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झारखंड के आंदोलकारियों को हेमंत सोरेन की सौगात, जानें किन चेहरों के चलते बना राज्य

झारखंड राज्य बनने के 20 साल के बाद हेमंत सोरेन सरकार ने अलग राज्य निर्माण के लिए लड़ाई लड़ने वाले आंदोलनकारियों को  बड़ा तोहफा दिया है. सरकार ने ऐसे लोगों को सरकारी नौकरियों में सीधी भर्ती देने और आंदोलनकारियों के परिवार को पेंशन देने फैसला मंत्रिपरिषद की बैठक में लिया है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए यह दांव राजनीतिक तौर पर काफी फायदेमंद साबित हो सकता है.

शिबु सोरेन और हेमंत सोरेन शिबु सोरेन और हेमंत सोरेन
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 26 फरवरी 2021,
  • अपडेटेड 12:12 PM IST
  • झारखंड के लिए चार दशक से लंबी लड़ाई लड़ी गई
  • झारखंड के आंदोलनकारियों के लिए सोरेन का तोहफा
  • 50 के दशक में झारखंड राज्य की मांग उठी थी

झारखंड राज्य की मांग के लिए करीब चार दशक तक आंदोलन चला, जो साल 2000 में जाकर साकार हुआ था. झारखंड राज्य बनने के 20 साल के बाद हेमंत सोरेन सरकार ने अलग राज्य निर्माण के लिए लड़ाई लड़ने वाले आंदोलनकारियों को बड़ा तोहफा दिया है. सरकार ने ऐसे लोगों को सरकारी नौकरियों में सीधी भर्ती देने और आंदोलनकारियों के परिवार को पेंशन देने फैसला मंत्रिपरिषद की बैठक में लिया है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के लिए यह दांव राजनीतिक तौर पर काफी फायदेमंद साबित हो सकता है.

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झारखंड सरकार के गुरुवार को हुई कैबिनेट बैठक में कई अहम फैसले लिए गए हैं. कैबिनेट सचिव अजय कुमार सिंह ने बताया कि अलग झारखंड राज्य की मांग करने वाले शहीद आंदोलनकारियों के आश्रितों को अब सरकारी नौकरियों में सीधी भर्ती दी जाएगी. साथ ही, पुलिस की गोली से घायल 40 प्रतिशत तक दिव्यांग हुए आंदोलनकारियों के आश्रितों को भी इसका लाभ दिया जाएगा. 

इसके अलावा राज्य सरकार शहीद परिवार के एक सदस्य को 7000 तक का मासिक पेंशन भी देगी और पुलिस की गोली से 40 प्रतिशत तक दिव्यांग हुए शहीद के आश्रितों को भी पेंशन देगी. आंदोलन के दौरान कुछ आंदोलनकारियों को कई महीने तक जेल में रातें गुजारनी पड़ी थीं, ऐसे आंदोलनकारियों या उनके परिवार के किसी एक सदस्य को भी इस योजना के तहत पेंशन का लाभ दिया जाएगा. सरकार ने यह फैसला लिया है कि लाभुकों को सरकारी नौकरियों में 5 प्रतिशत तक का क्षैतिज आरक्षण भी दिया जाएगा. 

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मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि आंदोलनकारी 20 वर्षों से अपनी मांगों को लेकर भटकते रहे हैं. जबकि, यह राज्य उनकी बदौलत ही मिला है. आज उन्हें और उनके परिवार को सम्मान देने का वक्त है, जिसके लिए हमारी सरकार ने कदम उठाया है. आंदोलनकारियों को पेंशन और आश्रितों को सरकारी नौकरी देने की घोषणा की गयी है, जो सरकार के लिए गौरव की बात है.

दरअसल, झारखंड राज्य भले ही साल 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में बना हो, लेकिन इसके लिए चार दशक तक राज्य के लोगों ने आंदोलन किया है. प्राकृतिक संपदाओं से भरे झारखंड राज्‍य की मांग 1952 में सबसे पहले जयपाल सिंह मुंडा ने उठायी थी. उसी समय उन्होंने झारखंड पार्टी का गठन किया और पहले आम चुनाव में सभी आदिवासी जिलों में यह पार्टी उभरकर सामने आई. जब राज्य पुनर्गठन आयोग बना तो झारखंड की मांग तेज हुई. जयपाल ने बिहार के अलावा उड़ीसा और बंगाल के भी कुछ क्षेत्रों को मिलाकर झारखंड राज्‍य की स्‍थापना की बात उठाई थी, लेकिन 1963 में उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया. 

साल 1963 में झारखंड पार्टी के कांग्रेस में विलय बाद झारखंड राज्य के मांग की आंदेलन की लौ एक बार फिर बुझती दिख रही थी. उसी समय उस लौ को जलाए रखने का जिम्‍मा एनई होरो ने लिया. एन ई होरो ने झारखंड पार्टी को दुबारा जीवित किया. उन्‍होंने पार्टी की पुनर्स्‍थापना की और कई युवा आदिवासियों का इससे जोड़ा. एक बार तो उन्होंने इंदिरा गांधी को रांची हवाई अड्डा पर उतरने नहीं दिया. 

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वामपंथी नेता बिनोद बिहारी महतो ने आदिवासी समाज के लोकप्रिय नेता शिबू सोरेन और एके राय सहित कई नेताओं के साथ मिल कर आंदोलन को राजनीतिक रूप आंदोलन को धार देने की कवायद की. 1970 में झारखंड मुक्ति मोर्चा गठन के पीछे उनका एकमात्र उद्देश्‍य अलग झारखंड राज्‍य की मांग था. झारखंड मुक्ति मोर्चा के बैनर तले झारखंड अलग राज्य के लिए कई आंदोलन हुए. 

झारखंड राज्य के लिए आंदोलन करने वाले लाल रणविजय नाथ शाहदेव ने कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. 60 के दशक में आंदोलन का चेहरा रहे हैं. बागुन सुंब्रुई झारखंड पार्टी की कमान संभालते हुए अलग राज्य के लिए जीवन भर आंदोलन करते रहे. रामदयाल मुंडा एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने झारखंड की ट्राइबल कल्चर, लिटरेचर और ट्रेडिशन को व‌र्ल्ड लेवल पर पहचान दिलायी और अपनी कलम से अलग राज्य की हमेंशा मांग करते रहे. डॉ बीपी केशरी का झारखंड आंदोलन में योगदान किसी से भी कम नहीं है. वे डॉ राम दयाल मुंडा के साथ झारखंड आंदोलन में साथ रहे थे.

इसके अलावा निर्मल महतो झारखंड आंदोलन के प्रमुख नेता थे, जिन्होंने झारखंड राज्य की मांग को मुकाम तक पहुंचाने ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) का किया. चार दशक से ज्यादा चले झारखंड राज्य की मांग के आंदोलन में काफी लोगों को अपनी जानें गवांनी पड़ी है तो कई लोगों को सालों जेल के सलाखों के पीछे रहना पड़ा है. इसके बाद कहीं जाकर साल 2000 में झारखंड राज्य वजूद में आया है. यही वजह है कि झारखंड के आंदोलन से निकली झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी की कमान संभाल रहे और सत्ता पर विराजमान हेमंत सोरेन ने राज्य के निर्माण में योगदान देने वालों और उनके परिवार के सौगातों की बौछार कर दी है. 

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