
दिल्ली में निर्भया कांड होने के बाद देश में महिला सुरक्षा को लेकर बहस शुरू हुई थी. जिसके बाद केंद्र सरकार ने लिंग आधारित हिंसा को रोकने के लिए कई कदम उठाए थे. जिसमें निर्भया फंड की स्थापना भी शामिल है. तीन साल में इस फंड में करीब 3000 करोड़ रुपये जमा किए गए. जिसका उपयोग केंद्र और राज्य सरकार को हिंसा-पीड़ित महिलाओं को आपातकालीन सहायता और बचाव की योजना में करना था.
झारखंड इस फंड का उपयोग करने के मामले में देश के फिसड्डी राज्यों में एक है. बीते तीन साल के दौरान यहां करीब 11 लाख रुपये ही खर्च किए गए हैं. दरअसल, अधिकारियों की लापरवाही के कारण ये योजनाएं सही ढंग से इस्तेमाल नहीं हो पा रही हैं.
झारखंड महिला उत्पीड़न के मामले में आगे
महिलाओं को सुरक्षा उपलब्ध कराने में भी झारखंड की स्थिति ठीक नहीं है. तकरीबन हर महीने डायन के आरोप में दर्जनों बेबस और लाचार महिलाओं की हत्या की जा रही है. बाबजूद इसके फंड का इस्तेमाल न होना
चिंता का विषय है. वहीं देश में सबसे ज्यादा झारखंड की बेटियों को मानव तस्करी का शिकार होना पड़ता है. दूसरी तरफ दुष्कर्म की घटनाओं में लगातार बढ़ोतरी हो रही है.
वन स्टॉप सेंटर की पहल
हालांकि इस बाबत गृह विभाग और महिला समाज कल्याण विभाग को आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है. महिलाओं को एक ही छत के नीचे तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए रांची में वन स्टॉप सेंटर
खोला गया है. ऐसे ही सेंटर जमशेदपुर और धनबाद में भी खोलने का प्रस्ताव है. यहां हिंसा पीड़ित महिलाओं को 24 घंटे अल्पकालीन आश्रय, पुलिस सहायता, विधिक चिकित्सा और परामर्श सेवा की सुविधा देने की
योजना है.
यहां हो सकता है फंड का उपयोग
राज्य में निर्भया फंड का उपयोग कई क्षेत्रों में किया जा सकता है. खासतौर पर छेड़खानी रोकने के लिए स्कूल-कॉलेज में सीसीटीवी कैमरा लगाए जाने के लिए इसका उपयोग हो सकता है. मानव तस्करी की शिकार
महिलाओं के पुनर्वास को लेकर भी सरकार इस फंड का इस्तेमाल कर सकती है. महिला सशक्तिकरण और जागरुकता के कार्यक्रम में भी निर्भया फंड का उपयोग किया जा सकता है.