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झारखंड में एनआरसी लागू कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगी राज्य सरकार

झारखंड में एनआरसी लागू कराने के लिए राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी. बता दें कि सरकार पहले ही इसके लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय से आग्रह कर चुकी है.

सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट
धरमबीर सिन्हा/देवांग दुबे गौतम
  • रांची ,
  • 11 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 3:45 PM IST

झारखंड में एनआरसी लागू कराने के लिए राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है. मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मुख्य सचिव और गृह सचिव को सुप्रीम कोर्ट में असम में चल रहे एनआरसी मामले में झारखंड की ओर से भी इंटरविनर पिटीशन दायर करने को कहा है.

बताया जाता है कि रघुवर दास के निर्देश के बाद गृह विभाग ने  इसकी तैयारी शुरू कर दी है. जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में एक पिटीशन दायर कर झारखंड  में भी एनआरसी लागू करने की मांग की जाएगी. असम की तर्ज पर झारखंड में एनआरसी के लिए राज्य  सरकार पहले ही केंद्रीय गृह मंत्रालय से आग्रह कर चुकी है.

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पहला पत्र 10 जनवरी 2018 को झारखंड के गृह विभाग ने भारत सरकार को भेजा था. उसके बाद फिर से  25 जुलाई को एक रिमाइंडर भेजा गया और एनआरसी लागू करने की अनुमति मांगी गई. वैसे अब तक केंद्र की ओर से इसपर  कोई आदेश नहीं आया है.  

सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक संथाल परगना के साहिबगंज और पाकुड़ जिले में  सबसे अधिक घुसपैठिये हैं.असम की तर्ज पर एनआरसी लागू करने के लिए केंद्र से इन्ही जिलों के लिए अनुमति मांगी गई है. राज्य गृह विभाग द्वारा भारत सरकार को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि संतालपरगना का साहिबगंज और पाकुड़ जिला बांग्लादेश की सीमा से सटा हुआ है. इस कारण इन दोनों जिले में बांग्लादेशी घुसपैठिए अक्सर आते रहते हैं.

संथाल के चार जिले प्रभावित

संथाल परगना के चार जिले  पाकुड़, जामताड़ा, साहेबगंज और गोड्डा में  घुसपैठ के सबसे अधिक प्रमाण हैं. साहिबगंज, राजमहल और बरहरवा इलाके में इनकी संख्या सबसे अधिक है. बताया जाता है कि ये बांग्लादेशी अधिकतर राजमिस्त्री का काम करते हैं और बंगाल और झारखंड में अपनी पैठ बना चुके है. यह लोग वाकायदा यहां जमीन भी खरीद रहे हैं.

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गौरतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश पर 1994 में सत्रह हजार से अधिक बांग्लादेशी सिर्फ साहिबगंज जिले में चिन्हित हुए थे. साहिबगंज के तत्कालीन DC ने मतदाता सूची का पुनरीक्षण किया था. उसमें से सत्रह हजार से अधिक बांग्लादेशियों के नाम मतदाता सूची से हटाए भी गए. लेकिन चिन्हित इन बांग्लादेशियों को वापिस नहीं भेजा गया था.

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