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झारखंड: गुमला के इस गांव तक नहीं पहुंच पाती एम्बुलेंस, आए दिन हो रही मौतें

गुमला जिले के डुमरी प्रखण्ड के करनी पंचायत मरचाई पाठ गांव में बीमारी के कारण आए दिन लोगों की मौत हो रही है. 18 महीने के एक बच्चे की भी बीमारी के कारण मौत हो गई.

पैदल ही ले जाना पड़ता है अस्पताल पैदल ही ले जाना पड़ता है अस्पताल
सत्यजीत कुमार/मुकेश कुमार सोनी
  • गुमला,
  • 29 अक्टूबर 2021,
  • अपडेटेड 3:08 PM IST
  • जंगल, नदी, पहाड़ से गुजरता है दुर्गम रास्ता
  • बीमार को खाट से अस्पताल ले जाते हैं लोग 

झारखंड सरकार गुमला जिले में आदिम जनजाति के लोगों के सशक्तिकरण की बात करती है. सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से लेकर मूलभूत सुविधा तक, आदिम जनजाति के लोगों के घर तक पहुंचाने की बात की जा रही है. वहीं दूसरी तरफ आदिम जनजाति के लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं तक मयस्सर नहीं है. हकीकत ये है कि गुमला जिले में आदिम जनजाति के लोगों के कई गांव में बच्चे स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ रहे हैं.

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गुमला जिले के डुमरी प्रखण्ड के करनी पंचायत मरचाई पाठ गांव में बीमारी के कारण आए दिन लोगों की मौत हो रही है. 18 महीने के एक बच्चे की भी किसी बीमारी के कारण मौत हो गई. बच्चे की मौत के पीछे इलाज न मिल पाना वजह बताया जा रहा है. गांव में न तो स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हैं और ना ही गांव में  सड़क भी नहीं है जिसकी वजह से गांव में मेडिकल सुविधाएं नहीं मिल पातीं.

गांव तक एम्बुलेंस नहीं पहुंच पाती जिसकी वजह से गांव के लोग किसी की तबीयत बिगड़ने पर उसे खाट पर अस्पताल तक ले जाने को मजबूर होते हैं जिसकी वजह से काफी समय लग जाता है. कई बार मरीज की रास्ते में ही मौत हो जाती है. गौरतलब है कि डुमरी प्रखण्ड से लगभग 15 किलोमीटर दूरी पर बसा मरचाई पाठ गांव में कई समुदाय के लोग रहते हैं. गांव की आबादी करीब 400 से 500 है. वही ग्रामीणों का आना-जाना भी इसी रास्ते से होता है. गांव में सरकार की कल्याणकारी योजनाएं पहुंच नहीं पाई हैं.

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गांव में एक आंगनबाड़ी केंद्र जरूर है लेकिन ये नाकाफी है. कोई बीमार हो जाए तो पहाड़, जंगल, नदी पार करते हुए दुर्गम रास्ते से पैदल करीब चार किलोमीटर की दूरी पार करने के बाद उपचार मिल पाएगा. इस हिंसक वन्य जीव के हमले का खतरा रहता है सो अलग. 21वीं सदी के गांव की ये तस्वीर शासन और प्रशासन को मुंह चिढ़ा रही है. जिले के सिविल सर्जन ने गांव में हो रही मौतों को लेकर अधिकारियों को भेजने की बात कही. वहीं, गांव में सुविधाओं को लेकर सवाल पर समाज कल्याण पदाधिकारी कुछ भी बोलने से बचते दिखे.

 

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