
झारखंड से पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का गहरा नाता रहा है. यूपीए पार्ट 1 और पार्ट-2 दोनों में इस राज्य को उन्होंने महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व दिया था. उनके निधन से झारखंड के आदिवासी समाज में शोक की लहर है. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में MOS रहे डॉ. रामेश्वर उरांव की कई यादें उनसे जुड़ी हुई है. आजतक से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि उन्हें यानी डॉ. रामेश्वर उरांव को भी मनमोहन सिंह प्यार से डॉक्टर कहकर ही संबोधित करते थे.
डॉ. रामेश्वर उरांव याद करते हैं कि जब उनकी मनमोहन सिंह से पहली मुलाकात हुई थी तो उन्होंने पूर्व पीएम से कहा था कि आप मेरे गुरु भी हैं. इस पर मनमोहन सिंह ने पूछा ऐसा क्यों? तो उरांव ने कहा था कि वह इंडियन इकोनॉमिक सर्विस के अधिकारी चुने गए थे और ट्रेनिंग के दौरान इंस्टीट्यू ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ में मनमोहन सिंह उनकी क्लास लेने आते थे. डॉ. रामेश्वर के इस जवाब पर मनमोहन सिंह इतने खुश हो गए कि उन्होंने खड़े होकर उरांव की पीठ थपथपाई और कहा कि उन्होंने कइयों को पढ़ाया, लेकिन किसी ने आकर ये नहीं कहा कि हम आपके स्टूडेंट हैं.
डॉ. रामेश्वर ने कहा कि झारखंड की पूरी आदिवासी आबादी डॉ. मनमोहन सिंह के निधन से दुखी है. उन्होंने झारखंड में 28 आरक्षित एसटी विधानसभा सीटों और 5 लोकसभा सीटों को बरकरार रखने में महत्वपूर्ण और बहुमूल्य योगदान दिया था.
परिसीमन आयोग की रिपोर्ट में झारखंड में 6 विधानसभा और 1 संसदीय सीट कम करने की सिफारिश की गई थी, लेकिन डॉ. मनमोहन सिंह के प्रयास रंग लाए और परिसीमन आयोग की रिपोर्ट झारखंड में लागू नहीं हुई. डॉ. रामेश्वर ने बताया कि परिसीमन आयोग के रिपोर्ट के खिलाफ वो अभी हेमंत सरकार में मंत्री चमड़ा लिंडा समेत कइयों को साथ लेकर तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह से मिले थे, तब उन्होंने कहा था कि ये हक की बात है, इसमें वो हस्तक्षेप करेंगे और अन्याय नहीं होने देंगे.
उन्होंने कहा कि लिहाजा परिसीमन आयोग की सिफारिश झारखंड में लागू नहीं हुई, वरना विधानसभा में आदिवासियों यानी एसटी के लिए 81 (कुल सीटें) में से रिजर्व 28 सीटों की संख्या घटकर 22 हो जाती और लोकसभा की 14 में से 5 रिजर्व सीटों की संख्या घटकर 4 रह जाती. मनमोहन सिंह की इस उदारता से आदिवासी समाज खुद को अहसानमंद मानता है और मनमोहन सिंह को कभी भुला नहीं पाएगा.