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झारखंड में साल 2016 से 2021 के बीच मॉब लिंचिंग की 46 घटनाएं हुईं, यानी पिछले 5 वर्षों में हर साल औसतन 9 लोग भीड़ के गुस्से का शिकार हो चुके हैं. दरअसल, प्रश्नकाल के दौरान भाकपा माले के विधायक विनोद सिंह (CPIML) ने इस गंभीर सवाल को उठाते हुए सरकार से जवाब जानना चाहा कि कितने आरोपियों को सज़ा हुई और पीड़ित परिवारों के लिए सरकार ने क्या किया.
संसदीय कार्यमंत्री आलमगीर आलम ने इस सवाल के जवाब में कहा कि मॉब लिंचिंग की घटनाओं को लेकर सरकार गंभीर है. उसी का नतीजा है कि यहां इसके खिलाफ कानून बनाया गया है. मंत्री ने स्वीकार किया कि पिछले 5 वर्षों में राज्य में मॉब लिंचिंग की 46 घटनाएं हुई हैं. इनमें से 11 मामलों में 51 लोगों को आजीवन कारावास की सजा हो चुकी है. जबकि पीड़ित परिवारों के बीच 19 लाख 90 हजार बतौर मुआवजा वितरित किया गया है. हालांकि सरकार की तरफ से यह स्पष्ट नहीं किया गया कि 46 घटनाओं में कितने लोगों की जान गयी है.
जवाब को आधार बनाते हुए विनोद कुमार सिंह ने पूछा कि अगर पीड़ित परिवार को तीन लाख बतौर मुआवजा देने का प्रावधान है तो उस लिहाज से करीब 6 से 7 परिवारों को मुआवजा मिला पाया है अब तक. इसके जवाब में मंत्री ने कहा कि मॉब लिंचिंग के खिलाफ बिल लाने से पहले पीड़ित परिवार को 50 हजार देने का प्रावधान था. अब अगर इस तरह की घटना होगी तो पीड़ित परिवार को 3 लाख का मुआवजा मिलेगा.
इस पर प्रदीप यादव ने पूरक सवाल के तहत पूछा कि बेशक कानून अभी बना है लेकिन क्या पूर्व ही घटनाओं पर भी सरकार मुआवजा देगी. इस पर मंत्री ने कहा कि मॉब लिंचिंग के मामलों के निपटारे के लिए जिला जज के नेतृत्व में डीसी और एसपी को मिलाकर एक कमेटी होती है जो अनुदान तय करती है. हालांकि, मंत्री ने भरोसा दिलाया कि जिन पीड़ित परिवारों को मुआवजा नहीं मिला है उन्हें बहुत जल्द राशि मुहैया करायी जाएगी.
राज्य के दामन में लगातार मॉब लिंचिंग को लेकर दागदार होता रहा है. तबरेज अंसारी समेत हाल ही में सिमडेगा में एक व्यक्ति को भीड़ द्वारा जिंदा जलाने समेत हजारीबाग के रूपेश पांडेय की भीड़ द्वारा हत्या चुनौती के रूप में सरकार के समक्ष उभरी है. जाहिर है भीड़ द्वारा कानून को हाथ में लेने की फितरत झारखंड में अक्सर देखी जाती है जिसपर अभी तक लगाम नहीं लगाई जा सकी है.