
बिहार के बाद अब झारखंड सरकार ने भी राज्य में जाति आधारित सर्वेक्षण कराने का फैसला किया है, जो अगले वित्तीय वर्ष में पूरा किया जाएगा. सोमवार को विधानसभा में परिवहन, राजस्व और भूमि सुधार मंत्री दीपक बिरुआ ने यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि इस कार्य के लिए कार्मिक विभाग को पहले ही नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया जा चुका है.
रिपोर्ट के मुताबिक मंत्री ने कहा, 'सरकार राज्य में जाति आधारित सर्वेक्षण कराने के प्रति गंभीर है, इस संबंध में फरवरी 2023 में ही निर्णय लिया जा चुका है. अब इसे अगले वित्तीय वर्ष में पूरा करने के लिए सभी प्रयास किए जाएंगे.'
एजेंसी चयन की प्रक्रिया जारी
कांग्रेस विधायक प्रदीप यादव ने सरकार से सर्वेक्षण की समय-सीमा और अब तक की गई तैयारियों के बारे में जानकारी मांगी. जवाब में मंत्री ने कहा कि 4 मार्च को कार्मिक विभाग ने एक अधिसूचना जारी कर एजेंसी की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
बिरुआ ने कहा, 'मैंने कुछ एजेंसियों के प्रतिनिधियों से बातचीत की है, लेकिन इसे पूरा करने में थोड़ा समय लगेगा. चूंकि मौजूदा वित्तीय वर्ष समाप्त होने में केवल कुछ ही दिन बचे हैं, इसलिए यह सर्वेक्षण अगले वित्तीय वर्ष में किया जाएगा.' उन्होंने यह भी बताया कि झारखंड में यह सर्वेक्षण बिहार और तेलंगाना की तर्ज पर किया जाएगा. विधायक प्रदीप यादव ने सरकार से सर्ना धर्म कोड को भी जाति आधारित सर्वेक्षण में शामिल करने की मांग की, ताकि सर्ना अनुयायियों की वास्तविक संख्या का पता चल सके.
तेलंगाना में 80,000 शिक्षकों को इस काम में लगाया गया था जबकि वहां की जनसंख्या 3,80,000 के करीब है. इसी तरह से बिहार में जून 2022में जातिगत सर्वेक्षण का फैसला लिया गया था और अक्टूबर 2023 सर्वे के नतीजे जारी किए गए थे. बिहार की संख्या 13 करोड़ से ज्यादा है.
शुरू हुआ राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
जाति आधारित सर्वेक्षण पर प्रतिक्रिया देते हुए नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने सरकार पर राजनीति करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, 'सरकार जाति सर्वेक्षण कराने के लिए स्वतंत्र है, हमने कभी इसका विरोध नहीं किया. यह सरकार पिछले दो वर्षों से ओबीसी सर्वेक्षण पर काम कर रही है, लेकिन इसे अभी तक पूरा नहीं किया गया, जिससे निकाय चुनाव रुके हुए हैं. असल में, ये सब सिर्फ राजनीति कर रहे हैं.'
उन्होंने कहा कि यदि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ जाति आधारित सर्वेक्षण को लेकर गंभीर है, तो उसे उन राज्यों में इसे कराना चाहिए, जहां उसके घटक दलों की सरकार है.