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कभी रहीं अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल प्लेयर, बढ़ाया देश का मान, अब ईंट-भट्ठा में काम कर परिवार पालने को मजबूर हुईं संगीता कुमारी

झारखंड के धनबाद के बाघामारा बासमुड़ी की रहने वाली अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल खिलाड़ी संगीता कुमारी ईंट-भट्ठा मजदूर बनकर काम करने को मजबूर हैं. संगीता को मुख्यमंत्री सरकारी मदद और नौकरी देने का आश्वासन दिया था, लेकिन अब तक मदद नहीं मिली.

ईंट भट्ठे में काम कर पेट पाल रही संगीता कुमारी ईंट भट्ठे में काम कर पेट पाल रही संगीता कुमारी
सिथुन मोदक
  • धनबाद,
  • 22 मई 2021,
  • अपडेटेड 8:52 PM IST
  • देश के लिए खेलने वाली खिलाड़ी का बुरा हाल
  • आर्थिक तंगी से गुजर रहा संगीता का परिवार
  • CM के संज्ञान के बावजूद अब तक नहीं पहुंची मदद

झारखंड में एक अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल खिलाड़ी रही अब ईंट भट्ठे पर काम कर पेट पालने को मजबूर है. धनबाद के बाघामारा बासमुड़ी की अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल खिलाड़ी संगीता कुमारी सरकारी उपेक्षा की शिकार हो गईं हैं. वह दूसरों के ईंट-भट्ठे पर काम करने को मजबूर हैं. उन्हें मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने ट्वीट कर सरकारी मदद और सरकारी नौकरी का आश्वासन दिया था लेकिन यह आश्वासन, महज आश्वासन ही रहा.

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मजबूरी में उन्हें मजदूरी कर परिवार का पेट पालना पड़ रहा है. संगीता कुमारी अब ईंट भट्ठा में तप कर अपने परिवार के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ कर रही हैं. कोरोना काल में जारी लॉकडाउन के चलते दिहाड़ी मजदूरी करने वाले बड़े भाई को भी कोई काम नहीं मिल रहा है. अब परिवार का पूरा बोझ संगीता पर ही आ गया है. पिता दुबे सोरेन को ठीक से दिखाई नहीं देता, मां भी अपनी खिलाड़ी बेटी के साथ ईंट भट्ठा जाती है.

संगीता ने साल 2018-19 में अंडर 17 में भूटान और थाईलैंड में हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फुटबॉल चैंपियनशिप में खेला था और झारखंड का मान बढ़ाया था. संगीता ने जीत के साथ ब्रॉन्ज मेडल भी हासिल किया था.

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कई देशों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं संगीता कुमारी.

संगीता के पिता ने कहा कि उन्हें उमीद थी कि उसकी बेटी फुटबॉल की अच्छी खिलाड़ी है तो सरकार कुछ करेगी लेकिन कुछ नहीं मिला है. ईंट भट्ठे में बेटी को काम करना पड़ रहा है. यहां के विधायक ने भी स्थिति जानकर कोई मदद नहीं की.

'परिवार चलाने के लिए कर रहीं मजदूरी'

संगीता कहती हैं कि परिवार को देखना भी जरूरी है, इसलिए ईंट भट्ठा में दिहाड़ी मजदूरी करती हूं. किसी तरह घर का गुजर बसर चल रहा है. इन सभी कठिनाइयों के बावजूद संगीता अपनी फुटबॉल की प्रैक्टिस नहीं छोड़ी है. हर रोज सुबह वे मैदान में प्रैक्टिस करती हैं. चार महीने पहले सीएम हेमंत सोरेन को ट्वीट कर उन्होंने मदद मांगी थी, जिस पर मुख्यमंत्री द्वारा संज्ञान लेते हुए मदद का आश्वासन दिया था. अब तक किसी भी प्रकार का कोई मदद नहीं मिली है.

 

मां के साथ मजदूरी करने को हुईं मजबूर.

संगीता ने यह भी कहा कि सही सम्मान नहीं मिलने के कारण यहां की खिलाड़ी दूसरे प्रदेश से खेलने चले जाते हैं. हर खिलाड़ी अच्छी डाइट और प्रैक्टिस की जरूरत है, लेकिन यहां की सरकार खिलाड़ियों के प्रति गम्भीर नहीं. यही कारण हैं कि मेरे जैसे खिलाड़ी मजदूरी काम कर रहे हैं.

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