीं होने से रिक्तियों को भरा नहीं जा पा रहा है. हालत के लिए सरकार विपक्ष को और विपक्ष इसके लिए सरकार को दोषी ठहरा रही है.

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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में झारखंड में सूचना आयुक्त की नियुक्ति में विलंब पर संज्ञान लिया और तल्ख टिप्पणी की थी. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटेश्वर सिंह की खंडपीठ ने कहा कि अदालतों के निर्देश के बावजूद सिर्फ नेता प्रतिपक्ष नहीं होने के आधार पर सूचना आयुक्त की बहाली नहीं होना एक गंभीर विषय है. सर्वोच्च अदालत ने अब सबसे बड़े विपक्षी दल को एक सदस्य नामित करने के लिए दो हफ्तों का समय दिया है, ताकि उनको सूचना आयुक्त के चयन समिति में शामिल किया जा सके.

पूरी तरह से ठप पड़ा है कामकाज

झारखंड में एक मुख्य सूचना आयुक्त और 10 सूचना आयुक्त के पद सृजित हैं. वर्तमान में सभी पद खाली हैं. 30 नवंबर 2019 से मुख्य सूचना आयुक्त का पद खाली है, जबकि मई 2020 से राज्य सूचना आयोग में एक भी सूचना आयुक्त नहीं है. राज्य सूचना आयोग का कामकाज पूरी तरह ठप है. विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली होने की वजह से कई आयोग डिफंक्शन्ड हैं. राज्य के सूचना आयोग, महिला आयोग समेत अन्य आयोगों में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति नहीं हो पा रही है.

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'जानबूझकर लटकाया जा रहा मामला'

सदन में नेता प्रतिपक्ष नहीं होने की वजह से कई आयोग का काम प्रभावित हो रहा है. इस मसले पर लंबे समय से राजनीति भी हो रही है. सत्ताधारी दल कई बार कह चुके हैं कि जब बाबूलाल मरांडी का मामला स्पीकर के ट्रिब्यूनल में था तो फिर उन्हें किसी दूसरे को नेता प्रतिपक्ष मनोनीत करना चाहिए था. बीजेपी जानबूझकर मामले को लटका रही थी. इसलिए विलम्ब हुआ. अगर ऐसा नहीं होता तो 2024 से पहले ही नियुक्ति हो जाती.

BJP के सरकार की मंशा पर सवाल

बीजेपी का कहना है कि चुनाव आयोग ने भी बाबूलाल मरांडी को बीजेपी विधायक की मान्यता दे रखी थी. 2019 में जेवीएम के बीजेपी में मर्जर के बाद राज्यसभा चुनाव में वह भाजपा विधायक की हैसियत से वोट भी करते रहे. फिर भी उनको विधायक दल का नेता चुने जाने के बावजूद सदन में नेता प्रतिपक्ष की मान्यता नहीं दी गई.

16 हजार से ज्यादा आवेदन पेंडिंग

अब इस सबका असर कामकाज पर पड़ रहा है. आरटीआई के तहत हियरिंग के लिए पेंडिंग अपील एप्लीकेशन 7657 हैं. जो न्यू एप्लीकेशन पेंडिंग हैं, उसकी संख्या 8427 हैं. इसी तरह कंप्लेंट एप्लीकेशन, जो सुनवाई के लिए पेंडिंग है उसकी संख्या 71 है. नए कंप्लेंट एप्लीकेशन जो पेंडिंग हैं, उसकी संख्या 184 है. कुल मिलाकर 16,000 से ज्यादा एप्लीकेशन पेंडिंग हैं. बता दें कि हर महीने 450-500 अपील आयोग तक पहुंचती हैं. हर दिन ऑनलाइन और ऑफलाइन करीब 70-80 अपील याचिका प्राप्त होती हैं, लेकिन मुख्य सूचना आयुक्त की बिना सहमति से याचिका पर आगे की कार्रवाई नहीं की जा सकती. 

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आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद सबसे बड़े विपक्षी दल बीजेपी के 7 टर्म के विधायक एवं पूर्व मंत्री पूर्व स्पीकर सीपी सिंह ने आजतक को बताया कि सरकार अदालतों में विपक्ष पर ठीकरा फोड़ आती है. लेकिन ये नहीं बताती कि यहां बाबूलाल मरांडी के अध्यक्ष बनने के बाद अमर बाउरी को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था. वो कम से कम साल भर नेता प्रतिपक्ष रहे, लेकिन उस वक्त भी संवैधानिक संस्थाओं में नियुक्ति नहीं हुई. अदालत का निर्देश है. अब 14 जनवरी के बाद राज्य को नया नेता प्रतिपक्ष मिल जाएगा, फिर सरकार बहाने नहीं बना पाएगी. अपने कारणों से सरकार ने नियुक्ति नहीं की थी. 5साल से ज्यादा नियुक्ति को लटकाए रखा.

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