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'बंटेंगे तो कटेंगे' नारा, बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा और स्टेट लीडरशिप की अनदेखी... झारखंड में बीजेपी को भारी पड़ीं ये गलतियां

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा से लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह तक ने खुद को बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे तक केंद्रित रखा. उन्होंने हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार पर घुसपैठियों को पनाह देने और उन्हें सरकारी सुविधाएं प्रदान करने का आरोप लगाया.

हिमंता बिस्वा ने झारखंड में चुनाव अभियान की कमान संभाली थी (फाइल फोटो- पीटीआई) हिमंता बिस्वा ने झारखंड में चुनाव अभियान की कमान संभाली थी (फाइल फोटो- पीटीआई)
अमित भारद्वाज
  • रांची,
  • 24 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 8:06 AM IST

झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले इंडिया ब्लॉक ने भाजपा को रौंद दिया, लेकिन सूबे में चुनावी कैंपेनिंग काफी जबर्दस्त रहा. ये चुनाव भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के 'कटेंगे तो बंटेंगे' जैसे नारों के इर्द-गिर्द घूमता रहा. बीजेपी ने बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया. दरअसल, बीजेपी को उम्मीद थी कि इससे झारखंड में भाजपा की किस्मत बदल जाएगी और वे हेमंत सोरेन और उनकी पार्टी को सत्ता से बाहर कर देंगे. चुनाव जीतने के बाद हेमंत सोरेन ने खुद स्वीकार किया कि उन्होंने कभी ऐसा चुनाव नहीं देखा. 

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हालांकि झारखंड के जनादेश ने भाजपा नेतृत्व की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 34 सीटें जीतीं, कांग्रेस ने 16, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने 4 सीटें जीतीं और भाकपा-माले ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की. यह न केवल झामुमो बल्कि उनके नेतृत्व वाले गठबंधन के लिए भी अभूतपूर्व परिणाम है. वहीं बीजेपी ने केवल 21 सीटें जीतीं हैं, जो राज्य के गठन के बाद से यह उसका सबसे खराब प्रदर्शन है.

'बंटेंगे तो कटेंगे' और बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे से नुकसान

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा से लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह तक ने खुद को बांग्लादेशी घुसपैठ के मुद्दे तक केंद्रित रखा. उन्होंने हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार पर घुसपैठियों को पनाह देने और उन्हें सरकारी सुविधाएं प्रदान करने का आरोप लगाया. भाजपा नेताओं ने यह भी दावा किया कि ये घुसपैठिए आदिवासियों की रोटी, माटी हीं नहीं छीन रहे हैं, बल्कि उनकी बेटियों से शादी भी कर रहे हैं. हिमंता बिस्वा ने कहा था कि बांग्लादेश से घुसपैठ ने संथाल परगना की डेमोग्राफी को बदल दिया है.

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि जब घुसपैठिए गांवों में आते हैं, तो उन्हें (भारतीय) नागरिकता कौन देता है? क्या स्थानीय प्रशासन की मिलीभगत के बिना ऐसा हो सकता है? हमने असम में घुसपैठ को पूरी तरह से रोक दिया है. भाजपा झारखंड में भी घुसपैठ को रोकेगी. छोटा नागपुर के आदिवासी बहुल इलाकों में प्रचार करते हुए भी भाजपा ने संथाल परगना में घुसपैठ के मुद्दे पर ही ध्यान केंद्रित रखा. झारखंड के छोटा नागपुर और कोल्हान बेल्ट सहित पहले चरण की सीटों पर इस बात का असर कम ही देखने को मिला.

घुसपैठ का नैरेटिव सेट करने में लगाई ज्यादा ऊर्जा

झारखंड भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने इस रणनीति का बचाव करते हुए आजतक से कहा था, "हमें एहसास है कि संथाल परगना क्षेत्र में बांग्लादेशी घुसपैठ एक समस्या है, लेकिन हमें उम्मीद है कि इसका असर पहले चरण की सीटों पर भी पड़ेगा. हालांकि, उन्होंने यह स्वीकार किया कि "इस नैरेटिव में बहुत अधिक ऊर्जा डाली जा रही है" इस बीच, चुनावों से पहले झामुमो के एक वरिष्ठ नेता ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा था, "उनका घुसपैठिया नैरेटिव पहले चरण की सीटों पर काम नहीं कर रहा है और संथाल परगना हमारा गढ़ है. संथाल में हमारे पास नेतृत्व और कैडर है, भाजपा के पास नहीं है. हम संथाल क्षेत्र में उन्हें रौंद देंगे.

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NDA ने आदिवासियों के लिए आरक्षित 28 सीटों में से 27 सीटें गंवाईं

इसके अलावा झारखंड चुनाव प्रचार और मतदान के दौरान यह स्पष्ट था कि बांग्लादेशी घुसपैठिया नैरेटिव दोनों चरणों में भाजपा को उम्मीद के मुताबिक लाभ नहीं दे पाया. खास बात ये है कि इस अभियान की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने आदिवासियों के लिए आरक्षित 28 सीटों में से 27 सीटें गवां दी हैं. भाजपा ने खूंटी आदिवासी सीट भी खो दी जो दशकों से उसका गढ़ हुआ करती थी और उसके दिग्गज नीलकंठ मुंडा को झामुमो युवा विंग के कार्यकर्ता राम सूर्य मुंडा ने 42000 से अधिक मतों से हराया. 

स्टेट लीडरशिप को दरकिनार करना पड़ा भारी

भाजपा की झारखंड राज्य इकाई में तीन पूर्व मुख्यमंत्री थे- बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा और चंपाई सोरेन. एक और पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की बहू जमशेदपुर से चुनावी मैदान में थीं, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी जगन्नाथपुर से चुनाव लड़ रही थीं. इसके बावजूद, इनमें से कोई भी नेता पूरे राज्य में पार्टी के लिए प्रचार नहीं कर सका. इसके अलावा, बाबूलाल मरांडी जो भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं, झारखंड में जब प्रचार शुरू हुआ तो वे अपने विधानसभा क्षेत्र राजधनवार तक ही सीमित रहे. जबकि पूर्व मुख्यमंत्री मुंडा ने पोटका विधानसभा सीट पर ध्यान केंद्रित किया, जहां से उनकी पत्नी चुनाव लड़ रही थीं, वहीं भाजपा की स्थानीय इकाई के अन्य नेता पूरे झारखंड में प्रचार से गायब रहे. हालांकि, चंपाई सोरेन ने कोल्हान से संथाल तक अपना आधार बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन इसका असर नतीजों में नहीं दिखा.

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हिमंता बने झारखंड में बीजेपी के प्रचार अभियान का चेहरा

पहले चरण के प्रचार के अंत तक भाजपा के राज्य नेताओं में यह धारणा बन गई थी कि या तो प्रचार में उन्हें दरकिनार कर दिया गया है या उन्हें क्षेत्रीय क्षेत्रों तक सीमित कर दिया गया है, असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा झारखंड में बीजेपी के प्रचार अभियान का चेहरा बन गए थे, जबकि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ समेत देश भर से बीजेपी की बड़ी मशीनरी बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन वे इसमें असफल रहे. इससे संभवतः राज्य में बीजेपी को नुकसान पहुंचा. ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें एक क्षेत्रीय क्षत्रप और एक आदिवासी कट्टर प्रतिद्वंद्वी- हेमंत सोरेन का सामना करना पड़ रहा था. 

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