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झारखंड में बढ़ रहा अफीम की खेती का अवैध कारोबार, शहरों तक पहुंचा

एक किलो अफीम की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में लाखों की है. कभी सूबे के सुदूर ग्रामीण इलाकों में उगाया जानेवाला अफीम अब शहरों के पास तक पहुंच गया है.

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर
रणविजय सिंह/धरमबीर सिन्हा
  • रांची,
  • 21 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 8:26 PM IST

झारखंड यूं तो अपने काले हीरे (कोयला) को लेकर मशहूर है. लेकिन अब इसकी प्रसिद्धि पर काले सोने ने ग्रहण लगाना शुरू कर दिया है. दरअसल काला सोना यानी अफीम की खेती के लिए झारखण्ड की मिट्टी और जलवायु काफी मुफीद है. जिसकी वजह से हजारों एकड़ जमीन पर इसकी अवैध तरीके से खेती की जा रही है. पहले इसके पीछे नक्सली हुआ करते थे लेकिन अब आम ग्रामीण भी इससे होने वाली मोटी कमाई की वजह से इसकी खेती से जुड़ गए हैं. एक अनुमान के मुताबिक नक्सलियों और ग्रामीणों ने बीते साल अफीम की अवैध खेती से 150 करोड़ से ज्यादा की अवैध कमाई की है.

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शहरों तक पहुंची खेती

एक किलो अफीम की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में लाखों की है. कभी सूबे के सुदूर ग्रामीण इलाकों में उगाया जानेवाला अफीम अब शहरों के पास तक पहुंच गया है. हाल ही में रांची से महज 40 किलोमीटर की दुरी पर अफीम की अवैध खेती पाई गयी. वहीं, इस साल झारखण्ड के खूंटी, चतरा, लातेहार, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा, गढ़वा और हजारीबाग जिलों में सुरक्षाबलों ने अभियान चलाकर अबतक सैकड़ों एकड़ में लगी अफीम की फसल नष्ट की है. लेकिन मोटी कमाई की वजह से पुलिसिया दबिश के बाबजूद साल दर साल इसकी खेती में इजाफा हो रहा है.

सैटेलाइट मैपिंग की है तैयारी

राज्य सरकार ने सूबे में बढ़ती अफीम की अवैध खेती की समस्या से निपटने के लिए इस साल इसकी मॉनिटरिंग सॅटेलाईट से कराने का फैसला भी लिया है. इसके बाद अपराध अनुसन्धान विभाग ने इसके लिए कमर कस ली है. इसके तहत सफ़ेद फूलों वाले खेत खास तौर पर चिन्हीत किए जाएंगे. गौरतलब है कि जाड़े का मौसम अफीम की खेती के लिए काफी मुफीद माना जाता है. इस दौरान एक से दो महीने के भीतर अफीम में फल व फूल आने लगते हैं.

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ऐसे में जिन खेतों के फोटोग्राफ्स में अफीम की खेती नजर आएगी वहां पुलिसिया कार्रवाई की जाएगी. पुलिस का मानना है कि इसके पीछे कुछ ऑर्गनाइज्ड गैंग भी काम कर रहे हैं. हालांकि पुलिस इसके खिलाफ जागरूकता अभियान भी चला रही है.

वैसे आमतौर पर झारखण्ड के दूरदराज खासतौर पर नक्सल प्रभावित इलाकों में इसकी खेती की जाती थी. लेकिन अब यह ट्रेंड बदलने लगा है. सबसे खतरनाक तथ्य यह है कि ग्रामीण किसान भी कमाई के लालच में लगातार इससे जुड़ रहे हैं. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कई जिलों की पुलिस इसकी फसल नष्ट करने के लिए लगातार अभियान चला रही है.

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