
झारखंड इन दिनों नारकोटिक्स ट्राइएंगल का हब बनता जा रहा है. दरअसल अफगानिस्तान के तर्ज पर यहां अफीम की खेती धड़ल्ले से हो रही है. पुलिस की मानें तो ब्राउन शुगर और अफीम से जुड़े दुसरे नशीले पदार्थों के लिए यह इलाका एक कॉरिडोर की तरह है जहां तस्कर बांग्लादेश और नेपाल से अक्सर आते रहते हैं. बताया यहां तक जाता है की झारखंड में अफीम का सालाना अवैध व्यापार सौ करोड़ से अधिक का है.
दर्जनभर LWE जिलों में हो रही है खेती
झारखंड के नक्सल प्रभावित चतरा जिले के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाके में खेतों में फसलों की जगह सफ़ेद फूलों वाला काला सोना यानि अफीम लहलहा रहा है. फसलों के इस मौसम में यहां अवैध घोषित नशे की पैदावार उगाई जा रही है. दरअसल नक्सलियों के बन्दकों के खौफ और ज्यादा मुनाफे की लालच ने यहां के दूरदराज के ग्रामीण किसानों को नशे की खेती में ढकेल दिया है.
इस अवैध कारोबार से हो रही काली कमाई से नक्सली मालामाल हो रहे है. वैसे पुलिस का भी मानना है कि रांची में आसपास के जिलों से अफीम की खेप भेजी जा रही है. इस सिलसिले में बीते दिनों कई गिरफ्तारियां भी हुई है. दरअसल चतरा जिले के अलावा झारखंड के हजारीबाग, खूंटी, गढवा, पलामू, लातेहार जिलों में नक्सली अफीम की खेती कर रहे हैं.
जंगलों से घिरे जगहों पर खेती
इस बार नक्सलियों ने अफीम की खेती के लिए ऐसे स्थानों का चयन किया है जो आम जनों और पुलिस की नजरों से काफी दूर और पहाड़ों और जंगलो से घिरे जगहों में है. ऐसे में इन स्थानों तक सुरक्षा बलों की पहुंच आसान नहीं है. नोटबंदी के बाद नक्सली अब अफीम की खेती को अपनी आय का जरिया बनाने में लगे है.
दरअसल नोटबंदी के बाद नक्सलियों का आर्थिक तंत्र बुरी तरह तबाह हो चुका है. ऐसे में सुदूर इलाके में अफीम की खेती के जरिये नक्सली न सिर्फ अपनी गतिविधियां तेज कर दी है. बल्कि अपने नुक्सान की भरपाई में भी लगे हैं.