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धनबाद में CISF जवान कतार में लग कर कोरोना मरीजों को दे रहे प्लाज्मा

झारखंड के धनबाद में शहीद निर्मल महतो मेडिकल कॉलेज अस्पताल के बाहर इन दिनों केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के जवानों को कतार में खड़े देखा जा सकता है.

सीआईएसएफ के जवान दान कर चुके करीब 40 यूनिट प्लाज्मा सीआईएसएफ के जवान दान कर चुके करीब 40 यूनिट प्लाज्मा
मौसमी सिंह/सिथुन मोदक
  • नई दिल्ली/धनबाद,
  • 09 मई 2021,
  • अपडेटेड 2:04 PM IST
  • अभी तक यहां जवान कर चुके हैं 40 से अधिक प्लाज्मा यूनिट का दान
  • 19 अप्रैल से जारी है जवानों के प्लाज्मा दान करने का सिलसिला

बॉर्डर की निगहबानी, देश के अहम प्रतिष्ठानों की सुरक्षा ही नहीं देश पर कोई आपदा आए तो भी लोगों की मदद के लिए जवान पीछे नहीं रहते. कोविड-19 के कहर के बीच जरूरतमंदों को प्लाज्मा और खून देने के लिए जवान फ्रंटलाइन पर खड़े हैं.  

झारखंड के धनबाद में शहीद निर्मल महतो मेडिकल कॉलेज अस्पताल (SNMMCH) के बाहर इन दिनों केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) के जवानों को कतार में खड़े देखा जा सकता है. ये जरूरतमंद कोविड-19 मरीजों को प्लाज्मा दान करने के लिए यहां आए हैं. 

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महामारी के बीच इस तरह की तस्वीरें उम्मीद की किरण जगाने के साथ इंसानियत पर भरोसा भी बढ़ाती हैं. धनबाद में भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (BCCL) में तैनात CISF यूनिट से जुड़े बीबी गौतम कहते हैं, हमारे पास अस्पतालों से फोन आ रहे हैं, पहले हमने खून दान किया, अब प्लाज्मा दे रहे हैं. 

जवान बने जीवन रक्षक

असल में यहां प्लाज्मा की डिमांड शुरू हुई तो ऐसे बहुत कम जवान थे जो कोविड से ठीक होकर लौटे थे. प्लाज्मा डोनेशन के लिए एक यह मानदंड है. लेकिन जब CISF की पूरी यूनिट का एंटीबॉडीज के लिए टेस्ट किया गया तो पाया गया कि करीब 80 फीसदी जवानों का एंटीबॉडी स्कोर बहुत अच्छा है. साथ ही कोविड वैक्सीन की डबल डोज लेना भी इन जवानों के लिए बहुत कारगर रहा.  

CISF जवान मंगत राम कहते हैं, मैंने डबल शाट्स (वैक्सीन के) लिए और मेरा एंटीबॉडी स्तर 33 जितना ऊंचा था, साथ ही मेरा प्रोटीन वैल्यू भी 6.5 ग्राम प्रति डेसीलीटर था. इसलिए मुझे डॉक्टर ने कहा कि मैं प्लाज्मा दान कर सकता हूं. ये सुनकर मैं बहुत खुश हुआ. हम ड्यूटी के साथ मानवता का फर्ज भी निभा रहे हैं. मरीज अब रिकवर हो रहे हैं. 

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प्रशासन ने किया सम्मानित

CISF जवानों के प्लाज्मा दान करने का यह सिलसिला 19 अप्रैल से लगातार जारी है. ये जवान हर दिन यहां आकर अपने लिए नहीं दूसरों की जान बचाने के लिए कतार में खड़े होते हैं. जिला प्रशासन और प्लाज्मा डोनेशन की दिशा में काम कर रहा एनजीओ शुभ संदेश फाउंडेशन जवानों के संकट की घड़ी में मदद के लिए इस तरह सामने आने से निशब्द हैं. दोनों ने इन जवानों की निस्वार्थ सेवा भावना के लिए उन्हें सम्मानित किया. 

