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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा के साथ ही जहां सारे देश में कालाधन रखनेवालों के बीच खलबली मची है. वहीँ इसने आतंकवादी और नक्सली संगठनों की आर्थिक व्यवस्था पर करारा प्रहार किया है. नक्सली हिंसा से जूझ रहा झारखंड भी इससे अछूता नही रहा है. यहां के नक्सली और उग्रवादी संगठन लेवी से वसूले गए करोड़ों की नकदी को ठिकाने लगाने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं. दूसरी तरफ ऐसे किसी भी घटना से निपटने के लिए बरती जा रही सरकारी चौकसी की वजह से इन संगठनों को नोटों को खपाने में सफलता नहीं मिल पाई है.
बीते दिनों नक्सलग्रस्त बेड़ो इलाके के एक पेट्रोल पम्प मालिक के पास से जब्त 25 लाख रुपये इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि सूबे के नक्सली संगठन इन दिनों लेवी के पैसों को बदलने या खपाने के लिए किस कदर बेचैन हैं. दरअसल इन संगठनों द्वारा नाजायज तरीके से वसूले गए करोड़ों रुपये नोटबंदी की घोषणा के साथ ही महज कूड़े के ढेर बनकर रह गए हैं. वहीं सरकार भी इस मौके का फायदा उठाकर नक्सलियों के पूरी तरह सफाये के लिए कमर कस कर तैयार है.
दशकों से नक्सल समस्या से जूझ रहे झारखंड में नक्सलियों ने इसी अवैध पैसों के बूते एक सामानांतर सरकार खड़ी कर ली थी. वे इन पैसों से न सिर्फ अपने संगठन को मजबूत बना रहे थे बल्कि इन पैसों का उपयोग दूसरे राज्यों में नक्सली संगठनो को मजबूत बनाने में किया जा रहा था. वहीं नक्सली संगठन लेवी के पैसों की वसूली अधिकतर बड़े नोटों की शक्ल में करते हैं. ऐसे में नोटबंदी की घोषणा से इन संगठनों पर गाज गिरी है.
दूसरी तरफ सरकारी एजेसियों के रडार पर खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में मौजूद बैंक और व्यवसायी हैं. एक अनुमान के मुताबिक झारखंड में एक्टिव नक्सली संगठन हर वर्ष करीब 300 करोड़ रुपये व्यापारियों और कारोबारियों से लेवी के तौर पर वसूलते हैं. इनमें से ज्यादातर नोट 500 और 1000 रुपये के होते हैं. नक्सली ठिकानों में छापेमारी के दौरान भी यह बात सामने आई है. इन छापों में बरामद रकम बड़े नोटों की थी. ऐसे में आनेवाले दिनों में निश्चित तौर पर नक्सली ऐन-केन-प्रकारेण इन पैसों को बदलने का प्रयास करेंगे.