धनबाद के एडीएम चंदन कुमार कहते हैं, “CISF इस अभूतपूर्व संकट में मानवता की चमकती मिसाल है. दो महीने में CISF जवान 300 यूनिट खून और 40 प्लाज्मा यूनिट से ज्यादा दान कर चुके हैं. हमने अर्धसैनिक बल के इन जवानों को सम्मानित करने के लिए विशेष तौर पर कार्यक्रम का आयोजन किया. हम लोगों से भी अपील करेंगे कि वो इन जवानों से प्रेरणा लेते हुए प्लाज्मा दान के लिए आगे आए हैं. ये बहुत पवित्र काम है.”   

कैसे शुरू हुआ? 

स्थानीय शहीद निर्मल महतो मेडिकल कॉलेज अस्पताल (SNMMCH) में कोविड-19 मरीजों के लिए प्लाज्मा की मांग बढ़ने लगी तो अस्पताल की ओर से मदद के लिए CISF से भी संपर्क किया गया. CISF DIG ने तत्काल यूनिट के जवानों का एंटीबॉडीज टेस्ट कराया.  

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अस्पताल में ब्लड बैंक की देखरेख करने वाले डॉ अजय कुमार और डॉ निर्मल सिंह ने बताया,”हमने  CISF अधिकारियों से आग्रह किया कि उनके यहां 2000 जवान हैं और सभी को वैक्सीन की डबल डोज मिली हुई है, इसलिए उनका एंटीबॉडी लेवल ऊंचा हो सकता है. हमारा सोचना सही था. CISF ने कई कोविड मरीजों को नया जीवन दिया.  

छोटी सी शुरुआत CISF के लिए मिशन में बदल गई है. अब हर दिन चार जवान प्लाज्मा दान करते हैं. इस प्लाज्मा का इस्तेमाल न सिर्फ धनबाद बल्कि बोकारो, गिरिडीह जैसे आसपास के जिलों के मरीजों के लिए भी किया जाता है जो यहां इलाज के लिए आते हैं. रांची के मरीजों को भी यहां से प्लाज्मा उपलब्ध कराया गया है.  

CISF के DIG विनय काजला कहते हैं, 'हम लोगों की कीमती जान बचाना चाहते हैं. हमारे पास कोविड से रिकवर हुए जवानों की संख्या अधिक नहीं थी. लेकिन हमने पाया कि हमारे करीब 80 फीसदी जवानों का एंटीबॉडी काउंट 10 से ऊपर था. साथ ही उनकी प्रोटीन वैल्यू भी 6.5 से ऊपर थी और उन्हें वैक्सीन के डबल शॉट लग चुके थे. हम लगातार प्लाज्मा दान कर रहे है और ऐसा करके हमारी यूनिट बहुत खुश है. हमारे ऐसे साथी जो जल्दी रिटायर होने वाले हैं वो भी इस पुनीत कार्य में मदद के लिए आगे आ रहे हैं. कई मरीजों ने तेजी से रिकवर किया है. हम उम्मीद करते हैं कि इस काम को हमारी अन्य यूनिट्स की ओर से भी बढ़ाया जाएगा.  

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बता दें कि जब मरीज के खुद के एंटीबॉडीज में बीमारी के वायरस से ल़ड़ने की क्षमता नहीं रहती तो उसमें ऐसे व्यक्ति के एंटीबॉडीज डाले जाते हैं जो बीमारी को मात देकर रिकवर हो चुका हो. इस थेरेपी की शुरुआत बीसवीं सदी के शुरू में हुई थी. खास तौर पर 1918-20 में स्पेनिश फ्लू महामारी के दौरान इसका इस्तेमाल किया गया. चेचक और इबोला में भी ये थिरेपी इस्तेमाल की गई.  
 
अभी तक सशस्त्र सेनाओं और CAPF के करीब 25 लाख जवानों को वैक्सीन की डबल डोज दी जा चुकी है. अगर औसतन 80 फीसदी इन जवानों में एंटीबॉडी स्कोर अच्छा है तो करीब 20 लाख संभावित प्लाज्मा डोनर्स इनमें हैं. प्लाज्मा की किल्लत महसूस कर रहे देश में ये बड़ी राहत की बात हो सकती है.   

लोगों की जान बचाने के जवानों के इस जज्बे को देखते हुए कहा जा सकता है-  

वो नब्ज नहीं फिर थमने दी, जिस नब्ज को हमने थाम लिया...

 

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